श्रीलंका में गिरजाघरों और फाइव स्टार होटलों में रविवार को ईस्टर के मौके पर हुए आठ सीरियल बम धमाकों में मरने वालों का आंकड़ा 290 तक पहुंच गया है, जबकि करीब 500 अन्य लोग घायल हैं. लिट्टे के साथ खूनी संघर्ष के खत्म होने के बाद करीब एक दशक से श्रीलंका में जारी शांति भी इस घटना के साथ भंग हो गई है. हैरान करने वाली बात यह है कि अभी तक किसी भी संगठन ने इस वारदात की जिम्मेदारी नहीं ली है. अभी तक यहां 13 लोगों की गिरफ्तारी हुई है. हालांकि शुरुआती जांच के आधार पर श्रीलंकाई मीडिया में कहा जा रहा है कि इस विभत्स वारदात को नेशनल तौहीद जमात (National tawhid jamaat) नामक संगठन ने अंजाम दिया है. आइए समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर नेशनल तौहीद जमात संगठन क्या है?
शायद यह पहला मौका है कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया में नेशनल तौहीद जमात (National tawhid jamaat) संगठन का नाम सुर्खियों में आया है. आप Google पर भी National tawhid jamaat टाइप करके सर्च करेंगे तो कुछ जानकारी नहीं मिल पा रही है. हालांकि श्रीलंका सीरियल ब्लास्ट में इस संगठन का नाम आने के बाद लोग दुनिया भर में मौजूद जानकार इस संगठन के बारे में जानकारी इंटरनेट के जरिए शेयर कर रहे हैं. हमने भी कुछ जानकारों की मदद से इस संगठन के बारे में थोड़ी जानकारी जुटाने की कोशिश की है, जो शायद आपको नेशनल तौहीद जमात के बारे में समझने में मदद मिलेगी.
नेशनल तौहीद जमात कौन हैं, जानें 10 बातें
1. यूं तो श्रीलंका में बौद्ध धर्म मानने वाले बहुसंख्यक हैं. इसके बावजूद साल 2018 में यहां भगवान बुद्ध की मूर्तियां तोड़ी गई थी. यह पहला मौका था जब नेशनल तौहीद जमात (National tawhid jamaat) का नाम सामने आया था. श्रीलंका पुलिस की जांच में पता चला कि नेशनल तौहीद जमात एक कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन है. हालांकि यह संगठन साल 2014 में ही अस्तित्व में आ गया था.
2. साल 2014 में नेशनल तौहीद जमात के अस्तित्व में आने के साथ ही श्रीलंका के पीस लविंग मुस्लिम्स इन श्रीलंका (PLMMSL) संगठन ने इसे प्रतिबंधित करने की मांग शुरू कर दी थी. PLMMSL ने इसके लिए श्रीलंका सरकार के साथ संयुक्त राष्ट्र तक का दरवाजा खटखटाया था. हालांकि अभी तक नेशनल तौहीद जमात प्रतिबंधित नहीं हो सका है.
3. जानकार मानते हैं कि नेशनल तौहीद जमात श्रीलंका में इस्लाम का विस्तार करना चाहता है. धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए वे कुछ भी करने को तैयार रहते हैं. ये लोग वहाबी विचारधारा को मानते हैं. बताया जाता है कि वहाब अल्लाह का प्रार्यवाची शब्द है.
4. दुनिया के ज्यादातर इस्लामिक देश वहाबी विचारधारा मानने वालों से दूरी बनाकर रखते हैं. माना जाता है कि वहाबी विचारधारा मानने वालों से नजदीकी का मतलब है कि आप इस्लाम की मौलिकता से दूर हो रहे हैं.
5. इस संगठन के सचिव अब्दुल रैजिक ने सार्वजनिक भाषण में बौद्ध धर्म और इसे मानने वालों को लेकर कई आपत्तिजनक बयान दिए थे. हिंसा भड़काने के आरोप में अब्दुल रैजिक को गिरफ्तार कर लिया गया था.
6. वहाबी शुरू में उन लोगों को कहा गया जो मोहम्मद साहब के साथ सत्ता हासिल करना चाहते थे. आज इसकी कोई खास परिभाषा नहीं है, क्योंकि शियाओं के लिए आधे सुन्नी वहाबी है और सुन्नियो में सभी एक दूसरे के लिए वहाबी हैं और जो मोहम्मद बिन अब्दुल वहाब की विचारधारा के कुछ करीब थे उन्होंने 115 साल पहले ही इससे पल्ला झाड़ लिया था.
7. 17वीं शताब्दी में सऊदी अरब में एक इस्लामिक स्कॉलर जन्मे, जिनका नाम मोहम्मद था और उनके पिता का नाम अब्दुल वहाब यानी वहाब का बन्दा. शेख मोहम्मद ने अपनी शिक्षा दीक्षा मक्का और मदीना में ली और यह सातवी शताब्दी के एक इस्लामी स्कॉलर इमाम इब्न तैमिया से प्रभावित थे. उस समय बहुत सारी डायनेस्टी थी जो आज के सऊदी अरब पर अपनी अपनी सत्ता के लिये लड़ रही थी. उनमे से एक डायनेस्टी थी सऊद खानदान जिसके शासक, शेख मोहम्मद से प्रभावित थे और वो अपना राज काफी हद तक जंग में गवा चुके थे.
इन दोनों ने एक गठबंधन किया कि हम दोनों मिलकर सऊदी अरब का यह हिस्सा जीतेंगे तो सऊद खानदान के वंशज इसके शासक होंगे और राजनीति देखेंगे और मोहम्मद साहब के वंशज देश में इस्लामिक कानून देखेंगे. इन दोनों ने दूसरी डायनेस्टी से युद्ध लड़े और सऊदी अरब पर इन्होंने अपना कब्ज़ा कर लिया.
8. वहाबी विचारधारा मानने वाले नेशनल तौहीद जमात से जुड़े लोग कट्टर होते हैं. इस संगठन में तालीम ही यही दी जाती है कि किसी भी तरह से धर्म का प्रचार-प्रसार करो. अगर इसमें कोई बाधा उत्पन्न करे तो हिंसा से गुरेज ना करें.
9. श्रीलंका की कुल आबादी 2.2 करोड़ में करीब 70 फीसदी बौद्ध धर्म मानने वालों की है. यहां 7.5 फीसदी ईसाई धर्म के लोग हैं. अल्पसंख्यक होने की वजह से ईयाइयों पर यहां अक्सर हमले होते रहते हैं. पूरी दुनिया में इस्लाम बनाम ईसाई की लड़ाई चलती आ रही है. ऐसे में नेशनल तौहीद जमात श्रीलंका के अल्पसंख्यक ईसाईयों को डराना-धमकाना चाहते हैं.
10. नेशनल तौहीद जमात ने भले ही श्रीलंका में ईसाईयों के खिलाफ इतनी बड़ी वारदात को अंजाम दिया है, लेकिन इनका मकसद इसके जरिए दुनिया के दूसरे देशों में रह रहे ईसाईयों को संदेश देना भी हो सकता है.