सपा के अहीर रेजीमेंट के गठन के वादे पर घमासान। इस वादे पर बसपा, भाजपा व कांग्रेस जैसे राजनीतिक दलों की ओर से तो कोई प्रतिक्रिया अब तक नहीं आई है, लेकिन भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर ने इसके जवाब में चमार रेजीमेंट के गठन की वकालत की है। दूसरी ओर अखिलेश के दांव से यादव वोट बैंक के सपा के साथ लामबंद होने की आशंका से बेचैन भाजपा प्रत्याशी दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ ने भी अहीर रेजीमेंट के गठन के वादे की तरफदारी कर दी है। निरहुआ आजमगढ़ में अखिलेश के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं।
प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की आबादी करीब 54 प्रतिशत और इनमें सर्वाधिक 19 प्रतिशत यादव माने जाते हैं। कुल आबादी में यादवों की हिस्सेदारी करीब 8 प्रतिशत है। विश्लेषक बताते हैं कि प्रदेश की राजनीति में पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के उभार के बाद से ही यादव सपा के इर्द-गिर्द नजर आता रहा है। लेकिन भाजपा की नई तरह की चुनावी रणनीति की वजह से 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में न सिर्फ गैर यादव पिछड़े व गैर चमार अनुसूचित जातियां भाजपा से जुड़ी बल्कि यादव व चमार भी पहले की तरह सपा या बसपा के साथ लामबंद नहीं रहा।
समाजशास्त्री डा. विनोद चंद्रा कहते हैं कि यूपी की राजनीति जाति और समुदाय के इर्द-गिर्द घूमती है। अखिलेश ने अपने बिखरते कोर वोट बैंक को सहेजने के लिए अहीर रेजिमेंट के गठन के वादे का दांव चला है। चंद्रशेखर ने भी यादव का ही दांव चलते हुए चमार समाज में अपनी पकड़ पुख्ता करने के लिए चमार रेजीमेंट के गठन की बात उछाली है।
यह है वजह
डॉ. चंद्रा की बात सही दिखती है। बसपा सुप्रीमो मायावती की जाटव (चमार) समाज पर काफी अच्छी पकड़ मानी जाती है। चंद्रशेखर की कोशिश इस वोट बैंक में सेंध लगाने की रही है। चमार रेजीमेंट की बात कहकर भी उन्होंने यही प्रयास किया है। चंद्रशेखर की बात अखिलेश को असहज करने वाली मानी जा रही है क्योंकि अखिलेश बसपा के साथ गठबंधन कर यह चुनाव लड़ रहे हैं। समाजशास्त्री प्रो. डी.आर. साहू कहते हैं कि राजनीति में जातियों का दबाव समूह काम करता है। यहां भावना से जोड़कर राजनीति करने का चलन पुराना है। कुछ दिन पहले ही देखा गया कि भाजपा ने किस तरह निषादों, मछुआरों व मल्लाहों को अपनी ओर खींचने के प्रयास किए। टिकट वितरण में निषादों को लेकर सपा और भाजपा की खींचतान भी खुलकर सामने आई।
अंग्रेजों के जमाने की हो रही है बात
प्रो. साहू कहते हैं कि किसी जाति या समाज के आधार पर रेजीमेंट बनाने का चलन अंग्रेज जमाने का है। यदि जाति के आधार पर रेजीमेंट गठन संभव होता तो मुलायम सिंह यादव रक्षामंत्री रहते क्यों न बनाते? लेकिन, अहीर रेजीमेंट के गठन का वादा कर अखिलेश ने जाति विशेष को अपने साथ खींचने का प्रयास किया है। समाज इस वादे से कितना प्रभावित होगा, यह देखने वाली बात होगी।
आंकड़े भी बताते हैं अहीर रेजीमेंट दांव की हकीकत
चुनावों का विश्लेषण करने वाली एक संस्था के सर्वे के मुताबिक 2014 के लोकसभा चुनाव में यूपी में भाजपा को गैर यादव ओबीसी में 55 प्रतिशत, गैर जाटव अनुसूचित जातियों में 45 प्रतिशत वोट मिले थे। भाजपा यादव वोटों में भी 27 प्रतिशत की सेंध लगाने में सफल रही थी। इसके अलावा 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को जिस तरह बड़ी जीत मिली उससे यह साबित होता है कि गैर यादव ओबीसी व गैर जाटव अनुसूचित जातियों के साथ यादव मतों का भी एक हिस्सा भाजपा के पास बरकरार है। शायद इसीलिए अखिलेश ने अहीर रेजीमेंट बनाने का वादा कर इस बिखरते वोट बैंक को सहेजने की कोशिश की है।
किसने क्या कहा…
‘‘हम राजनीतिक फायदे के लिए सेना और सैनिकों के इस्तेमाल को पूर्ण रूप से प्रतिबंधित करेंगे। साथ ही उन सभी राज्यों में रेजीमेंट की स्थापना करेंगे जहां वर्तमान में रेजीमेंट नहीं है। हम अहीर बख्तरबंद रेजीमेंट और गुजरात इन्फ्रेंट्री रेजीमेंट की स्थापना करेंगे।’’
‘‘अखिलेश यादव जी आपको अहीर रेजीमेंट तो याद रही परंतु चमार रेजीमेंट को भूल गए, जबकि हम काफी समय से चमार रेजीमेंट बहाल करने की मांग कर रहे हैं। अभी से हमारे समाज की अनदेखी करना शुरू कर दिया है। प्रमोशन में रिजर्वेशन बिल पर भी आपने अब तक जुबान नहीं खोली है।’’ – चंद्रशेखर आजाद, भीम आर्मी प्रमुख ट्विटर पर
‘‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जब मिलूंगा, अहीर रेजीमेंट गठन की मांग प्रमुखता से रखूंगा।’’ – दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’, भोजपुरी कलाकार व आजमगढ़ से भाजपा प्रत्याशी