सीएमएस अलीगंज I द्वारा ‘डिवाइन एजुकेशन कान्फ्रेन्स’
लखनऊ : सिटी मोन्टेसरी स्कूल, अलीगंज (प्रथम कैम्पस) द्वारा ‘डिवाइन एजुकेशन कान्फ्रेन्स’ का भव्य आयोजन आज सी.एम.एस. गोमती नगर (द्वितीय कैम्पस) ऑडिटोरियम में किया गया। इस अवसर पर विद्यालय के छात्रों ने ईश्वर भक्ति से परिपूर्ण गीत-संगीत का अनूठा समाँ बाँधा तथापि अभिभावक आध्यात्मिक गुणों से भरे कार्यक्रम को देखकर गद्गद हो उठे व इसी में रम गये। समारोह में छात्रों ने अपने अभिभावकों के समक्ष विद्यालय द्वारा प्रदान की जा रही सर्वांगीण विकास की शिक्षा पद्धति का भरपूर प्रदर्शन करते हुए जीवन मूल्यों, विश्वव्यापी चिंतन, विश्व समाज की सेवा एवं उत्कृष्टता की अनूठी झलक दिखाई, साथ ही साथ ‘डिवाइन एजुकेशन कान्फ्रेन्स’ के माध्यम से स्कूली प्रक्रिया में अभिभावकों को साझीदार बनाने के सी.एम.एस. के प्रयास को सफल बना दिया।
उल्लास व आनन्द से सराबोर वातावरण में सम्पन्न हुए इस समारोह में छात्रों की कलात्मक प्रतिभा देखते ही बनती थी जिन्होंने विभिन्न कार्यक्रमों द्वारा दिखाया कि यह धरती हमारी माँ है तथा परमात्मा हमारा पिता है और हम सब विश्व नागरिक है। इस अवसर पर विभिन्न प्रतियोगिताओं में सर्वोच्चता अर्जित करने वाले छात्रों व वार्षिक परीक्षाओं में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले छात्रों को पुरष्कृत कर सम्मानित किया। इससे पहले, सी.एम.एस. संस्थापक व प्रख्यात शिक्षाविद् डा. जगदीश गाँधी ने दीप प्रज्वलित कर समारोह का विधिवत् शुभारम्भ किया। इस अवसर पर अभिभावकों को सम्बोधित करते हुए डा. गाँधी ने कहा कि घर का वातावरण, स्कूल का वातावरण तथा समाज का वातावरण ये तीनों प्रकार के वातावरण ही बालक के तीन स्कूल अथवा तीन क्लास रूम अथवा ज्ञान प्राप्त करने के तीन स्रोत होते हैं। वैसे तो इन तीनों प्रकार के वातावरण का प्रभाव बालक के मन और बुद्धि पर पड़ता है।
किन्तु इन तीनों में ‘सबसे अधिक प्रभाव’ ‘स्कूल के वातावरण’ का ही बालक के मन और बुद्धि तथा सम्पूर्ण जीवन पर पड़ता है। ऐसे में यह जरूरी है कि विद्यालय में नैतिक एवं आध्यात्मिक गुणो का वातावरण सदैव बना रहे, जिससे भावी पीढ़ी का संतुलित एवं सर्वांगीण विकास संभव हो। सी.एम.एस. अलीगंज (प्रथम कैम्पस) की वरिष्ठ प्रधानाचार्या श्रीमती ज्योति कश्यप ने अपने संबोधन में कहा कि अब समय आ गया है जब शिक्षा को सामाजिक परिवर्तन के एक प्रभावशाली उपकरण के रूप में प्रयोग किया जाना चाहिए। इसके साथ ही बालकों को ज्ञान-विज्ञान, कला, शिल्प, खेलकूद आदि में उत्कृष्टता अर्जित करने के लिए भरपूर प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। बच्चों को भौतिक व सामाजिक शिक्षा के साथ उनके चरित्र निर्माण तथा उनके हृदय में परमात्मा के प्रति प्रेम का विकास कर उन्हें विश्व नागरिक बनाया जा सकता है।