भारत-पाकिस्तान के रिश्तों में उबाल क्या आया कि ईनामउल्लाह बिल्डिंग निवासी तसलीम मलिक के लिए अपनी सगी बहन से बात करना दूभर हो गया है। यही हाल खुड़बुड़ा निवासी संगीता का भी है। इन दो मुल्कों के रिश्ते, इन दिनों खून के रिश्तों का इम्तिहान ले रहे हैं। लोग प्रार्थना कर रहे हैं कि जल्द दोनों देशों के रिश्ते सामान्य हों ताकि अपनों की खैर खबर ले सकें। भारत-पाकिस्तान के विभाजन को अब 70 साल से अधिक का समय हो गया है। लेकिन दोनों मुल्कों के बीच रोटी-बेटी का रिश्ता अब भी कायम है। रोटी-बेटी के इसी रिश्ते की मिसाल, बिल्डिंग में नया नगर निवासी तसलीम मलिक का परिवार है। उनकी सगी बहन यास्मीन की शादी 1990 में लाहौर में हुई है।
दून टैक्सी ऑनर्स एसोसिएशन के सचिव तसलीम मलिक बताते हैं कि बहन दो साल बाद लाहौर से देहरादून आने जा रही थी, उन्हें वीजा भी मिल गया है। लेकिन इस बीच अचानक हालत खराब हो गए, जिस कारण बहन का आना संभव नहीं हो पाया। तसलीम बताते हैं कि उनकी भांजी का इसी महीने लाहौर में बच्चा हुआ है, लेकिन, वो भांजी से फोन पर बात नहीं कर पा रहे हैं। कारण, इन दिनों पाकिस्तान में की गई किसी भी कॉल को लेकर सरकारी अमला पूछताछ करने लगता है। ऐसी ही पीड़ा टर्नर रोड निवासी मोहम्मद जफर बयां करते है। उनकी छोटी बहन अजरा का ससुराल भी लाहौर में है। जफर बताते हैं कि हालात ही कुछ ऐसे बन जाते हैं कि बहन से ज्यादा बात नहीं हो पाती। और फिर ऐसे माहौल में तो बिल्कुल भी नहीं।
अमन की उम्मीद हर बार पड़ जाती है फीकी
हनुमान चौक पर बर्तन कारोबारी नानक चंद भी पाकिस्तान पारा चिनार से नाता तोड़कर देहरादून आए हैं। तीन साल पहले ही उन्हें दो दशक इंतजार के बाद भारतीय नागरिकता मिली है। नानक चंद बताते हैं कि दोनों तरफ के लोग अमन चाहते हैं, लेकिन हर बार किसी ना किसी वजह से अमन की आस फीकी पड़ जाती है। उन्हें उम्मीद हे कि जल्द दोनों मुल्कों के रिश्ते सामान्य होंगे।
पिता से नहीं मिल पाई बेटी
देहरादून के खुड़बुड़ा निवासी संगीता तो अभी आठ साल पहले ही पार चिनार पाकिस्तान से ब्याह कर, देहरादून आई है। संगीता के पिता और दो भाई अब भी वहीं अपना कारोबार करते हैं, संगीता अभी खुद लंबी अवधि की वीजा पर रह रही है। इस कारण शादी के बाद वहां जाना मुमकिन नहीं हो पा रहा है। अब हालात सामान्य हो तो वो अपनों की खबर ले।