पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव हरीश रावत आखिरकार नैनीताल संसदीय सीट से टिकट पाने में कामयाब हो ही गए। संगठन और केंद्रीय पर्यवेक्षकों की रिपोर्ट के बावजूद हरदा ने जिस तरह खुद को हरिद्वार से नैनीताल शिफ्ट करवाया, उसने साबित कर दिया कि सियासी दांवपेच के मोर्चे पर वह पार्टी के भीतर अपने प्रतिद्वंद्वियों पर भारी पड़े। दरअसल, हरीश रावत को नैनीताल से टिकट पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी के हस्तक्षेप के बाद ही हासिल हो पाया और इसके बाद उनकी राह रोकने की हिमाकत करना किसी के वश की बात नहीं थी।
पांच वर्षों में दिग्गजों ने छोड़ा दामन
पिछले पांच वर्षों के दौरान उत्तराखंड में कांग्रेस की जो स्थिति बनी है, उसका काफी कुछ ठीकरा हरीश रावत के ही सिर फोड़ा जाता है। पिछले लोकसभा चुनाव से ठीक पहले, यानी वर्ष 2014 की शुरुआत में विजय बहुगुणा को हटाकर कांग्रेस आलाकमान ने तत्कालीन केंद्रीय मंत्री व हरिद्वार सांसद हरीश रावत को मुख्यमंत्री बनाया तो इससे खफा होकर पूर्व केंद्रीय मंत्री सतपाल महाराज ने कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया। मार्च 2016 में पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के नेतृत्व में दस विधायकों ने कांग्रेस को दोफाड़ करते हुए भाजपा ज्वाइन कर ली। वर्ष 2017 में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले तत्कालीन कैबिनेट मंत्री व दो बार कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष रहे यशपाल आर्य भी भाजपा में शामिल हो गए।
पार्टी ने केंद्रीय राजनीति में किया शामिल
कांग्रेस उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में महज 11 सीटों पर सिमट गई और मुख्यमंत्री रहते हुए स्वयं हरीश रावत दो-दो सीटों से चुनाव हार गए। उत्तराखंड में कांग्रेस ने इसके बाद रावत को एक तरह से अप्रासंगिक घोषित कर दिया, बावजूद इसके रावत की सक्रियता में कोई कमी नहीं आई। पार्टी में बढ़ते अंतर्कलह के बाद आलाकमान ने रावत को राष्ट्रीय राजनीति में वापस बुलाकर उन्हें महासचिव की अहम जिम्मेदारी के साथ ही असोम का प्रभार सौंप दिया। इतना सब होने पर भी रावत ने उत्तराखंड की सियासत में अपना दखल बरकरार रखा। यह इसलिए, क्योंकि पार्टी के अधिकांश विधायक अब भी उन्हीं के साथ बने हुए हैं।
चुनाव के मौके पर नजरअंदाज करना मुश्किल
लोकसभा चुनाव की तैयारियां शुरू होने पर प्रदेश संगठन को उन्हें नजरअंदाज करना मुमकिन नहीं था। रावत क्योंकि वर्ष 2009 में हरिद्वार से सांसद चुने गए थे, लिहाजा संगठन ने उन्हें हरिद्वार तक ही सीमित करने की रणनीति को अमल में लाने का काम किया। इधर, चुनाव से पहले सपा-बसपा के बीच गठबंधन होने से हरिद्वार सीट पर कांग्रेस के लिए मुश्किलें तय थीं क्योंकि सपा-बसपा और कांग्रेस का वोट बैंक कमोवेश एक ही माना जाता है। यही वजह रही कि हरीश रावत ने ऐन वक्त पर हरिद्वार की बजाय नैनीताल से चुनाव मैदान में उतरने का मन बनाया। हालांकि संगठन के जरिये गई रिपोर्ट में उन्हें हरिद्वार से ही प्रत्याशी बनाए जाने पर जोर दिया गया।
आखिरकार अपनी बात मनवाने में रहे सफल
रावत के नैनीताल सीट पर दावे के कारण उत्तराखंड की तीन सीटों पौड़ी गढ़वाल, टिहरी और अल्मोड़ा में प्रत्याशी तय होने के बावजूद प्रत्याशियों की घोषणा में पेच फंस गया। कांग्रेस के उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक इसके बाद हरीश रावत के चुनाव लडऩे का मसला सीधे पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी के पास पहुंच गया। दो दिन पूर्व हरीश रावत की राहुल गांधी से नई दिल्ली में मुलाकात हुई। रावत कांग्रेस अध्यक्ष को कन्विंस करने में सफल रहे। सूत्रों के मुताबिक पार्टी आलाकमान तक उत्तराखंड के एक वरिष्ठ नेता का वायरल वीडियो भी पहुंचाया गया, जिसमें हरीश रावत की दावेदारी को लेकर तल्ख टिप्पणी की गई थी। इसके बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने हरीश रावत को ‘रिलेक्स’ रहने की बात कहते हुए उनके टिकट पर मुहर लगा दी।
हरीश रावत बोले
हरीश रावत (पूर्व मुख्यमंत्री, कांग्रेस महासचिव व नैनीताल से प्रत्याशी) का कहना है कि नैनीताल एक तरह से मेरा घर ही है। यहां के लोगों और उनकी समस्याओं से मेरा निरंतर जुड़ाव रहा है। नैनीताल संसदीय सीट हमेशा से नई सोच और नई संभावनाओं वाली सीट रही है। इसी सोच के मुताबिक मैं नैनीताल के लोगों के बीच चुनाव लड़ने आया हूं।