सिस्टम की लापरवाही से लगी आग के बाद उस ख़बर की बात करते हैं, जो हमें हर रोज़ चोट पहुंचाती है और हम भारी मन से इस चोट का विश्लेषण करते हैं. आज जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में सुरक्षाबलों ने एक Encounter किया है, जिसमें हिजबुल मुजाहिद्दीन का आतंकवादी हिलाल अहमद मारा गया है. ये वही आतंकवादी है, जिसने पिछले साल लश्कर ए तैय्यबा के कमांडर नवीद जट्ट को पुलिस की गिरफ्त से छुड़ाया था. सुरक्षाबलों को अपने मुखबिरों से इस आतंकवादी के छिपे होने की ख़बर मिली थी. जिसके बाद राष्ट्रीय राइफल्स, CRPF और स्थानीय पुलिस ने एक साथ मिलकर इलाके में Cordon And Search Operation शुरू कर दिया. इसी दौरान हिलाल अहमद ने सुरक्षाबलों पर फायरिंग शुरु कर दी. लेकिन जवाबी कार्रवाई में उसे उसके अंजाम तक पहुंचा दिया गया. इस बीच दुखद ख़बर ये है, कि Encounter के दौरान एक सैनिक को अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ी.
हालांकि, हमेशा की तरह इस बार भी Encounter वाली जगह पर पत्थरबाज़ों की फौज ने सुरक्षाबलों के काम में बाधा डालने की कोशिश की. उनकी गाड़ियों पर पथराव किया गया और उन्हें चोट पहुंचाई गई. ये उसी वक्त की तस्वीरें हैं. पत्थरबाज़ी की इन तस्वीरों को देखते वक्त क्या आपने एक चीज़ Notice की? सुरक्षाबलों के जवान अपनी गाड़ियों पर और अपने शरीर पर पत्थर की चोट सहते रहे, लेकिन उनकी बंदूक, एक बार भी पत्थरबाज़ों की तरफ नहीं मुड़ी और अच्छी बात ये है, कि हर बार भारत के सैनिक इन पत्थरबाज़ों के साथ ऐसा ही सभ्य व्यवहार करते हैं. इसके बावजूद कोई उनके काम की तारीफ नहीं करता. बल्कि सब उनका अपमान करते हैं. आपने हमारे देश के बुद्धिजीवियों को, मानव अधिकारों के चैम्पियंस को, डिज़ाइनर पत्रकारों और नेताओं को भारत के सुरक्षाबलों के संदर्भ में एक बात कहते हुए सुना होगा. ये लोग अक्सर जम्मू-कश्मीर में तैनात भारत के सुरक्षाबलों पर आरोप लगाते हैं, कि हमारे जवान घाटी में ‘War Crimes’ करते हैं, लेकिन इनमें से किसी को ये नहीं पता कि ‘War Crime’ का मतलब क्या होता है?
इसलिए आज तस्वीरों और तथ्यों की मदद से हम इस शब्द को Decode करेंगे. इसके लिए एक तरफ हम पाकिस्तान की सेना को रखेंगे। और दूसरी तरफ होंगे भारत के सुरक्षाबल. इन दिनों Social Media पर पाकिस्तान की सेना के एक Video की चर्चा हो रही है, जिसमें वो बलोचिस्तान के एक निहत्थे Activist को Point-Blank Range यानी बहुत क़रीब से गोली मारते हुए दिखाई दे रहे हैं. और खुद पाकिस्तान के लोग और वहां के पत्रकार इसे War Crime कह रहे हैं. सबसे पहले इस शब्द का मतलब समझिए.
War Crime एक ऐसा जघन्य अपराध होता है, जिसमें कोई व्यक्ति युद्ध के नियमों के खिलाफ जाकर अनैतिक कार्रवाई करता है. जानबूझकर किसी आम नागरिक या युद्ध बंदी को प्रताड़ित करना, उनकी हत्या करना, उनकी संपत्ति को नुकसान पहुंचाना, उन्हें बंधक बनाना, बलात्कार करना और बच्चों को सैनिकों की तरह इस्तेमाल करने जैसे अपराध, War Crimes के अंतर्गत आते हैं.
आपने War Crime का मतलब तो समझ लिया. अब पाकिस्तान की सेना का ये Video देखिए और War Crime की परिभाषा के तहत आने वाले जघन्य अपराधों को याद कीजिए. एक निहत्थे व्यक्ति को Point-Blank Range से लगातार गोलियां मारना. यही है पाकिस्तान और वहां की सेना का चरित्र और सही मायने में ये War Crime का सबसे बड़ा और वीभत्स उदाहरण है. दूसरी तरफ भारत के सुरक्षाबलों का काम करने का तरीका बिल्कुल अलग है.
आज आप वर्ष 2017 की ये तस्वीर एक बार फिर देखिए.
दो साल पहले, कश्मीर घाटी में हुए उपचुनाव के बाद, जब CRPF के जवान पोलिंग बूथ से अपनी Duty करके वापस लौट रहे थे, उस वक्त उनका घोर अपमान हुआ था. CRPF के जवानों का मनोबल तोड़ने के लिए उस वक्त पत्थरबाज़ों ने उनके सामने Go India Go Back के नारे लगाए थे, लेकिन सुरक्षाबल चुपचाप आगे बढ़ते रहे. उसी दौरान किसी ने हाथ में मोटी सी लकड़ी लेकर उन्हें मारने का इशारा भी किया, फिर भी वो चुप रहे. एक पत्थरबाज़ ने एक जवान को पैर से मारा. फिर भी उस जवान ने संयम से काम लिया और किसी को कुछ नहीं कहा. एक जवान के हाथ में मौजूद Helmet को पैर से ठोकर मारकर गिरा दिया गया. फिर भी वो चुपचाप चलता रहा. दो साल पहले CRPF के जवानों को इन्हीं पत्थरबाज़ों ने थप्पड़ भी मारा था और उस वक्त वहां मौजूद दूसरे पत्थरबाज़ सीटियां बजाकर सुरक्षाबलों को उकसाने की कोशिश कर रहे थे. लेकिन हमारे देश के जवानों ने अपमान का कड़वा घूंट पीने के बावजूद, किसी से कुछ नहीं कहा था.
हमें लगता है, कि सहनशीलता की इससे बड़ी मिसाल नहीं हो सकती, क्योंकि हाथों में अत्याधुनिक हथियार होने के बावजूद, भारत के सैनिक कभी भी पत्थरबाज़ों पर हमला नहीं करते. इसके बावजूद टुकड़े-टुकड़े गैंग का समर्थन करने वाले लोग, इन्हीं सैनिकों पर War Crimes में शामिल होने का आरोप लगाते हैं. हैरानी की बात ये है कि इन लोगों को पाकिस्तान की सेना का असली चेहरा दिखाई नहीं देता. पुलवामा में आज जो कुछ भी हुआ उस पर भी आपने किसी बुद्धिजीवी को ये कहते हुए नहीं सुना होगा कि इन पत्थरबाज़ों का इलाज करना होगा. ये बुद्धिजीवियों का दोहरा चरित्र है और आज इस चरित्र को पहचानने की ज़रूरत है.