बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने अपने शासनकाल में मूर्तियों की स्थापना को सही कदम माना है

 बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने अपने शासनकाल में मूर्तियों की स्थापना को सही कदम माना है। मायावती ने सुप्रीम कोर्ट को भेजे जवाब में साफ कहा है कि पैसा शिक्षा के साथ अस्पताल या फिर मूर्तियों पर खर्च हो, यह कोर्ट तय नहीं कर सकता है।

उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहते सूबे में मूर्तियों की स्थापना के मामले में मायावती ने सुप्रीम कोर्ट में जवाब दाखिल किया है। इसके बाद मायावती ने हलफनामा दाखिल कर कहा है कि उनकी मूर्तियां लगे, यह जनभावना थी। बसपा संस्थापक कांशीराम की इच्छा थी। दलित आंदोलन में उनके योगदान के चलते मूर्तियां लगवाई गई थी। मायावती ने अपने जवाब में यह भी कहा है कि यह पैसा शिक्षा पर खर्च किया जाना चाहिए या अस्पताल पर यह एक बहस का सवाल है और इसे कोर्ट से तय नहीं किया जा सकता है। हमने लोगों को प्रेरणा दिलाने के लिए स्मारक बनावए थे। इन स्मारकों में हाथियों की मूर्तियां केवल वास्तुशिल्प की बनावट मात्र हैं और बसपा के प्रतीक का प्रतिनिधित्व नहीं करते।

बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने अपने मुख्यमंत्री के कार्यकाल में उत्तर प्रदेश के शहरों में मूर्तियों की स्थापना को सही ठहराया और कहा कि मूर्तियां लोगों की इच्छा का प्रतिनिधित्व करती हैं। बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने हाथी की प्रतिमाओं पर पैसा खर्च करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट में अपना हलफनामा दाखिल किया है। हलफनामे में मायावती ने कहा कि दलित नेताओं की मूर्तियों पर ही सवाल क्यों। भाजपा और कांग्रेस ने भी जनता के पैसे का इस्तेमाल किया है। उनके सरकारी धन के इस्तेमाल पर सवाल क्यों नहीं हो रहा है। मायावती ने इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सरदार पटेल, शिवाजी, एनटी राम राव और जयललिता आदि की मूर्तियों का भी हवाला दिया।

उन्होंने कहा कि मेरा कार्य सिर्फ मेरी मर्जी से नहीं था। मायावती ने कहा कि राज्य की विधानसभा की इच्छा का उल्लंघन कैसे करूं। इन प्रतिमाओं के माध्यम से विधानमंडल ने दलित नेता के प्रति आदर व्यक्त किया है। मायावती ने मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए उनकी तरफ से इन मूर्तियों के लिए बजट का उचित आवंटन किया था। बजट को पास भी कराया गया है।

मायावती ने इसके साथ ही कहा कि सरकार का यह पैसा शिक्षा पर खर्च किया जाना चाहिए या अस्पताल पर यह एक बहस का सवाल है। अब इस मामले को अदालत से तय नहीं किया जा सकता है। उत्तर प्रदेश के विभिन्न शहरों में लोगों को प्रेरणा दिलाने के लिए महापुरुषों के स्मारक बनाए गए थे। इन स्मारकों में हाथियों की मूर्तियां केवल वास्तुशिल्प की बनावट मात्र हैं और यह सब बसपा के पार्टी प्रतीक का प्रतिनिधित्व नहीं करते।

सुप्रीम कोर्ट आज इस मामले में सुनवाई कर सकता है। इससे पहले पिछली सुनवाई में कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा था कि पहली नजर में उसका विचार है कि बसपा सुप्रीमो मायावती को प्रतिमाओं पर लगाया जनता का पैसा लौटाना चाहिए। एक वकील ने याचिका दायर की थी। जिसमें लखनऊ और नोएडा में मायावती और उनकी पार्टी के चिह्न हाथी की प्रतिमाओं पर सवाल उठाया गया था। याचिका में मांग की गई कि नेताओं को अपनी और पार्टी के चिह्न की प्रतिमाएं बनाने पर जनता का पैसा खर्च न करने के निर्देश दिया जाए। जिससे कि यह मामला नजीर बन सके और जनता के पैसे का सदुपयोग हो। 

याचिका में सरकारी खर्चे पर लगी मूर्तियों का खर्च मायावती से वसूलने की मांग है। पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि प्रथम दृष्टया तो बीएसपी प्रमुख को मूर्तियों पर खर्च किया गया जनता का पैसा लौटाना होगा। उन्हें यह पैसा वापस लौटाना चाहिए। याचिकाकर्ता रविकांत ने 2009 में दायर अपनी याचिका में दलील दी है कि सार्वजनिक धन का प्रयोग अपनी मूर्तियां बनवाने और राजनीतिक दल का प्रचार करने के लिए नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा था कि इस याचिका पर विस्तार से सुनवाई में वक्त लगेगा। इसे अप्रैल को अंतिम सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाता है। 

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण को लेकर व्यक्त की गई चिंता को देखते हुए मामले में अनेक अंतरिम आदेश और निर्देश दिए थे। निर्वाचन आयोग को भी निर्देश दिए गए थे कि चुनाव के दौरान इन हाथियों को ढंका जाये। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि मायावती, जो उस समय प्रदेश की मुख्यमंत्री थीं का महिमामंडन करने के इरादे से इन मूर्तियों के निर्माण पर 2008-09 के दौरान सरकारी खजाने से करोड़ों रुपये खर्च किए गए हैं।

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