वह बॉर्डर पर रहता है,शीत और आतप सहता है। जब भी जाता है वह सरहद पर, सिल जाते हैं होंठ। बीवी की भर आती हैं आंखें। मां से पापा के वापस घर आने का चर्चा रहता है बच्चों की जुबां पर। पल-पल मौत के साए में बैठे जांबाजों के सच के साथ एक सच और भी है जो बड़ी खामोशी से अपनी बहादुरी दिखाता है। वह है इन जवानों के परिवारवाले। देश की रक्षा में लगे जवानों के परिवारवालों ने जब अपने दर्द को साझा किया तो उनकी पीड़ा, चिन्ता के साथ बहादुरी-हिम्मत को सबने सैल्यूट किया और कहा- कोई यू हीं नहीं देश का लाल कहलाता।
मां का कलेजा है। टीस तो उठती ही है कि पता नहीं मेरा लाल कैसा है मगर हिम्मत भी रहती है कि वह अकेला तो नहीं है। हजारों सैनिक उसके साथ हैं। वजीरगंज के हथिनाग की सुशीला यह कहते हुए फफक पड़ती हैं। कहती हैं कि दो साल पहले बेटा सैनिक बना। 5 फरवरी के बाद से उससे बात नहीं हो पाई है। रह-रहकर कलेजा मुंह को आता है कि वह ठीक तो है न। ईश्वर पर भरोसा है। बेटा जब भी घर से वापस जाता है तो मुझे रोते देख कहता है कि मां अगर सभी मां ऐसा करेंगी तो भारत मां की रक्षा कौन करेगा। उसकी यह बात मुझे हौसला देती है। जब तक वह बाहर रहता है, मेरी आंखों से नींद गायब रहती है।
नियामतपुर की शालिनी पाण्डेय का पति सेना में है। शालिनी कहती है कि जब से कश्मीर वाला हादसा हुआ, हमारे घर का फोन बंद ही नहीं हो रहा। सभी जानना चाहते हैं कि पति विनोद कुमार पाण्डेय ठीक तो है न। 3 साल हो गए पति को सेना में गए मगर अब भी उसकी सलामती की चिन्ता हमेशा डर बनकर मन में बैठी रहती है। एक-दूसरे को हिम्मत बंधाते हम यही हौसला रखते हैं कि अगर इस तरह डरे तो फिर देश की रक्षा कौन करेगा।
देश की खातिर बेटे को भी बनाया फौजी: राजेश्वरी कहती हैं कि मेरे पति भी फौज में थे और अब बेटा है। पति रिटायर चुके हैं मगर मुझे एक पल को यह नहीं सोचना पड़ा कि बेटा फौज में नहीं जाए। चिन्ता कैसे नहीं होगी। बच्चा अगर बाजार तक चला जाता है तो एक मां को चिन्ता रहती है। यहां तो हर पल उसकी जान का खतरा ही रहता है।
पांच महीने के बच्चे के साथ आयीं प्रतिभा कहती हैं कि पति अभी जम्मू में ही कार्यरत हैं। ये हादसे दिल को दहला देते हैं मगर फौजी की बीवी हूं तो इतना हौसला और डर पर काबू तो रखना ही होगा।