रातनीति में यह तय है की कुछ भी तय नहीं है. करीब तीन साल पहले राजनीतिक विचारधारा को दरकिनार कर सत्ता के लिए एकजुट हुई भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) ने कल एक-दूसरे से नाता तोड़ लिया. सूबे में राज्यपाल शासन लागू कर दिया गया है. यानि केंद्र अप्रत्यक्ष रूप से राज्य में शासन चलाएगी. गठबंधन टूटने के पीछे दोनों पार्टी एक दूसरे को जिम्मेदार ठहरा रही है. बीजेपी कल तक सरकार में रहने के बावजूद आरोप लगा रही है कि महबूबा मुफ्ती आतंकवाद को रोकने में नाकामयाब रही. वहीं पीडीपी का कहना है कि घाटी में जोर-जबरदस्ती की नीति कारगर नहीं होगी. गठबंधन टूटने की ये वो वजहें हैं जो आधिकारिक प्रेस कांफ्रेंस में गिनाई गई. लेकिन असल कारण केवल यही नहीं है.
दरअसल, फरवरी 2015 में जब बीजेपी-पीडीपी ने गठबंधन का रास्ता चुना तभी से यह सवाल उठने लगा था कि यह गठबंधन कितने दिनों तक खींचेगी? तब मुफ्ती मोहम्मद सईद (दिवंगत) ने कहा था कि यह नॉर्थ पोल और साउथ पोल का गठबंधन है. हालांकि दोनों दलों ने कॉमन मिनिमम प्रोग्राम का फॉर्मूला तैयार किया और सरकार चलती रही. लेकिन बीजपी और पीडीपी के बीच वैचारिक मतभेद कभी कम नहीं हुई. अफस्पा, अनुच्छेद 35ए, अलगाववादियों की गिरफ्तारी, पाकिस्तान से बातचीत, कठुआ गैंगरेप जांच को लेकर बीजेपी-पीडीपी में मतभेद ही नहीं मनभेद भी रहे.
अनुच्छेद 370: भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) कश्मीर को लेकर पूरे देश में प्रचारित करती रही है कि वह अनुच्छेद 370 को लेकर उसका रुख साफ है और वह खत्म करेगी. वहीं पीडीपी किसी भी कीमत पर इसके लिए न तैयार थी और न ही होगी. यही वजह थी की कॉमन मिनिमम प्रोग्राम में अनुच्छेद 370 को अलग रखा गया था. कल ही पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने कहा कि हमें संविधान के अनुच्छेद 370 और राज्य के विशेष दर्जे के बारे में आशंका थी. हमने अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35 ए की रक्षा की है.
क्या है धारा 370? साल 1954 में राष्ट्रपति के एक आदेश के बाद संविधान में यह अनुच्छेद जोड़ा गया था, जो जम्मू एवं कश्मीर के लोगों को विशेषाधिकार प्रदान करता है, और राज्य विधानसभा को कोई भी कानून बनाने का अधिकार देता है, जिसकी वैधता को चुनौती नहीं दी जा सकती. यह अनुच्छेद जम्मू एवं कश्मीर के लोगों को छोड़कर बाकी भारतीय नागरिकों को राज्य में अचल संपत्ति खरीदने, सरकारी नौकरी पाने और राज्य सरकार की छात्रवृत्ति योजनाओं का लाभ लेने से रोकता है.
अनुच्छेद 35 ए: अनुच्छेद 35 ए अनुच्छेद 370 का ही हिस्सा है. इसपर बीजेपी और पीडीपी में शुरुआत से ही मतभेद रहा है. अनुच्छेद 35 ए के तहत जम्मू-कश्मीर के लोगों को विशेषाधिकार और सुरक्षा हासिल है. पीडीपी इस अनुच्छेद को सुरक्षित रखना चाहती है और बीजेपी देश के सभी नागरिकों के लिए समान विशेषाधिकार चाहती है. इस धारा को एनजीओ वी द सिटिजन्स ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है, जिस पर केंद्र सरकार ने कहा है कि इस धारा को असंवैधानिक घोषित करने के लिए इस मुद्दे पर पर्याप्त बहस करने की जरूरत है.
अफस्पा: जम्मू-कश्मीर में अफ्सपा यानि (आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर एक्ट) लागू है. केंद्र इसे हटाने पर सहमत नहीं है वहीं पीडीपी इसे हटाने के पक्ष में रही है. सेना का आतंकियों के खिलाफ बड़े स्तर पर राज्य में ऑपरेशन जारी है. ऐसे समय में केंद्र सरकार झुके यह संभव नहीं था. अफस्पा सेना को ‘डिस्टर्ब्ड एरिया’ में कानून व्यवस्था बनाए रखने की ताकत देता है. इसके तहत सेना पांच या इससे ज्यादा लोगों को एक जगह इक्ट्ठा होने से रोक सकती है. इसके तहत सेना को वॉर्निंग देकर गोली मारने का भी अधिकार है. ये कानून सेना को बिना वारंट के किसी को भी गिरफ्तार करने की ताकत देता है. इसके तहत सेना किसी के घर में बिना वारंट के घुसकर तलाशी ले सकती है.
पाकिस्तान से बातचीत: कश्मीर में आतंकियों को भेजने की फैक्ट्री पाकिस्तान को लेकर पीडीपी और बीजेपी में विवाद रहा. सीमा पर पाकिस्तान की तरफ से लगातार गोलीबारी और आतंकियों की घुसपैठ के बावजूद पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती पाकिस्तान से बातचीत का राग अलापती रही. वहीं केंद्र की बीजेपी सरकार ने साफ कर दिया की वह तब तक बातचीत नहीं करेगी जबतक कि पाकिस्तान सीमा पर शांति बहाल नहीं करता है.
रमजान सीजफायर: रमजान के मौके पर जम्मू-कश्मीर में सीजफायर लागू करने के लिए महबूबा मुफ्ती ने दबाव बनाया था. जिसके बाद केंद्र ने 16 मई को सीजफायर की घोषणा की. जिसकी वजह से आतंकी वारदातों में बढ़ोतरी हुई. केंद्र सरकार को आलोचनाओं का सामना करना पड़ा. पिछले दिनों केंद्र ने फिर से सीजफायर खत्म कर दिया.
अलगाववादियों की गिरफ्तारी: केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद अलगाववादियों के खिलाफ बड़े स्तर पर कार्रवाई शुरू हुई. टेरर फंडिंग और मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में शब्बीर शाह समेत कम से कम 11 अलगाववादी नेताओं को केंद्रीय जांच एजेंसियों ने गिरफ्तार किया. पीडीपी का कहना था कि गिरफ्तारी से राज्य की स्थिति और खराब हो सकती है.
पत्थरबाजी: जम्मू-कश्मीर में सुरक्षाबलों के खिलाफ पत्थरबाजी आम है. पीडीपी हमेशा पत्थरबाजों पर रहम की मांग करती रही है. जब पत्थरबाजों से बचने के लिए मेजर लीतुल गोगोई ने एक शख्स को मानव ढाल बनाया तो जम्मू-कश्मीर सरकार उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से भी नहीं चूकी. वहीं बीजेपी की इस मामले में बिल्कुल अलग राय है. वह पत्थरबाजों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का दावा करती रही है.
कठुआ गैंगरेप: जम्मू-कस्मीर में नाबालिग लड़की से गैंगरेप के मामले की जांच को लेकर राज्य बीजेपी के कई नेता और मंत्री सवाल उठाते रहे. बीजेपी के दो मंत्रियों ने आरोपियों के पक्ष में रैलियां निकाली. दोनों मंत्रियों को काफी आलोचनाओं के बाद इस्तीफा देना पड़ा.