बिहार में सीट शेयरिंग के मसले पर महागठबंधन में वामपंथी दलों को महत्व नहीं दिया जा रहा है। राजद-कांग्रेस द्वारा वामपंथी दलों को तवज्जो नहीं दिए जाने से उनकी ‘नो-एंट्री’ की आशंका प्रबल हो गई है। भाकपा, माकपा और भाकपा माले ने स्पष्ट कर दिया है कि अब गेंद राजद के पाले में है। उससे कई दौर की बातचीत हो चुकी है। यदि महागठबंधन से चुनावी तालमेल नहीं हुआ तो वामपंथी दल 15 से ज्यादा सीटों पर उम्मीदवार उतारेंगे।
‘गंभीर नहीं दिख रहा महागठबंधन’
माकपा के राज्य सचिव अवधेश कुमार कुछ इस अंदाज में कहते हैं, ‘लोकसभा चुनाव की तिथि करीब है पर वामदलों के साथ सीट शेयरिंग को लेकर महागठबंधन गंभीर नहीं दिख रहा है। इसमें देरी ठीक नहीं है। यदि महागठबंधन से चुनावी तालमेल नहीं हुआ तो पार्टी तीन सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी।’ कुछ इसी तरह के अंदाज में भाकपा के सचिव सत्य नारायण सिंह ने कहा, ‘यदि भाजपा को हराना है तो ‘लेफ्ट-सेक्युलर एलायंस’ जरूरी है। लेकिन राजद से कई दौर की बातचीत हुई है पर सीट शेयरिंग पर कोई संकेत नहीं मिला। पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व के निर्देश पर हम पहले से छह सीटों पर उम्मीदवार खड़ा करने की तैयारी में जुटे हैं।’
बात नहीं बनी तो एकजुट होकर चुनाव लड़ेंगे वाम दल
यदि बात नहीं बनी तो वामपंथी दल एकजुट होकर चुनाव लड़ेंगे। जैसा कि भाकपा माले के राज्य सचिव कुणाल कहते हैं-‘महागठबंधन से सीट शेयङ्क्षरग पर बात नहीं बनी है। ऐसी स्थिति में वाम दल साझा उम्मीदवार उतारेंगे। प्रदेश में ‘लेफ्ट पावर’ को इग्नोर नहीं किया जा सकता।’
पिछले चुनाव से लिया सबक
2014 के लोकसभा चुनाव में वाम दल बिखरे हुए थे और उन्होंने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। जाहिर है, नतीजा किसी वाम दल के हक में नहीं गया था। इस बार महागठबंधन से तालमेल नहीं हुआ तो 18 से 20 सीटों पर वाम दल चुनाव लडऩे की तैयारी में हैं। हालांकि, वाम दल एकता की बात करते हैं, लेकिन चुनाव के वक्त एक दूसरे के खिलाफ उम्मीदवार खड़े कर देते हैं।