बस्ती : कांग्रेस पार्टी का दामन थामकर राज किशोर सिंह ने बस्ती लोकसभा सीट से अपनी दावेदारी पेश कर दी है। पिछली सरकारों में हरैया विधानसभा से हैट्रिक लगाकर कैबिनेट मंत्री तक का सियासी सफर तय कर चुके राज किशोर की दावेदारी ने चुनावी गणितज्ञों को कुछ उलझा सा दिया है। बीते निकाय चुनाव में राजकिशोर ने गोरखपुर जिला पंचायत की सीट पार्टी की झोली में डालकर गेम चेंजर की भूमिका भी अदा की थी। कांग्रेस ने राज किशोर पर यह सोचकर दांव लगाया है कि शायद इस बार भी राज किशोर गेम चेंजर की भूमिका अदा करते हुए बस्ती लोकसभा की सीट पार्टी की झोली में डाल सकें। छात्र राजनीति से राजनैतिक सफर की शुरुआत करने वाले राज किशोर सिंह हरैया विधानसभा क्षेत्र से बहुजन समाज पार्टी के सिम्बल हाथी से चुनाव लड़कर सदन तक पहुंचे लेकिन उनका और हाथी का साथ अधिक दिनों तक नहीं रह सका। उन्होंने हाथी की सवारी छोड़ सियासी सफर तय करने के लिए साइकिल का दामन थामा। साइकिल पर सवार राज किशोर सिंह ने हरैया विधानसभा से दूसरी बार विधानसभा का चुनाव लड़ते हुए जीत हासिल की और प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री बने। हरैया से विधायक होने के बाद भी उनका नाता समूचे लोकसभा क्षेत्र की जनता से बना रहा। हरैया से लगातार तीन बार विधायक चुने गए राज किशोर की छवि पूर्वांचल में एक कद्दावर नेता के रूप में उभर कर जनता के सामने आई।
राज किशोर ने पार्टी में बढ़े कद के बलबूते 2014 में अपने भाई बृज किशोर सिंह डिम्पल को समाजवादी पार्टी से बस्ती लोकसभा सीट से चुनाव लड़ाया लेकिन मोदी लहर में साइकिल चल नहीं सकी और कमल खिल गया। इतना जरूर हुआ कि तीसरे चौथे पायदान पर रहने वाली सपा को बढ़त मिली और वह दूसरे स्थान पर आ गई। जब पार्टी की बागडोर अखिलेश के हाथों में आई तो उन्हें कैबिनेट मंत्री के पद से बर्खास्तगी का तोहफा मिला। हद तो तब हो गई जब पार्टी ने एमएलसी चुनाव में नामांकन के बाद आखिरी दिन सन्नी यादव उर्फ संतोष यादव को प्रत्याशी घोषित करते हुए पार्टी सिम्बल देकर उनका नामांकन करा दिया और बृज किशोर सिंह डिम्पल को चुनाव मैदान छोड़ना पड़ा।
इसके बाद यही कयास लगा कि एक बार फिर राज किशोर पाला बदल सकते हैं लेकिन पार्टी ने सारी शिकायतों को दूर करते हुए उनके भाई बृज किशोर सिंह डिम्पल को ऊर्जा सलाहकार बनाते हुए सारे गिले-शिकवे दूर कर दिये। राज किशोर सिंह का कद बड़ा कर उन्हें जिला पंचायत चुनाव में गोरखपुर जनपद का प्रभारी नियुक्त किया गया। प्रभारी बने राज किशोर सिंह ने अपने सियासी समीकरणों के बलबूते पार्टी के लिए गेम चेंजर की भूमिका अदा की और गोरखपुर जिला पंचायत की सीट पार्टी की झोली में डालकर एक बार फिर शीर्ष नेतृत्व का विश्वास जीता। साथ ही बेटे को भी प्रदेश में सबसे कम उम्र में जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर बिठाया।
इस लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा में गठबंधन होने के बाद जब मंडल की सभी सीटें बसपा की झोली में चली गईं तो वे अपना राजनैतिक भविष्य दूसरे दल में तलाशने लगे। उन्हें बसपा को सभी सीटें दिया जाना इतना नागवार गुजरा कि उन्होंने सपा छोड़ कांग्रेस का दामन थाम लिया। इससे पूर्व उनके भाजपा में जाने की भी चर्चा रही लेकिन जब भाजपा ने अपने वर्तमान सांसद को प्रत्याशी घोषित कर दिया तो इन चर्चाओं पर विराम लग गया। बस्ती लोकसभा क्षेत्र से उनके चुनाव लड़ने की चर्चाओं ने जिले के राजनैतिक समीकरण बिगाड़ दिए हैं क्योंकि कल तक भाजपा उमीदवार हरीश द्विवेदी और गठबंधन के उम्मीदवार राम प्रसाद चौधरी के बीच सीधी चुनावी लड़ाई मानी जा रही थी। अब कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में राज किशोर सिंह के चुनाव मैदान में आने से त्रिकोणीय लड़ाई के आसार बन गए हैं।
कल तक जो कांग्रेसी गठबंधन में जन अधिकार पार्टी के खाते में सीट जाने के चलते विरोध कर रहे थे वे भी बदले सियासी समीकरण में उनके स्वागत को तैयार खड़े हैं। कांग्रेस के लोगों का भी मानना है कि राज किशोर सिंह के पार्टी में आने से कांग्रेस को मजबूती मिलेगी।कांग्रेस में शामिल होने के बाद प्रथम जनपद आगमन पर 15 अप्रैल को उनके भव्य स्वागात की तैयारी की गई है। स्वागत और रोड शो से राज किशोर सिंह अपनी ताकत का एहसास करायेंगे। माना जा रहा है कि यदि उनका गेम चेंजर का फार्मूला काम कर गया तो तस्वीर बदल सकती है।