प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नोटबंदी के फैसले का सबसे ज्यादा असर रियल एस्टेट सेक्टर पर पड़ा. आसमान छू रही कीमतों में सुधार शुरू हुआ जो अभी तक जारी है. इसका सबसे बड़ा कारण माना गया कि रियल एस्टेट में ब्लैकमनी का जमकर इस्तेमाल होता है, इसलिए कीमत आसमान छू रही थी. मोदी सरकार इसके बाद RERA (रियल एस्टेट रेगुलेशन एक्ट) कानून लेकर आई. इसके बावजूद CAG की रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा किया गया है. कैग की रिपोर्ट के मुताबिक, 95 फीसदी रियल एस्टेट कंपनियां जो RoC (रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज) में रजिस्टर्ड हैं, उनके पास पैन कार्ड तक नहीं हैं या इसकी जानकारी RoC के पास नहीं है. कैग ने यह रिपोर्ट संसद में सौंपी है.
कंपनी पंजीयक (आरओसी) के पास उस समय की जानकारी होती है जब कंपनियों को बनाते समय पंजीकरण कराया जाता है. कंपनियों को आरओसी के पास वार्षिक रिटर्न दाखिल करना होता है. कंपनीज (प्रबंधन एवं प्रशासन) नियम, 2014 के तहत फार्म एमजीटी-7 में कंपनी को अपनी वार्षिक रिपोर्ट दाखिल करनी होती है जिसमें अनिवार्य रूप से पैन नंबर देना होता है. कैग ने कहा कि उसे सिर्फ 12 राज्यों के आरओसी से रियल एएस्टेट क्षेत्र में कारोबार कर रही कंपनियों का ब्योरा मिला है.
कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि कुल 54,578 रियल एएस्टेट कंपनियों के आंकड़े ऑडिट के लिए उपलब्ध कराए गए हैं. आरओसी के पास इनमें से 51,670 (95 प्रतिशत) कंपनियों के पैन की सूचना नहीं है. रिपोर्ट में राजस्व विभाग द्वारा 2013-14 से 2016-17 के वित्त वर्षों के दौरान रियल एएस्टेट क्षेत्र के आकलनकर्ताओं के आकलन संबंधी प्रदर्शन ऑडिट के नतीजों को उल्लेखनीय रूप से शामिल किया गया है. ऑडिटर ने कहा कि आरओसी से मिली सूचना के आधार पर यह ऑडिट करना काफी कठिन है कि क्या कंपनियों आयकर विभाग के कर दायरे में हैं या नहीं. सिर्फ आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के मामले में यह सूचना उपलब्ध है. इन दोनों राज्यों में ऑडिट के दौरान 147 कंपनियों का पैन नंबर उपलब्ध था.
रिपोर्ट में कहा गया है कि ऑडिट के जरिये यह पता लगाने का प्रयास किया गया कि आरओसी के आंकड़ों में शामिल कंपनियां जिनका पैन है नियमित रूप से आकयर रिटर्न दाखिल कर रही हैं या नहीं. रिपोर्ट के अनुसार 840 कंपनियों ऐसी कंपनियां जिनके पास पैन था और जो चुनिंदा आकलन के तहत आती हैं, उनमें से 159 यानी 19 प्रतिशत कंपनियां आयकर रिटर्न दाखिल नहीं कर रही थीं. कैग ने अपनी रिपोर्ट में निष्कर्ष निकाला है कि आयकर विभाग के पास ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि सभी पंजीकृत कंपनियां जिनके पास पैन है वे नियमित रूप से आयकर रिटर्न दाखिल करें.