समुद्र से पाए जाने वाला एक महत्वपूर्ण रत्न मोती है जो कई प्रकार का होता है। अधिकतर महिलाएं मोती की अंगुठी या माला पहनती है। यह भी देखा गया है कि कई लोग अपने मन से ही मोती धारण कर लेते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक छोटा-सा रत्न भी आपको नुकसान पहुंचा सकता है? नहीं, तो जान लीजिए..
मोती पहनने के नुकसान-
– अत्यधिक भावुक लोगों और क्रोधी लोगों को मोती नहीं पहनना चाहिए।
– वृष, मिथुन, कन्या, मकर और कुम्भ लग्न के लिए मोती धारण करना नुकसानदायक है।
– यह भी कहा गया है कि शुक्र, बुध, शनि की राशियों वालों को भी मोती धारण नहीं करना चाहिए।
– कहते हैं कि मोती के साथ हीरा, पन्ना, नीलम और गोमेद धारण करने से नुकसान होता है। मोती के साथ पीला पुखराज और मूंगा ही धारण कर सकते हैं।
– यदि आपका मन अशांत है या कुंडली में चंद्रमा क्षीण है तो मोदी पहनने की सलाह दी जाती है। लेकिन यदि आपकी प्रकृति शीत वाली है तो मोती पहनने से नुकसान हो सकता है।
मोती पहनने के लाभ-
– मेष, कर्क, वृश्चिक और मीन लग्न के लिए मोती धारण करना लाभदायक है जबकि सिंह, तुला और धनु लग्न वालों को विशेष दशाओं में ही मोती धारण करने की सलाह दी जाती है। इसके पहनने से मन में सकारात्मक विचार उत्पन्न होते हैं।
– ऐसा कहा जाता है कि गोल आकार का मोती उत्तम प्रकार का होता है। गोल आकार का पीले रंग का मोती हो तो ऐसा मोती धारण करने से धारणकर्ता विद्वान होता है।
– मोती आकार में लंबा तथा गोल हो एवं उसके मध्य भाग में आकाश के रंग जैसा वलयाकार, अर्द्ध चंद्राकार चिह्न हो तो ऐसा मोती धारण करने से धारणकर्ता को उत्तम पुत्र की प्राप्ति होती है।
– मोती यदि आकार में एक ओर अणीदार हो तथा दूसरी ओर से चपटा हो तथा उसका रंग सहज आकाश के रंग की तरह हो तो ऐसा मोती धारण करने से धारणकर्ता के धन में वृद्धि होती है।
इस स्थिति में मोती पहनें-
– नीच राशि (वृश्चिक) में हो तो मोती पहनें।
– चंद्रमा की महादशा होने पर मोती अवश्य पहनें।
– चंद्रमा राहु या केतु की युति में हो तो मोती पहनें।
– चंद्रमा पाप ग्रहों की दृष्टि में हो तो मोती पहनें।
– 6, 8, या 12 भाव में चंद्रमा हो तो मोती पहनें।
– चंद्रमा क्षीण हो या सूर्य के साथ हो तो भी मोती पहनें।
– चंद्रमा क्षीण हो, कृष्ण पक्ष का जन्म हो तो भी मोती पहनें।
कैसे धारण करें मोती को?
मोती को चांदी की अंगूठी में कनिष्ठा अंगुली में शुक्ल पक्ष के सोमवार की रात्रि को धारण करते हैं। कुछ लोग इसे पूर्णिमा को भी धारण करने की सलाह देते हैं। इसे गंगाजल से धोकर, शिवजी को अर्पित करने के बाद ही धारण करें।