राजा-महराजाओं की शाही दुनिया हमेशा से लोगों के कौतुहल का विषय रही हैं। राजघरानों की कला, संस्कृति और लाइफ स्टाइल, आज भी बहुत से लोगों के लिए एक पहेली है। शायद यही वजह है कि राजघरानों के बारे में जानने के लिए लोगों में हमेशा उत्सुकता बनी रहती है। लेखक और लाइफ स्टाइल पत्रकार अंशु खन्ना, राजघरानों की इस रहस्यमय दुनिया से लोगों को रूबरू कराती हैं। इसके लिए हाल ही में उन्हें राष्ट्रपति के हाथों नारी शक्ति पुरस्कार (2018) से सम्मानित किया गया है।
अंशु खन्ना के अनुसार राजघरानों की अनोखी दुनिया से लोगों को रूबरू कराना और उनकी कला व संस्कृतिक को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाना उनका पैशन है। वह भारत के अलग-अलग राजपरिवार के लोगों से मिलतीं हैं और वहां पनपी उत्कृष्ट शिल्प कला, खानपान और वस्त्रों से आम लोगों को परिचित कराती हैं। इसके लिए वह जगह-जगह की यात्राएं करती हैं। उनके इसी पैशन ने उन्हें इतना प्रतिष्ठित सम्मान दिलाया है।
अंशु बताती हैं, ‘आप जानकर हैरान होंगे कि राजा-महाराजाओं वाले जमाने में ऊंची अटारियों वाले महलों में एक स्थान ऐसा होता था, जहां स्त्रियां अपने रचनात्मक कार्यों को अंजाम देती थीं। वे स्थानीय कलाकारों को भी अपनी कला के प्रदर्शन का आमंत्रण देती थीं।’ अंशु अपने जुनून के बारे में बताती हैं, ‘मैं स्त्रियों के फैशन और लाइफ स्टाइल पर काफी लंबे समय से लिखती रही हूं। लाइफ स्टाइल जर्नलिस्ट के तौर पर मैं शाही स्त्रियों से मिलती रहती थी। एक रिपोर्टिंग के सिलसिले में मैंने पाया कि रॉयल फैमिली की औरतें काफी हुनरमंद होती हैं, लेकिन वे शर्मीली होती हैं।’
अंशु बताती हैं, ‘शाही परिवार की स्त्रियों का क्राफ्ट उपेक्षित है, जबकि कई तरह की कलाएं राजमहलों में ही पनपीं। मुझे लगा कि उन्हें एक ऐसा मंच मिलना चाहिए, जिसमें ये एकत्रित होकर अपनी कला का प्रदर्शन कर सकें। इन कलाओं को ही संरक्षित करने और उनका प्रचार-प्रसार करने के लिए आज से 10 साल पहले ‘रॉयल फेबल्स’ संस्था की नींव पड़ी थी। शुरुआत में महल की स्त्रियों से मिलना तो दूर, इन्हें सड़क पर चलते हुए देखना और उन्हें कला के बाजार में स्थापित करना बहुत मुश्किल की बात थी।’
अंशु के अनुसार जयपुर, जोधपुर, बड़ौदा, पटियाला, त्रावणकोर, प्रतापगढ़ आदि कई रॉयल पैलेस हैं, जहां पहले महल के अंदर एक छोटी सी जगह स्थानीय कलाकारों को दे देते थे। यहां वे आराम से बैठकर रचनात्मक काम जैसे कि ज्यूलरी डिजाइन, पेंटिंग, स्टैच्यू मेकिंग, फर्नीचर मेकिंग और आर्किटेक्चर आदि करते थे। इस एरिया को राजमहल की स्त्रियां कारखाना कहा करती थीं। जयपुर के सिटी पैलेस के अंदर ऐसे 22 कारखाने हैं, जबकि किशनगढ़ में 3 कारखाने हैं।
अंशु के अनुसार, जब उन्होंने रॉयल फेबल्स के अंतर्गत शाही कला की प्रदर्शनी की शुरुआत की, तो महल की स्त्रियां स्टॉल के सामने शिफॉन की साड़ी में और सिर ढककर खड़ी होती थीं। उनमें अहंकार का भी भाव था। अंशु ने सबसे पहले उनके आस-पास का परिवेश बदला और फ्रेंडली एन्वॉयरमेंट क्रिएट किया। उसके बाद ये शाही स्त्रियां एक-दूसरे के साथ खड़ी हुईं। अकेली नहीं, बल्कि 45 शाही स्त्रियों ने एक साथ प्रदर्शनी में भाग लिया। किशनगढ की राजकुमारी ने तो किशनगढ़ स्टूडियो के नाम से स्टोर भी खोल लिया है।
अंशु, राजमहलों के कारखानों में गईं और उस कला और उसके कलाकार को पुर्नजीवित किया। उन लोगों ने जो भी सामग्री तैयार की, उसके लिए मार्केट तैयार किया। अपने देश के साथ साथ मोरक्को, बैंकॉक आदि में भी इनकी कला की प्रदर्शनी लगाई। इससे न सिर्फ राजमहल की स्त्रियों की कला बाहर आई, बल्कि स्थानीय कलाकार भी आर्थिक दृष्टि से संपन्न हुए।
इन दिनों अंशु ऑनलाइन स्टोर खोलने के प्रयास में लगी हैं, ताकि कलाकारों द्वारा तैयार किए गए माल की ज्यादा से ज्यादा बिक्री हो। अंशु शाही खानपान पर एक किताब किचन कल्चर लिखने वाली हैं। वे कहती हैं कि राजे-रजवाड़ों का खानपान एकदम अलग होता है। वे आपको बड़े प्यार और सम्मान से खिलाएंगे, लेकिन अपनी रेसिपी कभी शेयर नहीं करेंगे। बहुत से राजघरानों की रेसिपी अब तक एक रहस्य है। ऐसे में उन्हें अपनी इस किताब के लिए सामग्री जुटाने में काफी मशक्ककत करनी पड़ी।