इलाहाबाद के कुछ छात्रों / प्रतिभागियों ने जानकारी दी है कि आयोग में नियुक्त एक समीक्षा अधिकारी कोचिंग भी चलाता है। उसी की कोचिंग की टेस्ट प्रैक्टिस सेट का कॉम्प्रीहेंशन का पूरा पैराग्राफ पी सी एस मेंस परीक्षा 2017 में पूछा गया। छात्रों का यह भी कहना है कि इस कोचिंग संचालक ने सोशल वर्क के इम्पोर्टेन्ट क्वेश्चन बता दिए हैं, वे कल पेपर में होंगे यानि पेपर आउट। क्या बात है। एक्सपर्ट पैनल 100 सवाल सहीं नहीं बना पाता। पिछले अध्यक्ष और वर्तमान अध्यक्ष की योग्यता और अयोग्यता सभी जानते ही हैं। आयोग सदस्य इंटरव्यू में पर्चियां बनाकर लाते हैं, सवाल पूछ पाते हैं? समझ मे नही आता कि यह भारत की व्यवस्था की कौन सी तस्वीर है।
क्या वास्तव में ऐसे ही नई इंडिया बनेगा? यहां सवाल केवल उत्तर प्रदेश का ही नहीं है। मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग की भी निकम्मेपन की तस्वीरें कुछ ऐसी सामने आई हैं। और बिहार पर तो रोना गाना सब बराबर। फिर ये आयोग किसलिए ? निकम्मों ऐशो-आराम के लिए ? क्या इन आयोगों को संवैधानिक दर्जा इसीलिए दिया गया था कि वे अपने निकम्मेपन को तानाशाही के साथ प्रितिष्ठित करें। आखिर इन आयोगों में बैठे लोग कौन हैं? उनकी मेरिट क्या है? उन्हें जिन्होंने नियुक्त किया था उनका उद्देश्य क्या था? क्या इन सदस्यों को भी किसी परीक्षा प्रक्रिया से गुजरा जाता है, या फिर तत्पादपरिग्रहीते ही मुख्य आधार है। कैसे मान लिया जाता है कि ये उतनी योग्यता रखते हैं कि योग्यों का चयन कर सकें?
क्या इसका कोई जायजा लेगा। शायद नहीं क्योंकि इन सबको वह सब हासिल हो रहा है जो इन्हें चाहिए। मरें छात्र। ऐसा क्यों? इन्हीं युवाओं का आह्वान शायद देश और प्रदेशों का नेतृत्व करता है, फिर इनकी सुनता क्यों नहीं? क्या इनका पढ़ा लिखा होना अपराध है? बेहतर होता कि ये अपराधी होते , माफिया होते, दलाल होते क्योंकि तब किसी न किसी आयोग, निगम आदि के अध्यक्ष , सदस्य, निदेशक …आदि कुछ न कुछ बन ही जाते। प्रिय छात्रों, शायद आप इस देश के नेतृत्व और तंत्र को प्रिय नहीं। क्षमा प्रार्थी हूँ में, क्योंकि मैं आपके लिए कुछ कर नहीं सकता। में इस श्री बृजेश मिश्र जी, भारत समाचार का आभारी हूँ कि उन्होंने छात्रों की पीड़ा देखी तत्काल खबर चलाई पर बाकियों के पास शायद इसके लिए समय ही नहीं है।