दुष्कर्म मामले में सजायाफ्ता आशाराम बापू को हाईकोर्ट ने फिर बड़ा झटका लगा है। मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने आशाराम के ऋषिकेश मुनि की रेती ब्रह्मपुरी निरगढ़ में वन भूमि पर कब्जे को अतिक्रमण मानते हटाने तथा वन विभाग को जमीन कब्जे में लेने के आदेश पारित किए हैं।
दरअसल 23 फरवरी 2013 को अपर मुख्य मुख्य वन संरक्षक राजेन्द्र कुमार ने रेन फारेस्ट हाउस निवासी स्टीफन व तृप्ति के शिकायती पत्र पर कार्रवाई के आदेश डीएफओ नरेंद्रनगर को दिए थे।शिकायत में उल्लेख किया गया था कि आशाराम आश्रम के कर्मचारियों द्वारा अतिक्रमण कर नाले में दीवार बना दी है।जिस भूमि पर कब्जा किया था उसकी लीज लक्ष्मण दास के नाम थी, जो कालातीत हो गई मगर आशाराम के कर्मचारियों ने अतिक्रमण कर डाला। नौ सितंबर को वन विभाग की ओर से वन भूमि खाली करने का नोटिस आशाराम को दिया गया तो 17 सितंबर 2013 को हाईकोर्ट ने नोटिस पर रोक लगा दी।
इसके बाद वन विभाग द्वारा मामले में इंटरवेंशन डाली गई। वन विभाग की ओर से अधिवक्ता कार्तिकेय हरीगुप्त ने अदालत को बताया कि लीज 1970 में समाप्त हो चुकी है और कानूनी रूप से लीज ट्रांसफर नहीं हो सकती। एकलपीठ ने मामले को सुनने के बाद स्टे ऑडर निरस्त कर दिया। एकलपीठ के आदेश को आशाराम आश्रम की ओर से विशेष अपील दायर कर चुनौती दी गई। जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया।