आप सभी को बता दें कि हिंदू ग्रंथों में गंगा को मोक्ष दायनी, पाप नाशिनी नदी कहा जाता है और गंगा सप्तमी के दिन गंगा स्नान और दान का विशेष महत्व है. ऐसे में आप सभी को बता दें कि इस बार गंगा सप्तमी 11 मई को है तो आइए जानते हैं गंगा सप्तमी की कथा.
गंगा सप्तमी की कथा- कहा जाता है पुराणों के अनुसार गंगा विष्णु के अँगूठे से निकली हैं और इसका पृथ्वी पर अवतरण भगीरथ के प्रयास से कपिल मुनि के शाप द्वारा भस्मीकृत हुए राजा सगर के 60,000 पुत्रों की अस्थियों का उद्धार करने के लिए हुआ था. वहीं उनके उद्धार के लिए राजा सगर के वंशज भगीरथ ने घोर तपस्या कर माता गंगा को प्रसन्न किया और धरती पर लेकर आए और गंगा के स्पर्श से ही सगर के 60 हजार पुत्रों का उद्धार संभव हो सका था. बस यही वजह थी कि गंगा का अन्य नाम यानी दूसरा नाम भागीरथी पड़ा. कहा जाता है एक अन्य कथा के अनुसार गंगा जी का प्रादुर्भाव भगवान श्री विष्णु के चरणों से हुआ है. भागीरथ ने कठिन तपस्या करके गंगाजी को प्रसन्न किया और उन्हें धरती पर आने के लिये मना लिया. लेकिन गंगाजी का वेग इतना अधिक था कि यदि वे सीधे स्वर्ग से धरती पर आती तो अपने वेग के कारण पाताल में चली जाती. अत: इस वेग को कम करने के लिये सभी ने भगवान शिव से आराधना की और भगवान शिव ने अपनी जटाओं में गंगा जी को स्थान दिया .
सप्तमी तिथि को ही गंगा जी स्वर्गलोक से निकल कर भगवान भोलेनाथ की जटाओं में आई थी. इसलिये इस तिथि को ही गंगा जी की उत्पति मानी जाती है. इस तिथि को गंगा-सप्तमी या गंगा जयंती भी कहते हैं. वैशाख शुक्ल सप्तमी तिथि को ही क्रोध में आकर महर्षि जह्नु ने गंगा जी को पी लिया था . इसके बाद भागीरथ आदि राजाओं और अन्य के द्वारा प्रार्थना करने पर महर्षि जह्नु ने दाहिनी कान के छिद्र से उन्हें (गंगाजी) बाहर निकाला था; अत: जह्नु की कन्या होने की कारण ही गंगाजी को ‘जाह्नवी’ कहते हैं.