नैनीताल: एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स (एडीआर) के संस्थापक जगदीप छोकर का मानना है कि लोक सभा व राज्य विधान सभा चुनाव एक साथ कराने का प्रस्ताव लोकतंत्र की सेहत के लिए सही नहीं है। इससे क्षेत्रीय दलों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा, साथ ही राज्यों की महत्ता घटेगी। यहां तक कि संघीय ढांचा कमजोर होने की भी संभावना है।
एडीआर संस्थापक ने कहा कि मौजूदा लोकसभा के 190 सांसद तथा देश की विधान सभाओं के 30 फीसद विधायकों पर आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं। दस फीसद विधायकों पर तो हत्या, हत्या के प्रयास, दुष्कर्म जैसे संगीन मामले दर्ज हैं। उन्होंने कहा कि संस्था हर बार चुनाव से पहले राजनीतिक दलों को आपराधिक मुकदमे वाले नेताओं को टिकट नहीं देने के लिए पत्र लिखती रही है।
इलेक्ट्रोरल बांड से खत्म होगी पारदर्शिता
जगदीप ने कहा कि इलेक्ट्रोरल बांड जारी करने के फैसले से पारदर्शिता खत्म होगी। एडीआर देश में एक हजार से अधिक संस्थाओं के सहयोग से लोकतांत्रिक सुधार की दिशा में काम कर रही है।
1999 से 2003 तक चली कानूनी जंग
1999 में एडीआर ने दिल्ली हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर चुनाव में नामांकन पत्र के साथ प्रत्याशियों पर दर्ज मुकदमे हलफनामे के साथ बताने का दिशा-निर्देश जारी करने की मांग की थी। 2011 में हाईकोर्ट ने अहम फैसला देते हुए उम्मीदवारों से पुराने लंबित केसों की जानकारी देने, संपत्ति व उधार का ब्योरा देने, शैक्षिक योग्यता बताना अनिवार्य कर दी थी। इस फैसले के खिलाफ भारत सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गई और सभी राजनीतिक दल पक्षकार बन गए। 2002 में सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी। साथ ही निर्वाचन आयोग को दो माह में इसे लागू करने का निर्देश दिए।
आठ जुलाई 2002 को देश के 22 सियासी दलों की बैठक हुई और केंद्र सरकार ने अध्यादेश लागू करने की तैयारी की तो एडीआर समेत अन्य लोकतंत्र समर्थक संस्थाओं ने तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम से मुलाकात कर अध्यादेश जारी करने की सिफारिश ना मानने का अनुरोध किया था। एक बार कलाम द्वारा अध्यादेश लौटा दिया गया मगर दुबारा फिर केंद्र ने भेज दिया तो संवैधानिक बाध्यता के चलते उसे मंजूरी प्रदान कर दी। यह मामला फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो 13 मार्च 2003 को जनप्रतिनिधित्व कानून में संशोधन को असंवैधानिक करार दिया।