नई दिल्ली : सबरीमाला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश की इजाज़त देने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर सभी पुनर्विचार याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की संविध ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। कोर्ट ने सभी पक्षों को लिखित जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। कुल 64 पुनर्विचार याचिकायें दायर की गई थी। दलीलें शुरू करते हुए वरिष्ठ वकील मोहन परासरण ने कहा कि कोर्ट ने भगवान अयप्पा के ब्रह्मचारी होने की मान्यता पर ध्यान नहीं दिया। धर्म के मामले में संवैधानिक सिद्धांत जबरन नहीं थोपा जा सकता है। अयप्पा में आस्थावान महिलाओं को नियम से दिक्कत नहीं है। लोगों ने फैसला स्वीकार नहीं किया।
परासरण ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले में संविधान के प्रस्तावना और संविधान की धारा 15, 17 और 25 के बीच के अंतर्संबंधों पर ध्यान नहीं दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने संविधान की धारा 15 पर भी पूरे तरीके से ध्यान नहीं दिया। परासरण ने सबरीमाला के फैसले में धारा 17 की सुप्रीम कोर्ट की व्याख्या का विरोध किया। जस्टिस नरीमन ने पूछा कि क्या होगा अगर कोई अनुसूचित जाति की 10 से 50 साल की महिला प्रवेश करती हैं । इसलिए आप इस पर मत जाइए कि ये केवल छुआछूत के आधार पर इस परंपरा को खत्म किया गया है। सबरीमाला मंदिर के मुख्य पुजारी की तरफ से वकील वी गिरी ने कहा कि पूजा का अधिकार भगवान की प्रकृति और रुप के साथ जुड़ा है।
सबरीमाला में रोक की वजह भगवान का चरित्र है। उन्होंने कहा कि किसी भी याचिकाकर्ता ने ये नहीं कहा कि वो भगवान अयप्पा को पूजने वाला या उसका उपासक है। सबरीमाला की परंपरा का जाति से कोई मतलब नहीं है और उसमें छुआछूत पर लगी संवैधानिक रोक लागू नहीं होती है।देवासम बोर्ड की ओर से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि सबरीमाला की परंपरा भगवान के चरित्र के मुताबिक है। इसी मंदिर में वो भगवान हैं, जो नास्तिक ब्रह्मचारी हैं। इसका केवल जस्टिस इंदू मल्होत्रा ने अपने फैसले में उल्लेख किया है। सिंघवी ने कहा कि धर्म को साइंस म्यूजियम की तरह नहीं देखा जा सकता है। धार्मिक रिवाजों में चेतना या तर्कहीनता के सिद्धांत लागू नहीं होते हैं। उन्होंने कहा कि हिन्दुत्व विविध रिवाजों वाला धर्म है। इसमें संवैधानिक नैतिकता को लागू नहीं किया जा सकता है।