लखनऊ : सीआरपीएफ के शहीद जवानों की चिताओं पर धधकते शोलों से भी तेज दहक रहा है भारतीय जनमानस का मन। पूरे देश को झकझोर कर रख देने वाले पुलवामा आतंकी घटना ने देश को एक सूत्र में पिरो दिया है। ‘मुस्कुराने की आप लखनऊ में हैं’ का नारा देने वाले शहर में लोगों का आक्रोश थमने का नाम नहीं ले रहा है। 48 घंटे से ऊपर बीत जाने के बाद तक गांधी प्रतिमा के सामने प्रदर्शन बंद नहीं हुआ। क्या अमीर, क्या गरीब, क्या ऊंच, क्या नीच, क्या जाति, क्या धर्म। सामाजिक बंटवारा करने वाली ये सारी दीवारें फिलहाल जमींदोज दिख रही हैं। दिख रहा है तो गुस्सा और केवल गुस्सा। इस हादसे में सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश के एक दर्जन जवान शहीद हुए हैं, जिसके चलते यह प्रदेश सबसे ज्यादा उबल रहा है।
हमेशा मुस्कुराने का संदेश देने वाले लखनऊ के चेहरे पर भी उदासी के साथ भयानक गुस्सा है। अजब की नाराजगी है। राजधानी की तमाम सड़कों पर शहीदों के अमर रहने का हुंकार भरती भीड़ पाकिस्तान की ऐसी तैसी कर रही है। इन प्रदर्शनों का ना तो कोई आयोजक है और ना ही कोई प्रायोजक। सड़क पर गुस्से भरे चेहरों के साथ नारे लगाने वाली इस भीड़ में युवा हैं तो अधेड़ भी हैं। बुजुर्ग भी हैं, महिलाएं भी हैं। हिंदू भी हैं तो मुसलमान, सिख, जैन भी हैं। गुस्से भरी इस भीड़ को ना तो इंटरनेशनल राजनीति से मतलब है और ना ही प्रधानमंत्री के 56 इंची सीने से, इन्हें रंज इस बात का है कि देश अब तक जवानों लाशें गिनने के अलावा कुछ नहीं कर सका है। उन्हें गम बात बहादुर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के क्रियाकलापों से है।
इसी भीड़ में शामिल युवा अभिषेक जायसवाल कहता है, ‘हम ने राष्ट्रवाद के नाम पर इसलिये भाजपा और नरेंद्र मोदी को नहीं चुना था कि हम केवल जवानों के सिर और शरीर की गिनती करते रहें। हमनें तो एक के बदले दस सिर लाने के लिये मोदी को चुना था, लेकिन यह केवल छप्पन इंच सीना लेकर घुमने वाले बात बहादुर निकल गये।’ श्रद्धांजलि देती इस भीड़ को गुस्सा इस बात का भी है कि आतंकियों और पाकिस्तानियों को तत्काल भले ना मारें, लेकिन सरकार सिंधु नदी का पानी तो पाकिस्तान को तत्काल देना बंद कर सकती है। शहीदों की शहादत का जश्न मनाने वालों को तो सबक सिखा सकती है।