मैक्स अस्पताल के सहयोग से 50 डॉक्टरों की टीम ने आलमबाग निवासी का किया सफल ऑपरेशन

 कहते हैं, भाई बहन का रिश्ता बहुत मजबूत होता है। भाई अपनी बहन की खुशी के लिए कुछ भी कर सकता है। यह बात सिर्फ कहनेभर की नहीं है। लखनऊ के एक ऐसे ही भाई ने बहन के सुहाग के लिए जीजा को लिवर डोनेट किया। केजीएमयू में गुरुवार को करीब 12 घंटे चले इस ऑपरेशन में आलमबाग निवासी नवीन वाजपेयी के लिवर का सफल प्रत्यारोपण किया गया।

चिकित्सा विश्वविद्यालय में मैक्स हॉस्पिटल, साकेत, नई दिल्ली के सहयोग से लगभग 50 डॉक्टरों की टीम ने लिवर ट्रांसप्लांट का यह ऑपरेशन किया। ऑपरेशन सफल रहा है और मरीज को अभी डॉक्टरों की निगरानी में रखा गया है। 

मिसाल बना भाई 
लखनऊ के आलमबाग निवासी  (45) वर्षीय नवीन वाजपेयी लिवर सिरोसिस से पीडि़त थे। इससे उनके लिवर को काफी नुकसान हो चुका था। केवल लिवर ट्रांसप्लांट ही एकमात्र उपाय बचा था। ऑर्गन ट्रांसप्लांट में अक्सर नियर ब्लड रिलेशन को ही लिया जाता है, लेकिन नवीन के केस में उनके 35 वर्षीय साले पवन ने लिवर डोनेट करने का निर्णय लिया। अब तक जितने भी अंग प्रत्यारोपण हुए हैं, उनमें माता-पिता या पत्नी ही अंगदान करते आए हैं। 

मरीज को प्रोटोकॉल में रखा गया 
मरीज का मार्च से ही केजीएमयू के सर्जिकल गैस्ट्रोइंट्रोलॉजी विभाग की ओपीडी में इलाज चल रहा था। डॉक्टर ने लिवर खराब होने पर उन्हें ट्रांसप्लांट की सलाह दी। ऐसे में साले ने लिवर देने के लिए हामी भरी। इसके बाद क्लीनिकल-पैथोलॉजिकल जांच की प्रक्रिया शुरू हुई। रिपोर्ट आने पर ट्रांसप्लांट की प्लानिंग की गई। मरीज को 10 दिन पहले वार्ड में भर्ती किया गया। पांच दिन तक मरीज को विशेष प्रोटोकॉल में रखा गया। इसमें उनकी पल-पल की मेडिकल हिस्ट्री बनाई गई। इसकेबाद गुरुवार को दिल्ली के मैक्स हॉस्पिटल के डॉक्टरों के साथ मिलकर 14 घंटे की मेहनत के बाद संस्थान में दूसरा सफल लिवर ट्रांसप्लांट किया गया।

डोनर का 40 फीसद लिवर निकाला
लिवर दो प्रमुख हिस्सों में होता है, एक राइट लोब और दूसरा लेफ्ट लोब। मरीज में लिवर प्रत्यारोपण के लिए नवीन के डोनर उनके साले का राइट लोब निकाला गया। इसमें उनके 35 से 40 फीसद लिवर का हिस्सा प्रिजर्व कर नवीन को ट्रांसप्लांट किया गया। ट्रांसप्लांट का ऑपरेशन सुबह पांच बजे से शाम करीब पांच बजे तक चला। अब डोनर और मरीज दोनों ही स्वस्थ हैं और आइसीयू में उन्हें डॉक्टरों की विशेष निगरानी में रखा गया है। 

सात से आठ लाख रुपये का खर्च
केजीएमयू में लिवर प्रत्यारोपण के इस ऑपरेशन में करीब सात से आठ लाख रुपये का खर्च आया है। पीजीआइ में इसके लिए 14 से 15 लाख रुपये खर्च होते हैं, जबकि निजी अस्पतालों में 40 लाख रुपये के करीब खर्च आता है।

छह विभागों से ली गई क्लियरेंस
मरीज में लिवर ट्रांसप्लांट से पहले सात विभागों से क्लियरेंस ली गई। इनमें ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन, माइक्रोबायोलॉजी, पैथोलॉजी, रेडियोलॉजी, कार्डियोलॉजी व एनेस्थीसिया विभाग शामिल हैं। चिकित्सकों की टीम ने डोनर और मरीज की विभिन्न जांचें कर एचएलए मैचिंग भी कराई। इसके बाद ट्रांसप्लांट को हरी झंडी दी गई।

दो ऑपरेशन थियेटर किए गए तैयार
मरीज और डोनर को सुबह पांच बजे ऑपरेशन थियेटर (ओटी) में ले जाया गया। ऐसे में पहले एक ओटी में डॉक्टरों ने डोनर के लिवर का हिस्सा निकाला। दूसरी ओटी टेबल पर शिफ्ट मरीज को चीरा लगाकर खराब लिवर रिट्रीव किया गया। इस दौरान लिवर में शुद्ध रक्त ले जाने वाली हिपेटिक आर्टरी, अशुद्ध रक्त को वापस ले जाने वाली हिपेटिक वेन व पित्त की बाइल डक्ट को क्लैंप से ब्लॉक किया गया। इसके बाद डोनर से निकाला गया लिवर का हिस्सा प्रत्यारोपित किया गया। इसके बाद एक-एक कर आर्टरी, वेन व बाइल डक्ट को लिवर से कनेक्ट किया गया। 

ऑपरेशन में ये डॉक्टर रहे शामिल
लिवर प्रत्यारोपण के इस ऑपरेशन में सर्जिकल गैस्ट्रोइंट्रोलॉजी विभाग के अध्यक्ष प्रो अभिजीत चंद्रा, डॉ. विवेक गुप्ता, डॉ. विशाल गुप्ता, डॉ. प्रदीप जोशी, एनेस्थीसिया विभाग के डॉ. मोहम्मद परवेज, डॉ अनीता मलिक, डॉ. तन्मय तिवारी एवं डॉ. एहसान, रेडियोलॉजी विभाग से डॉ. नीरा कोहली, डॉ. अनित परिहार, डॉ. रोहित, ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग की डॉ. तुलिका चंद्रा, माइक्रोबायोलॉजीविभाग की डॉ. अमिता जैन, डॉ. प्रशांत, डॉ. शीतल वर्मा एवं मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ. एस एन शंखवार ने योगदान दिया। इसके अलावा मैक्स हॉस्पिटल के डॉ. सुभाष गुप्ता की टीम में डॉ. राजेश डे, डॉ. शालीन अग्रवाल एवं अन्य सर्जन शामिल रहे। 

ऑर्गन ट्रांसफर सेंटर से ट्रांसप्लांट सेंटर बना केजीएमयू
केजीएमयू में अब तक तीन किडनी ट्रांसप्लांट और दो लिवर ट्रांसप्लांट हो चुके हैं। अब तक कुल 24 अंगदान हो चुके हैं। केजीएमयू में अंग प्रत्यारोपण के लिए वर्ष 2003 में जीओ जारी हुआ था। वहीं, दिसंबर 2014 में अंग रिट्रीवल शुरू किया गया। वर्ष 2015 में किडनी ट्रांसप्लांट भी हुआ, मगर फिर ठप हो गया। इसके बाद से केजीएमयू ऑर्गन ट्रांसप्लांट सेंटर के बजाय ट्रांसफर सेंटर में तब्दील होता गया। यहां मरीजों के अंगदान तो हो रहे थे, मगर प्रत्यारोपण की सुविधा न होने के कारण उन्हें बाहर भेजा जा रहा था। ऐसे में राज्य के मरीजों को लाभ नहीं मिल पा रहा था। 

अंगदान के आंकड़े
केजीएमयू में अब तक 24 अंगदान किए गए। इनमें 19 का मल्टी ऑर्गन रिट्रीवल किया गया। इनमें 17 लिवर और 32 किडनी, 48 कार्निया काम की निकलीं। दो मरीजों के लिवर और तीन मरीजों की किडनी प्रत्यारोपण लायक नहीं थीं। ऐसे में जब भी अंगदान होता था, किडनी जहां एसजीपीजीआइ को भेजी जाती थीं, वहीं लिवर दिल्ली भेजा जाता था। लिवर ट्रांसप्लांट के इस दूसरे ऑपरेशन के बाद अब फिर से उम्मीद जगी है।

14 मार्च को हुआ था पहला प्रत्यारोपण
इससे पहले 14 मार्च को रायबरेली निवासी अमरेंद्र बहादुर का केजीएमयू में लिवर प्रत्यारोपण किया गया था। यह केजीएमयू में पहला लिवर ट्रांसप्लांट था। डॉक्टरों ने उनकी पत्नी के लिवर का 60 फीसद लोब लेकर ट्रांसप्लांट किया था। डॉक्टरों के अनुसार अब अमरेंद्र बहादुर स्वस्थ हैं।

लिवर में भर रहा था पानी 
मरीज को एक माह पूर्व शताब्दी फेज एक में गेस्ट्रो सर्जरी विभाग में भर्ती किया गया। लिवर फेल होने की वजह से मरीज के पेट में पानी भर गया था। पीलिया का स्तर बढ़ता जा रहा था। दिनोंदिन मरीज की हालत बिगड़ रही थी। इसके बाद डॉक्टरों ने प्रत्यारोपण का फैसला किया। केजीएमयू के ऑर्गन ट्रांसप्लांट विभाग के डॉ. विवेक गुप्ता ने मरीज का परीक्षण किया। 

पत्नी नहीं दे सकी लिवर तो साले ने किया डोनेट
ट्रांसप्लांट के लिए डॉक्टरों ने मरीज के नजदीकी रिश्तेदारों से लिवर डोनेशन के लिए कहा। इस पर पत्नी, बहन और दूसरे सदस्य लिवर देने को राजी हुए। लिवर देने वालों की जांच शुरू हुई। सबसे पहली पत्नी की जांच हुई। उनका लिवर प्रत्यारोपण के लिए उपयुक्त नहीं मिला। इसके बाद बहन समेत परिवार के छह अन्य सदस्यों का लिवर भी प्रत्यारोपण लायक नहीं मिला। आखिर में बहन का सुहाग बचाने के लिए मरीज केसाले पवन तिवारी (35) ने लिवर देने का फैसला किया। उसकी जांच जांच हुई। जांच में सब ठीक मिला।

ट्रांसप्लांट के लिए नियम
अधिकतर ऑर्गन ट्रांसप्लांट के लिए लाइव डोनर नियर रिलेटिव से लिए जाते हैं। इनमें दो कैटेगरी होती है, नियर रिलेटिव जिसमें भाई, बहन, माता-पिता, नाना, नानी, दादा-दादी आते हैं। इसे हॉस्पिटल कमेटी अप्रूव करती है। वहीं, दूसरी में दूर के रिलेटिव या अन रिलेटेड आते हैं। इसे हॉस्पिटल कमेटी के अलावा डिस्ट्रिक्ट कमेटी की परमिशन लेनी पड़ती है। 

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