विजयपुर के डाबीपुरा गांव निवासी राधेश्याम कुशवाह राजनीति में थोड़ी-बहुत रूचि है। वह इस बार लोकसभा चुनाव में वोट डालने की पूरी इच्छा रखता है, लेकिन, बेरोजगारी और पेट भरने की जुगत में वह मतदान नहीं कर पाएगा। कारण यह है कि, बेरोजगारी से परेशान राधेश्याम पूरे परिवार को लेकर गुजरात के सूरत में पलायन कर गया है। राधेश्याम तो केवल उदाहरण मात्र है। जिले की दोनों विधानसभा श्योपुर व विजयपुर में कम से कम 16 हजार लोग हैं जो रोजगार की तलाश में महानगरों में पलायन कर गए हैं। एक हजार से ज्यादा युवा तो रोजगार की जद्दोजहद में देश की सीमा से बाहर खाड़ी देशों तक जा पहुंचे हैं।
पलायन करके महानगर और विदेशों तक जा पहुंचे हजारों लोग देश के सबसे बड़े चुनाव में अपना प्रतिनिधि चुनने के लिए 12 मई को वोट डालना चाहते हैं। लेकिन पलायन करके गए लोग मतदान कर पाएं, इसके लिए निर्वाचन आयोग ने अब तक कोई सुविधा नहीं की है।
जो पिछड़े वहीं सबसे ज्यादा पलायन
पलायन का कलंक भी विजयपुर व कराहल में सबसे ज्यादा गहरा है। एक अनुमान के हिसाब से आदिवासी बाहुल्य कराहल ब्लॉक से करीब 7 हजार लोग रोजगार के लिए ग्वालियर, शिवपुरी, कोटा, जयपुर और बैंगलोर तक पलायन कर गए हैं। उधर विजयपुर के वीरपुर, सहसराम, अगरा, ऊमरी क्षेत्र से कम से कम 3 हजार आदिवासी पलायन कर चुके हैं। आदिवासी ही नहीं इस क्षेत्र में पढ़ाई पूरी करने के बाद 04 हजार से ज्यादा युवा रोजीरोटी की जुगाड़ के लिए अपनी जन्मभूमि छोड़कर महानगरों का रुख कर जाते हैं। पलायन के दर्द से श्योपुर शहर भी दूर नहीं है। जिला मुख्यालय के ही एक हजार से ज्यादा युवा रोजगार की तलाश की देश की सरहद पार कर खाड़ी देशों तक जा पहुंचे हैं। इसके अलावा बड़ौदा, मानपुर, ढोढर क्षेत्र से हजारों गरीब परिवार पलायन करके राजस्थान के शहरों में जा बसे हैं।
बाहर पढ़ाई करने वाले युवा भी चूकेंगे वोट से
श्योपुर जिले में उच्च शिक्षा और नौकरी मुहैया कराने वाली कंपटीशन परीक्षाओं का कोई माध्यम नहीं। इसका परिणाम यह है कि जिले में पढ़ाई के नाम पर छात्रों का पलायन बढ़ता जा रहा है। श्योपुर क्षेत्र के युवा इंदौर के अलावा राजस्थान के कोटा, जयपुर, माधौपुर में जाकर पढ़ाई करते हैं तो कराहल, विजयपुर और वीरपुर क्षेत्र के छात्र पढ़ाई के लिए ग्वालियर, मुरैना, शिवपुरी व इंदौर तक पलायन कर गए हैं। एक अनुमान के हिसाब से जिले में डेढ़ हजार से ज्यादा छात्र पढ़ाई के लिए महानगरों में हैं। इनमें से अधिकांश विधानसभा चुनाव में मतदान करने नहीं आएंगे।
इसलिए होता है पलायन
श्योपुर जिले में कहीं भी ऐसा कोई उद्योग नहीं है जो 20 युवाओं को भी रोजगार दे पाए। श्योपुर में एक इंडस्ट्री एरिया 20 साल पहले से विकसित है लेकिन, उसमें से अधिकांश इंडस्ट्री पर ताला लगा है। इसके अलावा तीन नए इंडस्ट्रियल एरिया विकसित करने की बातें पांच साल से चल रही हैं लेकिन, यह इंडस्ट्रियल एरिया आकार नहीं ले पा रहे हैं। विजयपुर क्षेत्र में तो और भी बुरे हाल है। सौर ऊर्जा प्लांट की तीन इकाइयां विजयपुर में आई, लेकिन, व्यक्तिगत स्वार्थ के कारण राजनतिज्ञों ने ऐसा हल्ला मचाया कि, दो सौर ऊर्जा प्लांट अब तक नहीं लगे हैं। इन दोनों के नाम आज भी जिला प्रशासन के रिकार्ड में हजारों हेक्टेयर जमीन दे रखी है।
घर छोड़ना किसे पसंद है। विजयपुर में ऐसा कोई रोजगार नहीं जिससे घर चलाने लायक आमदनी हो। मजबूरी में घर छोड़कर हजारों किमी दूर पड़े हैं। हम ही जानते हैं यहां, कितनी परेशानी झेली, लेकिन परिवार के भरण पोषण के लिए रोजगार तो मिल जाता है।
-राधेश्याम कुशवाह, सूरत में रह रहा विजयपुर का युवा
यह बात सही है कि, रोजगार के संकट के कारण विजयपुर कराहल में पलायन होता है। इस साल भी हजारों आदिवासी गेहूं काटने से लेकर अन्य मजदूरी के लिए दूसरे जिलों व महानगरों में पलायन कर गए हैं।
-सीताराम आदिवासी, विधायक विजयपुर