अब हम उस ख़बर का विश्लेषण करेंगे, जो देश के हर न्यूज़ चैनल पर आपको सुबह से दिख रही है. आज लखनऊ में कांग्रेस की नई महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा का रोड शो था और इस रोड शो को भव्य बनाने की जितनी तैयारी कांग्रेस ने की थी, उससे भी कहीं ज्यादा तैयार थे.. हमारे देश के न्यूज़ चैनल. राजनीति में प्रियंका गांधी की औपचारिक Entry की कवरेज के लिए संवाददाताओं की फौज उतरी हुई थी और ऐसा लग रहा था कि जैसे प्रियंका वाड्रा ने आज ही चुनाव जीत लिया हो और आज ही शपथ ले ली हो.
जबकि ज़मीनी हकीकत ये है कि अभी प्रियंका वाड्रा सिर्फ प्रचार की कमान संभालने के लिए उत्तर प्रदेश में आई हैं. अब सवाल ये है कि क्या प्रियंका वाड्रा की इस राजनीतिक Entry ने बीजेपी की चिंताएं बढ़ाई हैं? जिस उत्तर प्रदेश की जनता ने पिछले 30 वर्षों से कांग्रेस से दूरियां बनाई हुई हों, क्या उस जनता पर प्रियंका गांधी वाड्रा का जादू चल पाएगा? क्या महागठबंधन के बिना लड़ने वाली कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश में गांधी परिवार की सीटों के अलावा कोई दूसरी सीट जीत पाएगी? ये कुछ ऐसा सवाल हैं, जिनके जवाब देना अभी तो मुश्किल है, लेकिन इन सवालों पर राजनीतिक चर्चाएं ज़रूर हो रही हैं.
आज हम प्रियंका वाड्रा के रोड शो का विश्लेषण करेंगे। ये रोड शो आज दोपहर में करीब 1 बजे लखनऊ एयरपोर्ट से शुरू हुआ था. प्रियंका के साथ उनके भाई राहुल गांधी के अलावा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रभारी ज्योतिरादित्य सिंधिया भी थे. इसके अलावा कांग्रेस के और भी कई बड़े नेता इस रोड शो में शामिल थे. इस रोड शो के लिए एक विशेष Open Bus का इंतज़ाम किया गया था, जिसमें कांग्रेस के ये सभी नेता सवार थे. और इस बस को लखनऊ में कांग्रेस के दफ़्तर तक जाना था, लेकिन सिर्फ 15 किमी की इस दूरी को तय करने में 5 घंटे लग गए। क्योंकि सड़क के दोनों तरफ कांग्रेस के कार्यकर्ता प्रियंका गांधी का स्वागत कर रहे थे. कई जगहों पर राहुल गांधी ने अपने कार्यकर्ताओं से बात भी की. और रास्ते भर राहुल गांधी बीच बीच में अपने कार्यकर्ताओं से ‘चौकीदार चोर है’ के नारे लगवा रहे थे.
लेकिन क्या ये रोड शो कांग्रेस के लिए वाकई फायदेमंद रहेगा? क्या गांधी परिवार के पैराशूट से प्रियंका वाड्रा को लखनऊ में उतारकर, कांग्रेस उत्तर प्रदेश की सबसे महत्वपूर्ण लड़ाई को जीत पाएगी. इसका विश्लेषण हम आगे करेंगे, लेकिन सबसे पहले आप इस रोड शो की ग्राउंड रिपोर्ट देखिए और तस्वीरों की मदद से ये समझिए कि प्रियंका वाड्रा आज दिन भर Headlines में क्यों बनी रहीं?
अब आपको उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी का पुराना रिपोर्ट कार्ड दिखाते हैं. उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी का राजनीतिक रूप से बहुत बुरा हाल है. 2014 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी को यहां 80 में से सिर्फ 2 सीटें ही मिली थीं और वो दोनों सीटें भी राहुल गांधी और सोनिया गांधी की थीं. 2014 में कांग्रेस पार्टी को उत्तर प्रदेश में सिर्फ 7.5% वोट मिले थे.
इसी तरह से 2017 के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस बहुत बुरी तरह हार गई थी. 2017 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर लड़ा था. और इस विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सिर्फ 7 सीटें मिली थीं और उसका वोट प्रतिशत घटकर 6.2% रह गया था. उत्तर प्रदेश में आखिरी बार कांग्रेस पार्टी की सरकार 1989 में थी. यानी 30 वर्ष पहले और तब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, नारायण दत्त तिवारी.
यानी उत्तर प्रदेश की जनता एक तरह से कांग्रेस को भूल चुकी है. उसे कांग्रेस के बिना रहने की आदत सी हो गई है और ऐसे माहौल में अब करीब 30 साल बाद प्रियंका वाड्रा राजनीति के मैदान में आई हैं. हमारे सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस पार्टी के पास लोकसभा चुनाव जीतने वाले 15 से 20 प्रत्याशी भी नहीं हैं. जिस पार्टी के पूरे राज्य में सिर्फ दो सांसद और 7 विधायक हों, उस पार्टी के कार्यकर्ताओं का मनोबल कितना कमज़ोर होगा, इसका आप अंदाज़ा लगा सकते हैं.
इसलिए प्रियंका वाड्रा के सामने सबसे पहले तो चुनौती ये होगी कि वो ऐसे प्रत्याशी खोजें जो चुनाव में जीत सकें. प्रियंका वाड्रा ने अपने ज़िला अध्यक्षों से पूर्व विधायकों, सांसदों और पार्टी के बड़े नेताओं की लिस्ट मंगवाई है. वो इन सबसे मिलेंगी और कांग्रेस की चुनौतियों पर विमर्श करेंगी.
कांग्रेस ने प्रियंका वाड्रा को इतने ज़ोर शोर से उत्तर प्रदेश में इसलिए उतारा है ताकि जनता के बीच ये संदेश ना जाए कि उत्तर प्रदेश से कांग्रेस पूरी तरह खत्म हो चुकी है. इसलिए प्रियंका वाड्रा का पहला लक्ष्य ये है कि वो कांग्रेस के वोट प्रतिशत को Double Digit यानी कम से कम दो अंकों में लेकर जाएं. हमारे सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस पार्टी ऐसे प्रत्याशियों को तलाश रही है, जो अपनी सीट जीत पाएं. यानी कांग्रेस पार्टी चुनाव जीतने से भी ज़्यादा अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए चुनाव लड़ रही है. इस संघर्ष में अगर कांग्रेस पार्टी की सीटें दो से बढ़कर 10 भी हो जाएंगी, तो ये भी उसकी ही जीत होगी और इसके लिए कांग्रेस की नज़र मुसलमान वोटर पर है.
मुसलमान परंपरागत रूप से कांग्रेस के वोटर रहे हैं. लेकिन समाजवादी पार्टी और बीएसपी के आने के बाद इन दोनों पार्टियों ने भी मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाई है. अब उत्तर प्रदेश के लोकसभा चुनाव में BSP और SP का गठबंधन हो गया है और कांग्रेस इस गठबंधन से अलग है. इसलिए अब इस बात की भी आशंका है कि मुसलमानों के वोट इन तीनों पार्टियों के बीच बंट जाएंगे. और ऐसे में इसका फायदा बीजेपी को हो सकता है.
यहां आपको उत्तर प्रदेश का राजनीतिक नक्शा भी देखना चाहिए. इस नक्शे को हमने दो हिस्सों में बांटा है. पहला हिस्सा है, पूर्वी उत्तर प्रदेश का जहां कांग्रेस ने प्रियंका वाड्रा को प्रभारी बनाया है और दूसरा हिस्सा है पश्चिमी उत्तर प्रदेश का, जहां का प्रभारी ज्योतिरादित्य सिंधिया को बनाया गया है. उत्तर प्रदेश में लोकसभा की कुल 80 सीटें हैं और इनमें से 42 सीटें पूर्वी उत्तर प्रदेश में हैं, जिनकी ज़िम्मेदारी प्रियंका वाड्रा को दी गई है. जबकि बाकी की बची हुई 38 सीटों की ज़िम्मेदारी ज्योतिरादित्य सिंधिया को दी गई है.
2014 के लोकसभा चुनावों में इस पूरे इलाके से बीजेपी ने 42 में से 39 सीटें जीती थीं. और कांग्रेस के हिस्से में सिर्फ दो सीटें आई थीं, और वो थीं – रायबरेली और अमेठी. इसके अलावा एक सीट समाजवादी पार्टी के हिस्से में आई थी. आज़मगढ़ से समाजवादी पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव चुनाव जीते थे. जबकि बीएसपी को एक भी सीट नहीं मिली थी.
अगर वोट प्रतिशत की बात की जाए तो 2014 के लोकसभा चुनावों में इस पूरे इलाके से कांग्रेस को 12%, बीजेपी को 40%, बीएसपी को 21%, समाजवादी पार्टी को 19% और अन्य को 8% वोट मिले थे. पूर्वी उत्तर प्रदेश बहुत महत्वपूर्ण है. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने भी वाराणसी से नरेन्द्र मोदी को उम्मीदवार बनाया था. नरेंद्र मोदी वहां से जीत गये थे और इसके साथ ही आस पास के पूरे इलाके की 39 सीटों पर बीजेपी जीत गई थी.
बीजेपी ने पूरे उत्तर प्रदेश में 80 में से 71 सीटें जीतीं और दो सीटें बीजेपी की सहयोगी पार्टी अपना दल ने जीतीं थीं. अब विधानसभा चुनावों की बात करते हैं. पूर्वी उत्तर प्रदेश में विधानसभा की कुल 192 सीटें हैं. 2017 में हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी को इस इलाके से 144 सीटें मिली थीं. इसके अलावा समाजवादी पार्टी को 22, बीएसपी को 14 और कांग्रेस को सिर्फ एक सीट मिली थीं जबकि अन्य दलों को 11 सीटें मिली थीं.
ये आंकड़े बताते हैं कि पूर्वी उत्तर प्रदेश का ये इलाका राजनीतिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है और इस पूरे क्षेत्र में कांग्रेस की स्थिति बहुत खराब है और इसीलिए कांग्रेस प्रियंका वाड्रा को लेकर आई है. आज दिन भर प्रियंका वाड्रा ख़बरों में छाई रहीं और कल उनके पति रॉबर्ट वाड्रा की बारी है. क्योंकि कल रॉबर्ट वाड्रा से जयपुर में ED यानी Enforcement Directorate पूछताछ करेगा. रॉबर्ट वाड्रा जब ED के सामने पेश होंगे, तो उनके साथ प्रियंका वाड्रा भी मौजूद रहेंगी. रॉबर्ट वाड्रा से ये पूछताछ राजस्थान के बीकानेर में हुई Land Deal से संबंधित है. यहां नोट करने वाली बात ये है कि रॉबर्ट वाड्रा से जब भी पूछताछ होती है, प्रियंका वाड्रा हमेशा उन्हें छोड़ने जाती हैं. वो एक आदर्श पत्नी होने का कर्तव्य निभा रही हैं और इससे राजनीतिक रूप से भी उन्हें भावनात्मक लाभ हो सकता है. इस काम में रॉबर्ट वाड्रा भी प्रियंका वाड्रा का साथ दे रहे हैं.
कल अपनी पेशी से पहले रॉबर्ट वाड्रा ने आज अपनी पत्नी प्रियंका गांधी वाड्रा के लिए एक Facebook Post लिखी है. रॉबर्ट वाड्रा ने प्रियंका को P. कहकर संबोधित किया है। उन्होंने लिखा है कि वो प्रियंका को उत्तर प्रदेश में नई यात्रा के लिए शुभकामनाएं देते हैं. रॉबर्ट वाड्रा ने लिखा है कि प्रियंका उनकी सबसे अच्छी दोस्त, एक अच्छी पत्नी हैं और एक अच्छी मां हैं. आगे उन्होंने लिखा है कि देश का राजनीतिक माहौल द्वेष और दुर्भावना से भरा हुआ है. लेकिन वो जानते हैं कि देश के लोगों की सेवा करना प्रियंका का कर्तव्य है. आगे उन्होंने लिखा है कि हम प्रियंका को भारत के लोगों को समर्पित करते हैं, कृपया उनकी रक्षा कीजिए.
इस बीच आज ही प्रियंका गांधी वाड्रा Twitter पर आ गई हैं और आज पहले दिन, कुछ ही घंटों में.. उनके Followers की संख्या 1 लाख से ज्यादा हो गई. हालांकि उन्होंने अभी तक एक भी Tweet नहीं किया है. प्रियंका वाड्रा कुल 7 लोगों को Follow कर रही हैं, जिसमें पहला नाम है कांग्रेस पार्टी के Official Twitter Handle का. इसके अलावा उन्होंने राहुल गांधी, सचिन पायलट, अशोक गहलोत, अहमद पटेल, रणदीप सुरजेवाला और ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी Twitter पर Follow किया है.