बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की प्रमुख मायावती ने लखनऊ और नोएडा में स्मारकों में लगी अपनी मूर्तियों को सही ठहराते हुए कहा है कि ये जनभावना का प्रतीक हैं। उनके मुख्यमंत्री कार्यकाल में वंचित और दलित समुदाय के लिए किए गए उनके काम और त्याग को देखते हुए और दलित महिला नेता होने के नाते उनके प्रति सम्मान प्रकट करते हुए जनभावना के प्रतीक के तौर पर उनकी मूर्तियां लगाई गई हैं।
मायावती ने कहा है कि कांशीराम की मूर्तियों के साथ उनकी मूर्तियां लगाने की विधानसभा की इच्छा के खिलाफ वह नहीं जा सकती थी। उनकी मूर्तियां लगाया जाना विधानसभा की जनभावनाओं को प्रदर्शित करने की इच्छा का नतीजा हैं। इसके साथ ही मायावती ने सिर्फ उनकी मूर्तियों को निशाना बनाए जाने को राजनीति से प्रेरित बताते हुए देश के अन्य हिस्सों में सरकारी खर्च से बनी मूर्तियों का उदाहरण दिया है जिनके बारे में सवाल नहीं उठाए गए। इनमें बसपा प्रमुख ने गुजरात में सरदार पटेल की स्टैचू ऑफ यूनिटी और अयोध्या में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा भगवान राम की सबसे बड़ी मूर्ति बनाए जाने की घोषणा का उदाहरण दिया है। साथ ही देश के अन्य हिस्सों में लगी मूर्तियों का हवाला दिया है।
इतना ही नहीं, मायावती ने हाथियों की मूर्ति को पार्टी चिह्न् बताए जाने के आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि भारतीय और विश्व संस्कृति में हाथी वास्तु कलात्मकता और स्वागत का प्रतीक माने गए हैं। उन्होंने इस सिलसिले में राष्ट्रपति भवन व अन्य जगहों पर लगी हाथियों की मूर्तियों का हवाला दिया है।
मायावती ने यह हलफनामा अपनी मूर्तियों के निर्माण पर करोड़ों रुपये खर्च किए जाने को लेकर वकील रविकांत की जनहित याचिका का जवाब में दाखिल किया है। पिछली सुनवाई पर कोर्ट ने मायावती से हलफनामा दाखिल कर यह बताने को कहा था कि क्यों न उनकी मूर्तियों के निर्माण पर हुआ खर्च उनसे वसूला जाए।
मालूम हो कि मायावती जब उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री थीं तब उन्होंने लखनऊ और नोएडा में दलित स्मारकों का निर्माण कराया था। वहां दलित नेताओं और संतों की मूर्ति के साथ अपनी मूर्तियां और हाथियों की मूर्तियां भी लगी हैं। रविकांत ने याचिका में इन मूर्तियों के निर्माण हुए सरकारी खर्च को मायावती और बसपा पार्टी से वसूले जाने की मांग की है।
मूर्तियों पर खर्च हुई राशि को शिक्षा, स्वास्थ्य आदि अन्य जरूरी चीजों पर व्यय करने की याचिकाकर्ता की दलीलों का जवाब देते हुए कहा है कि वैसे तो इन चीजों के लिए भी राज्य सरकार ने बजट में प्रावधान किए थे। बजट पर सदन में चर्चा होती है। लेकिन किस पर ज्यादा खर्च होना चाहिए और किस पर कम, यह राजनीतिक और नैतिक चर्चा का मुद्दा है न कि कानूनी।
स्मारकों, स्थलों और पार्को का निर्माण समाज सुधारकों की याद में उन्हें श्रद्धांजली देने के लिए राज्य सरकार ने कराया है। किसी भी स्मारक का नाम उनके नाम पर नहीं है। ये स्मारक लोगों को दलित, वंचित और गरीब वर्ग के उत्थान का काम करने वाले समाज सुधारकों और महान नेताओं से प्रेरणा लेने के लिए बनाए गए हैं।