चुनाव लोकसभा का या फिर विधानसभा का, दिल्ली की अनधिकृत कॉलोनियों का मुद्दा राजनीतिक दलों लिए अहम रहा है। अब चुनाव में एक महीने से भी कम समय रह गया है, ऐसे में केंद्र में सत्तासीन भारतीय जनता पार्टी (BJP) सरकार ने दिल्ली की अनधिकृत कॉलोनियों को लेकर बड़ा दांव खेला है। इसके तहत बृहस्पतिवार को केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में यह फैसला किया गया कि दिल्ली की अनधिकृत कॉलोनियों को किस तरह से अधिकृत कॉलोनियों में बदला जा सकता है, इसके उपाय तलाशे जाएं।
लोकसभा चुनाव से पहले केंद्र सरकार ने खेला बड़ा दांव
कैबिनेट बैठक में यह निर्णय लिया गया है कि इसके लिए दिल्ली के उपराज्यपाल में एक कमेटी बनाई जाएगी। ये कमेटी तीन महीने के अंदर अपनी रिपोर्ट देगी। इस रिपोर्ट में इस बात का जिक्र होगा कि कॉलोनियों को नियमित करने के लिए किन उपायों को अपनाया जा सकता हैं?
- 1797 अनधिकृत कॉलोनियां हैं दिल्ली में
- 40 फीसद आबादी दिल्ली की इनमें रहती है
- 1982 में एशियन गेम्स के वक्त हुई शुरुआत
- 1993 में पहली बार हुई नियमित करने की कोशिश
- 1071 कॉलोनियों को नियमित करने की घोषणा हुई 1993 में
यहां पर बता दें कि वर्ष 1797 से ही अनधिकृत कॉलोनियों में बड़ा गंभीर पेंच फंसा हुआ है। इन कॉलोनियों को नियमित करने के लिए कई बार निर्णय लिए गए, लेकिन कानून-नियमों के चलते एक भी कॉलोनी अभी तक नियमित नहीं हो पाई है। केंद्र सरकार इन कॉलोनियों को नियमित करने के लिए प्रोविजनल सर्टिफिकेट तक दे चुकी है, लेकिन नतीजा शून्य ही रहा है।
गौरतलब है कि 1982 में राजधानी में एशियन गेम्स को लेकर दूसरे राज्यों से लाखों लोग निर्माण व अन्य कार्यों को लेकर दिल्ली आए थे, उन्होंने दिल्ली में आशियाना बनाना शुरू किया और किसानों से उनकी जमीन लेकर घर बनाने शुरू कर दिए। कुछ दबंग लोगों ने भी सरकारी जमीन पर कब्जा कर लोगों को बसाना शुरू कर दिया। ऐसे में दिल्ली में अनधिकृत कॉलोनियों के बसने का सिलसिला तेजी से शुरू हुआ। सबसे पहले पश्चिमी दिल्ली में इसका आगाज हुआ, उसके बाद पूरी दिल्ली में अनधिकृत कॉलोनियों का जाल फैल गया। माना जाता है कि अब दिल्ली की 40 प्रतिशत आबादी इन अनधिकृत कॉलोनियों में रहती है।