शिवसेना के मुखपत्र सामना में गोवा मे बनी बीजेपी सरकार और कांग्रेस पार्टी को लेकर निशाना साधा गया हैं. सामना में लिखा है, ‘दिवंगत मनोहर पर्रिकर का पार्थिव शरीर अनंत में विलीन हो गया, लेकिन उनके शरीर की राख गोमंतक की भूमि में विलीन होने से पहले ही सत्तारूपी कुर्सी का शर्मनाक खेल शुरू हो गया है. अंतत: ताक लगाकर बैठे बिल्ले की तरह अपना-अपना हिस्सा लेकर इस खेल को सोमवार की मध्यरात्रि के बाद खत्म कर दिया गया.’
गोवा के मुख्यमंत्री के रूप में सोमवार की मध्यरात्रि में प्रमोद सावंत ने शपथ ली. लोकतंत्र की इसे दुर्दशा ही कहनी पड़ेगी. पर्रिकर की चिता की आग को ठंडा होने तक तो रुकना चाहिए था. सोमवार की मध्यरात्रि की बजाय मंगलवार की सुबह हो गई होती तो गोवा पर ऐसा कौन-सा पहाड़ टूटनेवाला था? पर्रिकर के निधन से ये पहाड़ पहले ही गिर चुका है और उनके पार्थिव पर अर्पित किए गए पुष्पों का अभी निर्माल्य नहीं हुआ है, लेकिन बकासुर की तरह सत्तासुरों की हवस बढ़ने से रात के अंधेरे में ही सबकुछ संपन्न कराया गया.
‘सामना’ में बीजेपी को रात मे सरकार बनाने का कारण कांग्रेस पार्टी को ठहराया गया है. गोवा में ये सबकुछ रातों-रात घटित हुआ. जैसे ‘रात्रिस खेल चाले’ इस राजनीतिक मराठी टीवी धारावाहिक का चित्रीकरण ही मनोहर पर्रिकर के पार्थिव के परिप्रेक्ष्य में जारी था. चिता जल रही थी तथा सत्तातुर भूत सत्ता के लिए एक-दूसरे की गर्दन पर बैठ रहे थे. कम-से-कम चार घंटे रुकने में किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए थी. लेकिन सुबह तक कांग्रेस ने ढवलीकर, सरदेसाई को अपने खेमे में कर लिया तो क्या करेंगे?
इसी भय के चलते रात में सारा खेल समाप्त कर दिया गया. गोवा की जनता भी हतबलता के अलावा और क्या कर सकती है? हम सिर्फ सहानुभूति ही जता सकते हैं.