रोबोटिकगैस्ट्रो-इंटेेस्टाइनलसर्जरी एवं किडनी ट्रांसप्लान्ट पर जागरुकता कार्यक्रम
बुलंदशहर : अपोलो हाॅस्पिटल्स ग्रुप के मुख्य हाॅस्पिटल इन्द्रप्रस्थ अपोलो हाॅस्पिटल्स ने लोगों को रोबोटिकगैस्ट्रो-इन्टेस्टाइनलसर्जरी, कोलोरेक्टर कैंसर सर्जरी एवं किडनी ट्रांसप्लान्ट के बारे में जागरुक बनाने के लिए मंगलवार को एक स्वास्थ्य जागरुकता कार्यक्रम का आयोजन किया। कार्यक्रम में मौजूद डाॅक्टरों ने लोगों को इन बीमारियों के कारणतथा इनके लिए सर्जिकल उपचार के आधुनिक तरीकों के बारे में जानकारी दी। रोबोटिकगैस्ट्रो-इंटेस्टाइनल एवं कोलोरेक्टर कैंसर की सर्जरी के बारे में बात करते हुए डाॅ दीपक गोविल, सीनियर कन्सलटेन्ट एवं एचओडी सर्जिकल गैस्ट्रोएंट्रोलोजी एवं जीओओंकोसर्जरी, इन्द्रप्रस्थ अपोलो हाॅस्पिटल्स, नईदिल्लीनेकहा, ‘हाल ही के वर्षों में भारत और दुनिया भर में कोलन से जुड़े मैलिग्नेन्ट (कैंसर) एवं बनायन (सौम्य या गैर-कैंसर) बीमारियों के मामले तेज़ी से बढ़े हैं। इसका श्रेय लोगों की बदलती जीवनशैली, जंक फूड के बढ़ते सेवन, रैडमीट और एनिमल फैट के बढ़ते सेवन तथा बुरी आदतों जैसे नियमित रूपसे शराब के सेवन और जीवन की बढ़ती प्रत्याशा को दिया जा सकता है। इसके अलावा व्यायाम न करनेऔर गतिहीन जीवन शैली के कारण मोटापा बढ़ने से भी कोलोरेक्टल कैंसर की संभावना बढ़ती है। साथ ही इन्फ्लामेटरीबोवलडिज़ीज़ भी कोलोरेक्टल कैंसर का कारण बन सकता है।’
कोलोरेक्टल कैंसर के प्रबंधन एवं इलाज में सर्जरी की भूमिका पर बात करते हुए डाॅ गोविल ने कहा, ‘सर्जरी के द्वारा कोलोरेक्टल कैंसर का इलाज बहुत मुश्किल है, इसके लिए उच्चस्तरीय विशेषज्ञता और कौशल की आवश्यकता होती है, लेेकिन यह रोग के प्रबंधन के लिए बेहद प्रभावी प्रक्रिया है। सर्जरी के द्वारा मरीज़ जल्दी ठीक होता है, रोग के दोबारा होने की संभावना कम हो जाती है। इस तरह की सर्जरी टर्शरी केयर सेंटर में ही की जा सकती है जहां सभी ज़रूरी सुविधाएं उपलब्ध हों और मरीज़ को सर्जरी के बाद उचित देखभाल प्रदान की जा सके। इसोफेगल, एब्डाॅमिनल, पैनक्रियाटिक एवं कोलोरेक्टल कैंसर सहित हर प्रकार के जीआई कैंसर में रोबोटिक एवं लैप्रोस्कोपी का इस्तेमाल किया जा सकता है।’
डाॅ विजय राजकुमारी, सीनियर कन्सलटेन्ट, किडनी ट्रांसप्लान्ट विभाग, इन्द्रप्रस्थ अपोलो हाॅस्पिटल्स, नई दिल्ली ने किडनी रोगों के प्रबंधन एवं किडनी ट्रांसप्लान्ट पर अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा ‘हमारे देश में 2,20,000 लोग किडनी फेलियर से पीड़ित हैं, इनमें से केवल 5000 लोगों में ही किडनी ट्रांसप्लांट हो पाता है। जब किडनी पूरी तरह से खराब हो जाती है, तब वह अपना काम करना बंद कर देती है और खून को नहीं छान पाती।इसे हम किडनी फेलियर कहते हैं। इस अवस्था में मरीज़ के पास सिर्फ डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लान्ट का ही विकल्प रह जाता है। हालांकि बार-बार डायलिसिस से बचने के लिए किडनी ट्रांसप्लान्ट ही बेहतर विकल्प है। इसके लिए कोशिश की जाती है कि परिवार का सदस्य ही मरीज़ को अपनी किडनी दान में दे सके, क्योंकि ऐसे मामलों में परिवार के सदस्य के साथ किडनी मैच होना आसान होता है, साथ ही ट्रांसप्लान्ट की प्रक्रिया में जटिलता की संभावनाभी कम हो जाती है।
हालांकि अगर परिवार में सही मैच न मिले तो परिवार के बाहर का कोई व्यक्ति भी मरीज़ को किडनी दान में दे सकता है। कुछ मामलों में एबीओ-इन्कम्पेटिबिलिटी के आधार पर भी किडनी ट्रांसप्लान्ट सर्जरी की जाती है, लेकिन इस तरह की सर्जरी में बहुत ज़्यादा तैयारी करनी पड़ती है और जोखिम भी बहुत ज़्यादा होता है किंतु आज आधुनिक तकनीकों के चलते ट्रांसप्लान्ट प्रक्रिया में जोखिम बहुत कम हो गया है। वास्तव में मरीज़ को सर्जरी के 10 दिनों के अंदर छुट्टी भी मिल जाती है। कार्यक्रम के अंत में एक ओपन हाउस का आयोजन किया गया, जिसमें डाॅक्टरों ने लोगों को कोलोरेक्टल कैंसर एवं ट्रांसप्लान्ट सर्जरी से जुड़ी गलत अवधारणाओं के बारे में जानकारी दी।