बिहार में पंद्रह साल तक लालू-राबड़ी के कथित जंगलराज के खिलाफ आवाज बुलंद करने और आखिरकार उसका अंत करने वालों में से एक प्रमुख नाम उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी का भी है। कभी जेपी आंदोलन में संघर्ष के साथी रहे लालू यादव का जिक्र सुनते ही मोदी की भृकुटि अचानक तन जाती है।
पिछले दिनों चुनावी दौरे से देर शाम लौटने के बाद उनके आवास स्थित कार्यालय में बिहार के स्थानीय संपादक मनोज झा से उनकी मुलाकात हुई। उस दौरान मौजूदा चुनाव में एनडीए और विपक्ष की संभावनाओं के अलावा बिहार के विकास का रोडमैप, लालू-राबड़ी राज, समाजवाद और राष्ट्रवाद जैसे मुद्दों पर लंबी बातचीत हुई। पेश है इसके प्रमुख अंश-
प्रश्न- बिहार में लगभग आधी सीटों पर मतदान हो चुका है। जनता का मूडमिजाज कैसा लग रहा है?
उत्तर- देखिए, मैं तो पार्टी का एक समर्पित सिपाही हूं और सिर्फ मेहनत करने में यकीन रखता हूं। नतीजों का आकलन आप मीडिया वाले ही कर सकते हैं। इतना जरूर है कि बिहार समेत पूरे देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पक्ष में एक आंतरिक लहर चल रही है। हम पिछली बार से बेहतर करने जा रहे हैं और नरेंद्र मोदी जी दोबारा प्रधानमंत्री बनेंगे। इसमें संदेह की रत्ती भर भी गुंजाइश नहीं है।
प्रश्न- लेकिन विपक्ष तो भाजपा या एनडीए के इस आत्मविश्वास को हवाबाजी का नाम दे रहा है।
उत्तर- हवा और हताशा में तो विपक्ष है। उसके पास चुनाव में कोई ठोस मुद्दा ही नहीं है। विपक्ष मोदी सरकार के पांच साल के कामकाज को मुद्दा बनाने की हिम्मत ही नहीं कर पा रहा है। केंद्र से लेकर प्रदेश सरकार तक की योजनाओं की सफलता आज सबके सामने है। आज बिहार के प्रत्येक गांव में सड़क और बिजली है।
अस्पतालों में यदि भीड़ बढ़ रही है तो यह हमारे कामकाज का ही नतीजा है। जंगलराज में कानून व्यवस्था की स्थिति क्या थी और अब क्या है, इसका फर्क कोई भी महसूस कर सकता है। हम प्रदेश के शिक्षण संस्थानों की गुणवत्ता को ऊंचा उठाने का लगातार प्रयास कर रहे हैं। इसी प्रकार केंद्र की आवास और उज्ज्वला योजना का लाभ समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति को मिल रहा है।
प्रदेश सरकार द्वारा किसानों को सूखे से राहत दिलाने की ठोस पहल की गई और केंद्र की सम्मान योजना के तहत उनके खाते में रकम भी सीधे पहुंचाई गई है। बिजली की उपलब्धता के चलते खेती की लागत में कमी आ रही है। हम सिंचाई के काम में डीजल के उपयोग को शून्य स्तर पर ले जाने के लक्ष्य पर मजूबती से काम कर रहे हैं। हमारा लक्ष्य बिजली से शत-प्रतिशत सिंचाई का है।
प्रश्न- आपने तो एक सांस में उपलब्धियों की फेहरिस्त पेश कर दी।
उत्तर- यह उपलब्धियों का गुणगान नहीं, बल्कि एनडीए सरकार के संकल्प और कामकाज की एक झलक भऱ है। हम जो वादा करते हैं, उन्हें निभाने का माद्दा भी रखते हैं। जरा मनमोहन सरकार के कार्यकाल को याद करें कि किस तरह एक के बाद एक भ्रष्टाचार और घोटाले सामने आ रहे थे। पूरे देश में निराशा का वातावरण था। तब से आज पांच साल बाद की स्थिति या माहौल की तुलना कर लीजिए, आपको फर्क खुद-ब-खुद समझ में आ जाएगा।
हमें गर्व है कि आज पांच साल बाद मोदी सरकार के दामन पर कोई दाग क्या, छींटा तक नहीं है। इसी प्रकार प्रदेश में नीतीश कुमार की अगुआई वाली हमारी सरकार पर भी कोई अंगुली तक नहीं उठा सकता। राजकाज के स्तर पर ईमानदारी और पारदर्शिता को लेकर विपक्ष को मेरी खुली चुनौती है।
बाकी विपक्ष के बेदम नारों और आरोपों को सुनते जाइए। राजद के नेता तो पिछले महीने भर से चुनावी सभाओं में संविधान और आरक्षण पर खतरे की रट लगाए हुए हैं, लेकिन जनता इस पर कोई ध्यान ही नहीं दे रही है। मुद्दाविहीन विपक्ष इसलिए निराश भी है।
प्रश्न- आप शायद राजद नेता तेजस्वी यादव की ओर इशारा कर रहे हैं। ऐसा कैसे हो रहा है कि नेता प्रतिपक्ष की बात पर जनता ध्यान न दे?
उत्तर- तेजस्वी या उनके पिता लालू यादव जनता की नजरों में अपनी साख और प्रासंगिकता खो चुके हैं। बिहार की जनता ने इन्हें पंद्रह साल तक मौका दिया। सवाल है कि इन्होंने बिहार को क्या दिया? आप लूट-मार, अपहरणहत्या, चोरी-डकैती, घपले-घोटाले, पलायन, जातिवाद का जहर, विकास की संभावनाओं का गला घोंटने जैसे कारनामों को लालू-राबड़ी राज की उपलब्धियां मान सकते हैं।
उस दौर में बिहार जहां गर्त में जाता रहा, वहीं लालू परिवार ने अकूत संपत्ति अर्जित कर ली। इसके लिए न जानें कितने हथकंडे अपनाए गए, घपले-घोटालों को अंजाम दिया गया। अदालत तक ने बिहार के उस दौर को जंगलराज बताया था। चारोंओर भय, निराशा और अंधकार का वातावरण था। बाकी देश हतप्रभ होकर बिहार को देख रहा था कि आखिर वहां हो क्या रहा है। आज वह काला दौर बीते दिनों की बातें हो चुकी हैं।
केंद्र और प्रदेश की एनडीए सरकारों के तहत बिहार प्रगति के पथ पर नए जोश और जच्बे के साथ दौड़ रहा है। लोगों में नया भरोसा जगा है और बिहार की कई उपलब्धियों की चर्चा आज देश भर में हो रही है।
प्रश्न-अभी दो साल पहले लालू परिवार के भ्रष्टाचार को लेकर आप रोजाना कुछ न कुछ नया रहस्योद्घाटन करते थे। क्या हुआ उन आरोपों का?
उत्तर- (स्वरचित पुस्तक लालू-लीला को सौंपते हुए) लीजिए, आप खुद देख लीजिए। यह लालू-राबड़ी राज के
काले कारनामों का च्वलंत दस्तावेज है। इसमें एक-एक बातें लिखी हुई हैं। इनमें से ज्यादातर मामलों की जांच केंद्रीय एजेंसियां कर रही हैं। मेरा काम पर्दाफाश करने का था, कार्रवाई कानून को करना है।
मेरा तो इतना ही कहना है कि कभी चतुर्थ श्रेणी के सरकारी आवास में रहने वाले और साइकिल से चलने वाले लालू यादव का परिवार आज बिहार का सबसे धनाढ्य परिवार कैसे बन गया? तीस साल के तेजस्वी के पास करोड़ों की संपत्ति कहां से आ गई? इस परिवार के पास पटना-दिल्ली जैसे शहरों में दर्जनों प्लाट और मकान कहां से आए?
सात सौ करोड़ का मॉल किस पैसे से बनाया जा रहा था? जाहिर है कि सत्ता के मद में चूर लालू परिवार ने कायदे-कानून को ताक पर रखकर बिहार को दोनों हाथों से लूटा है। आज लालू जी यदि जेल में हैं तो खुद की करनी के चलते। मुझे तो पूरा यकीन है कि एक न एक दिन तेजस्वी पर भी कानून का शिकंजा कसेगा।
प्रश्न- अच्छा यह बताइए कि इतनी सारी उपलब्धियों के बावजूद एनडीए चुनाव में राष्ट्रवाद का मुद्दा क्यों गरमा रहा है?
उत्तर- आप प्रधानमंत्री मोदी या एनडीए के किसी भी नेता का भाषण सुनिए। इसमें ज्यादातर बातें विकास और पिछले पांच साल की उपलब्धियों की होती है। हमारे पास बताने के लिए तमाम चीजें हैं। हां, राष्ट्रवाद भी एक विषय है और इस पर बात करने से हमें कोई गुरेज नहीं है। हां तक इसे चुनावी मुद्दा बनाने की बात है तो आपको यह सवाल विपक्ष के नेताओं से पूछना चाहिए।
याद करिए कि बालाकोट में आतंकी हमले का भारत ने जब मुंहतोड़ जवाब दिया तो विपक्ष केये नेतागण ही गला फाड़कर वायुसेना के पराक्रम के सुबूत मांगने लगे। शुरुआती चुनावी सभाओं में यह मुद्दा भी उठाया। जब इन्हें सेना, सरकार और जनता की ओर से जवाब मिलने लगा तो ये बगलें झांकने लगे। इन्हें लग गया कि दांव उल्टा पड़ गया है।
जब आप कोई मुद्दा उठाते हैं तो फिर आपको जवाब सुनने के लिए भी तैयार रहना चाहिए। और जहांतक एक मजबूत राष्ट्र का प्रश्न है तो भाजपा के संकल्प पत्र में इसे सर्वोच्च स्थान दिया गया है। एक मजबूत राष्ट्र ही आर्थिक विकास की गारंटी हो सकता है। यदि आप इस दृष्टि से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मूल्यांकन करें तो
निस्संदेह उन्होंने दुनिया में भारत का मस्तक ऊंचा उठाया है। आज आपकी ओर कोई सीधी आंख उठाने की जुर्रत नहीं कर सकता।
प्रश्न- पिछले विधानसभा चुनाव में राजद-जदयू-कांग्रेस की सरकार बनी। डेढ़ साल बाद नीतीश ने राजद व कांग्रेस का साथ छोड़कर भाजपा से फिर हाथ मिलाया और सरकार बना ली। विपक्ष इसे जनता से धोखा बताता है।
उत्तर- नीतीश कुमार अपनी स्वच्छ और ईमानदार छवि को लेकर बेहद सतर्क नेता हैं। उन्होंने राजद के साथ सरकार बनाते समय ही आशंका जता दी थी कि यह साथ शायद ही लंबा चले। आखिरकार हुआ भी ऐसा ही। दरअसल, लालू को नीतीश का मुख्यमंत्री बनना अंदर से स्वीकार नहीं था। लिहाजा सरकार बनते ही वह अपने पुराने ढर्रे पर लौट आए और अपने दोनों पुत्रों को साथ लेकर शासन के कामकाज में मनमानी करने लगे। ऐसी परिस्थिति को भला कौन बर्दाश्त कर सकता है।
ऐसे में नीतीश और भाजपा ने फिर से एक-दूसरे की ओर हाथ बढ़ाया और नई सरकार बनाई। यह बिहार की जनता की इच्छा के अनुरूप है।
प्रश्न-भाजपा और नीतीश की यह नई दोस्ती कितने दिन तक चलेगी? क्या आगामी विधानसभा चुनाव भी साथ लड़ेंगे?
उत्तर- बिहार को आगे ले जाने को लेकर भाजपा व जदयू की सोच और दृष्टि समान है। हम शांति और सौहाद्र्र के
वातावरण में प्रदेश का विकास करने के पथ पर अग्रसर हैं। दोनों की दोस्ती स्वाभाविक और मौलिक संकल्पों पर
टिकी है। हमारा गठबंधन पुराना और स्थायी है। यह समय की कसौटी पर खरा भी साबित हुआ है। इस पर किसी संदेश की गुंजाइश ही नहीं है। पहले भी हम साथ-साथ लड़े हैं और आगामी विधानसभा चुनाव भी कंधे से कंधा मिलाकर लड़ेंगे।
प्रश्न-नीतीश कुमार ने बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग की थी। उसका क्या हुआ?
उत्तर- किसी प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देना एक तकनीकी प्रक्रिया या पहलू है। जहां तक बिहार को आर्थिक मदद देने का प्रश्न है तो केंद्र ने इसमें दोनों हाथों से मदद की है। प्रदेश को विशेष राज्य के तहत आवंटित होने वाली अनुमानित राशि से कहीं ज्यादा दी जा चुकी है। यह राशि विभिन्न योजनागत मदों के तहत दी गई है।
बिहार के विकास की राह में आज पैसे की कमी कोई मुद्दा नहीं है। फिर भी विशेष राज्य के मुद्दे पर हम केंद्र से
दोबारा बातचीत करेंगे।
प्रश्न- जेपी के समाजवादी आंदोलन की उपज सुशील मोदी आज राष्ट्रवाद का भगवा चोला ओढ़े हुए है। एक व्यक्ति और दो विचारधाराएं!
उत्तर- पहले तो यह भ्रम दूर होना चाहिए कि समाजवाद और राष्ट्रवाद परस्पर विरोधी विचारधाराएं हैं। जेपी या लोहिया का क्रांति दर्शन और दीनदयाल उपाध्याय जी के एकात्म मानववाद को आप विरोधी या परस्पर विपरीत विचारधाराएं कैसे कह सकते हैं? दोनों का लक्ष्य समान है।
दोनों विचारधाराएं समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति के उत्थान की बात करती हैं। दीनदयाल जी का अंत्योदय का सिद्धांत यही तो है कि समाज के सबसे कमजोर व्यक्ति का उत्थान पहली अनिवार्यता होनी चाहिए। मजबूत समाज ही मजबूत राष्ट्रकी गारंटी है।
प्रश्न- आरोप है कि आप प्रदेश भाजपा में नए नेतृत्व को उभरने नहीं देते?
उत्तर- यह आरोप नहीं, विपक्ष का ही एक प्रोपगेंडा है। आप खुद देख लीजिए कि इधर हाल के वर्षों में मेरे अलावा नंद किशोर यादव, गोपाल नारायण सिंह, राधा मोहन सिंह, सीपी ठाकुर और मंगल पांडेय जैसे सक्षम नेता प्रदेश में पार्टी कानेतृत्व कर चुके हैं। वर्तमान में नित्यानंद राय यह जिम्मेदारी बखूबी संभाल रहे हैं।
दरअसल, भाजपा का सांगठनिक ढांचा ही ऐसा है कि इसमें कोई चाहकर भी किसी को दबा या उठा नहीं सकता।
पार्टी में क्षमता और गुणों के आधार पर जिम्मेदारियां तय होती हैं। यही कारण है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का
एक साधारण कार्यकर्ता आज देश के प्रधानमंत्री पद पर है।
प्रश्न-केंद्र की राजनीति में जाने की इच्छा है?
उत्तर- भाजपा में प्रत्येक कार्यकर्ता की जिम्मेदारी पार्टी नेतृत्व तय करता है। मैं लोकसभा में भागलपुर क्षेत्र का
प्रतिनिधित्व कर चुका हूं। आगे पार्टी जैसा कहेगी, मैं उस जिम्मेदारी पर सौ फीसद खरा उतरने का प्रयास करूंगा।