जानें पश्चिम बंगाल और देश की राजनीति का गणित

आज सबसे पहले हम पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की धरने और ड्रामे वाली राजनीति का विश्लेषण करेंगे. जितने नाटकीय अंदाज़ में ममता बनर्जी ने रविवार की रात को ये धरना शुरू किया था, उससे ज्यादा नाटकीय तरीके ये धरना खत्म हो गया है. जिस पुलिस अधिकारी को बचाने के लिए ममता बनर्जी ये धरना दे रही थीं, उस पुलिस अधिकारी को आज दोपहर में सुप्रीम कोर्ट ने झटका दिया. और ये आदेश दे दिए कि कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार CBI के सामने पेश होंगे. हालांकि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को ममता बनर्जी ने अपनी और लोकतंत्र की जीत के तौर पर प्रचारित किया. लेकिन अंदर ही अंदर उन्हें ये पता है कि अदालत का फैसला उनके लिए भी एक बड़ा झटका है. इसीलिए शाम होते होते ममता बनर्जी ने इस धरने को खत्म करने का ऐलान कर दिया. 

धरना खत्म करवाने के लिए विशेष तौर पर आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू कोलकाता पहुंचे. धरने के मंच पर चंद्रबाबू नायडू ने उन नेताओं के नाम पढ़े, जिन्होंने इस धरने को समर्थन दिया था. और फिर चंद्रबाबू नायडू के मुताबिक इन्हीं नेताओं ने ममता बनर्जी से धरना खत्म करने का आग्रह किया. चंद्रबाबू नायडू ने बाकायदा मंच से.. उन लोगों के हाथ खड़े करवाए, जो धरना खत्म के पक्ष में थे. और इस तरह 45 घंटों तक चलने वाला ममता बनर्जी का धरना खत्म हो गया. सबसे पहले आप ये देखिए कि चंद्रबाबू नायडू ने कैसे ममता बनर्जी का ये धरना खत्म करवाया.

इसके बाद ममता बनर्जी ने इसी मंच से खुद को महागठबंधन का अघोषित नेता चुन लिया. और ये ऐलान किया कि केन्द्र सरकार के खिलाफ ये धरना अब दिल्ली में होगा. अब दिल्ली में ममता बनर्जी 12, 13 और 14 फरवरी को राजनीतिक धरना देंगी और प्रदर्शन करेंगी. जिसमें पूरा विपक्ष मौजूद रहेगा. ममता बनर्जी ने इस धरने को लोगों की, लोकतंत्र की और संविधान की जीत बताया. और उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि वो आगे कोई भी राजनीतिक फैसला अपने सहयोगियों से पूछे बिना नहीं लेंगी. आप पहले ममता बनर्जी का ये अंदाज़ देखिए, आपको खुद समझ में आ जाएगा कि कैसे उन्होंने खुद को महागठबंधन का नेता घोषित कर लिया है.

इस धरना स्थल से ममता बनर्जी ने अपने प्रिय अफसर राजीव कुमार का बचाव भी किया . और ये दावा किया कि राजीव कुमार कभी भी उनके साथ धरने पर नहीं बैठे थे. ममता बनर्जी के भाषण के बाद एक बार फिर से माइक चंद्रबाबू नायडू के हाथ में दिया गया. और चंद्रबाबू नायडू अपनी राजनीतिक भावनाओं में इतना ज्यादा बह गए कि उन्होंने इमरजेंसी को मौजूदा दौर से बेहतर बता दिया. उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार के खिलाफ धरने प्रदर्शन और आंदोलन वाली ये राजनीतिक लड़ाई जारी रहेगी. इस पूरे धरने का Climax राष्ट्रवाद से भरा हुआ था. अंत में धरने के मंच पर राष्ट्रगान हुआ. और फिर ममता बनर्जी ने जय हिंद और वंदे मातरम के नारे लगाए. ऐसा लग रहा था. यानी ममता बनर्जी भी ये जानती हैं कि इस दौर में राष्ट्रवादी चरित्र के बगैर चुनाव जीतना संभव नहीं है.

अब आपको वो ख़बर बताते हैं कि जिसकी वजह से ममता बनर्जी को ये धरना खत्म करना पड़ा. आज CBI की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई.

और सुप्रीम कोर्ट ने कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार को CBI के सामने पेश होने के आदेश दे दिए.

अदालत ने राजीव कुमार को ये आदेश भी दिया कि वो जांच एजेंसी यानी CBI के सामने, हर वक्त जांच में सहयोग करेंगे.

लेकिन इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने राजीव कुमार की गिरफ्तारी और किसी अन्य प्रकार की कार्रवाई पर भी रोक लगा दी है.

अपने आदेश में अदालत ने आगे ये भी लिखा है कि अनावश्यक विवाद से बचने के लिए वो राजीव कुमार को CBI के सामने मेघालय की राजधानी शिलॉन्ग में पेश होने का आदेश देते हैं.

CBI ये चाहती थी कि राजीव कुमार से वो दिल्ली में पूछताछ करे, जबकि पश्चिम बंगाल की सरकार ये चाहती थी कि CBI राजीव कुमार से कोलकाता में पूछताछ करे.
लेकिन अदालत ने दोनों की बात नहीं सुनी और कहा कि आप शिलॉन्ग जाइए. ये एक ठंडी जगह है. वहां दोनों ही पक्षों का दिमाग ठंडा रहेगा.

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की अवमानना की भी एक याचिका थी. क्योंकि CBI सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर ही सारदा और Rose Valley घोटालों की जांच कर रही है और CBI को अपना काम करने से रोककर, सुप्रीम कोर्ट की अवमानना की गई है.

इस याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल के Chief Secretary, DGP और कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार को अपना जवाब 18 फरवरी या उससे पहले अदालत में देने को कहा है.

अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने ये भी साफ किया है कि इन तीनों के जवाब देखने के बाद सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार ये तय करेंगे कि 20 फरवरी को होने वाली सुनवाई में, इन तीनों अधिकारियों की निजी तौर पर पेश होने की ज़रूरत है या नहीं?

ममता बनर्जी भले ही कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार का बचाव कर रही हों, लेकिन आज CBI ने सुप्रीम कोर्ट में राजीव कुमार की पोल खोलकर रख दी.

सुप्रीम कोर्ट में CBI की तरफ से Attorney General, K K Venugopal और Solicitor General, Tushar Mehta पेश हुए.

और CBI की तरफ से पेश हुए इन वकीलों ने बताया कि राजीव कुमार को कई बार समन दिए गए, लेकिन वो जांच में शामिल नहीं हुए. और ना ही पश्चिम बंगाल के DGP ने CBI की कोई मदद की.

इन वकीलों ने ये भी बताया कि इस घोटाले की शुरुआती जांच राज्य पुलिस की SIT ने की थी, जिसके जांच अधिकारी ने काफी महत्वपूर्ण सबूत जुटाए थे. जिनमें लैपटॉप और मोबाइल फोन भी शामिल थे. और ये सभी सबूत SIT के प्रमुख राजीव कुमार को सौंपे गए थे.

मई 2014 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद जब जांच CBI को सौंपी गई, तो राजीव कुमार ने कई सबूत और दस्तावेज़ CBI को दिए ही नहीं.

CBI के वकीलों की तरफ से अदालत में ये भी कहा गया कि राजीव कुमार ने सबूतों के साथ छेड़छाड़ की और बहुत से सबूत नष्ट कर दिए. इसमें आरोपियों का मोबाइल फोन और कॉल डिटेल्स का रिकॉर्ड बहुत महत्वपूर्ण था. यहां तक कि राजीव कुमार ने सारदा घोटाले के आरोपी सुदीप्तो सेन का मोबाइल फोन भी उसे वापस सौंप दिया था.

राजीव कुमार पर ये भी आरोप लगाया गया कि वो 2012 से 2015 के बीच में बिधाननगर के पुलिस कमिश्नर थे और घोटाले में शामिल कंपनी सारदा और Rose Valley इसी इलाके में फल फूल रही थीं.

CBI ने ये भी कहा कि पूरी SIT, आरोपियों के खिलाफ सही तरह से जांच करने के बजाए उनके साथ मिलीभगत कर रही थी. और जिस प्रकार का रवैया राजीव कुमार ने SIT की जांच के दौरान अपनाया, वो भ्रष्टाचार निरोधक कानून
और IPC की धाराओं के तहत अपराध है.

आज अदालत में CBI ने ये भी कहा कि इस केस से जुड़े हुए सारे रिकॉर्ड कोलकाता पुलिस के कब्ज़े हैं, इसलिए आज CBI सुप्रीम कोर्ट में राजीव कुमार के खिलाफ रिकॉर्ड या सबूत दिखाने की स्थिति में नहीं है.

अब ज़रा उन लाखों लोगों के बारे में सोचिए जिनका पैसा इस घोटाले में डूब गया.
अगर घोटाले की जांच करने वाली SIT ही आरोपियों से मिल जाएगी, तो फिर आम लोगों के हितों की रक्षा कौन करेगा?

इस बीच केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने पश्चिम बंगाल सरकार से राजीव कुमार के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू करने की मांग की है.

पश्चिम बंगाल के Chief Secretary को लिखे पत्र में गृह मंत्रालय ने लिखा है कि राजीव कुमार ने All India Services (Conduct) Rules का उल्लंघन किया है, और अनुशासनहीनता की है.

आज ही लिखे गए इस पत्र में ये भी कहा गया है कि राजीव कुमार बाकी के पुलिस अधिकारियों के साथ मुख्यमंत्री के धरने में बैठे. और ये भी नियमों का उल्लंघन है.

हालांकि ममता बनर्जी राजीव कुमार का ये कहकर बचाव कर रही हैं कि वो धरने पर नहीं बैठे थे, बल्कि सुरक्षा के लिए वहां पर मौजूद थे.

अब अगले हफ्ते ममता बनर्जी दिल्ली में धरना प्रदर्शन करेंगी. वैसे ममता बनर्जी धरनों की पुरानी एक्सपर्ट हैं.

ममता ने भले ही अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत कांग्रेस से की थी. लेकिन बाद में उन्होंने पश्चिम बंगाल में कांग्रेस को ख़त्म करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. ममता बनर्जी किसी ज़माने में बंगाल कांग्रेस की युवा नेता हुआ करती थीं. लेकिन उस वक्त उन्हें कोई नहीं जानता था. लेकिन वो इमरजेंसी के दौरान सुर्खियों में आईं. जब उन्होंने समाजवादी आंदोलन के मुखिया जयप्रकाश नारायण की कार के बोनट पर चढ़कर विरोध किया था.

वर्ष 1997 में कोलकाता में All India Congress Committee का अधिवेशन हुआ था. लेकिन ममता बनर्जी ने उस अधिवेशन का बहिष्कार कर दिया था. क्योंकि, वो बतौर अध्यक्ष सीताराम केसरी के काम करने के तरीके से संतुष्ट नहीं थीं. उस वक्त उन्होंने कहा था, कि अगर सोनिया गांधी कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष बनती हैं, तो वो दोबारा पार्टी में शामिल होने के लिए तैयार हैं. लेकिन उसी दौरान जब पश्चिम बंगाल के प्रदेश अध्यक्ष के लिए चुनाव हुआ, तो ममता बनर्जी एक वोट से हार गईं. और इसी के आधार पर वो पार्टी से अलग हो गईं. और 1 जनवरी 1998 को उन्होंने अपनी पार्टी बनाई जिसका नाम था – अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस बनाई. 1998 के लोकसभा चुनाव में TMC ने 7 सीटें जीतकर कांग्रेस और सीपीएम के लिए चुनौती पेश की. आज हमने Zee News की लाइब्रेरी से उस दौर की तस्वीरें निकाली हैं. जब ममता बनर्जी अलग-अलग वजहों से धरने पर बैठ जाया करती थीं. ये तस्वीरें उसी ज़माने की हैं.

नवंबर 2006 में ममता बनर्जी को सिंगूर में टाटा मोटर्स के प्रस्तावित कार परियोजना स्थल पर जाने से ज़बरदस्ती रोका गया. इसके विरोध में उनकी पार्टी ने धरना, प्रदर्शन और हड़ताल भी की. आपको बता दें कि ममता बनर्जी ने जिस मेट्रो चैनल पर 45 घंटे का धरना दिया, ये वही जगह है जहां से उन्होंने सड़क से सत्ता तक का सफर शुरू किया था. सिंगूर में वो 2006 में 25 दिनों तक अनशन पर बैठी थीं. और बाद में उन्होंने वर्ष 2011 में पश्चिम बंगाल की सत्ता हासिल कर ली.

यहां ये जान लेना भी ज़रूरी है कि पश्चिम बंगाल का राजनीतिक महत्व क्या है? और इस बार पश्चिम बंगाल, लोकसभा चुनाव का सबसे बड़ा युद्ध क्षेत्र कैसे बन गया है ?

पश्चिम बंगाल में बीजेपी और TMC के बीच लगातार टकराव बढ़ रहा है . सबसे पहले ममता बनर्जी की सरकार ने पश्चिम बंगाल में बीजेपी की रथ यात्राओं को रोक दिया . इसके बाद मालदा में बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह के हेलिकॉप्टर को उतरने से रोका गया .

रविवार को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की भी पश्चिम बंगाल में दो रैलियां थीं . लेकिन उनके हेलिकॉप्टर को भी उतरने की मंजूरी नहीं मिली . जिसके बाद योगी आदित्यनाथ ने फोन के ज़रिए रैली को संबोधित किया. आज जब ममता बनर्जी से योगी आदित्यनाथ की इन रैलियों के बारे में सवाल पूछा गया, तो वो भड़क गईं .

पश्चिम बंगाल… बीजेपी और TMC के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है . पिछले महीने ममता बनर्जी ने कोलकाता में महागठबंधन के नेताओं को एक मंच पर इकट्ठा किया था. महागठबंधन के नेताओं ने ममता के मंच से मोदी हटाओ का नारा दिया था. और अब CBI की कार्रवाई के खिलाफ ममता बनर्जी के Action को भी महागठबंधन का पूरा समर्थन मिल रहा है .

दूसरी तरफ बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह के लिए पश्चिम बंगाल जंग का एक नया मैदान है . क्योंकि Hindi Heart Land के तीन बड़े राज्य…. राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ बीजेपी के हाथ से निकल चुके हैं . अमित शाह इन राज्यों में होने वाले नुकसान की भरपाई ओडिशा, पश्चिम बंगाल, केरल और North-East में.. ज़्यादा से ज़्यादा लोकसभा सीटें जीतकर करना चाहते हैं .

इन राज्यों में लोकसभा की कुल 108 सीटें हैं . 2014 में बीजेपी यहां सिर्फ़ 11 सीटें जीत पाई थी . इन राज्यों में सबसे ज़्यादा 42 लोकसभा सीटें पश्चिम बंगाल में है . 2014 में बीजेपी यहां सिर्फ 2 सीटें जीत पाई थी .

2019 में बीजेपी का सबसे बड़ा Focus पश्चिम बंगाल पर है क्योंकि यहां लोकसभा की सीटें बड़ी संख्या में हैं. और यही ममता बनर्जी और अमित शाह के बीच टकराव की सबसे बड़ी वजह है. ममता बनर्जी को प्रधानमंत्री के पद पर अपना दावा मजबूत करने के लिए पश्चिम बंगाल में ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतनी होंगी . इसी तरह बीजपी को दोबारा सत्ता में लाने के लिए अमित शाह को भी पश्चिम बंगाल में ज़्यादा से ज़्यादा सीटें जीतनी होंगी .

वैसे जब बात पुराने दिनों की हो रही है, तो हमें वो दिन भी याद आते हैं, जब देश में कांग्रेस की सरकार थी . और सारदा घोटाले का पता चला था. उस वक्त पश्चिम बंगाल कांग्रेस के ही एक नेता अब्दुल मन्नान ने शिकायत की थी.
सारदा चिटफंड घोटाले के मामले में ये पहली शिकायत थी. अब्दुल मन्नान आज, पश्चिम बंगाल की विधानसभा में नेता विपक्ष हैं . लेकिन इतिहास अपनी जगह है और राजनीति अपनी जगह. बेशक कांग्रेस के ज़माने में ही पश्चिम बंगाल के इस चिटफंड घोटाले पर कार्रवाई हुई हो, लेकिन आज कांग्रेस ममता बनर्जी के साथ इस धरने में खड़ी दिखाई दी.

कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी ने रविवार को Tweet करके ये जानकारी दी थी कि उनकी पार्टी कांग्रेस ममता बनर्जी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी है.

लेकिन 2013-14 में यही कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी चिट फंड घोटाले के लिए ममता बनर्जी की सरकार पर तीखे हमले कर रहे थे .

आज हमने कांग्रेस पार्टी के कुछ पुराने Tweets ढूंढ कर निकाले हैं . इन Tweets में कांग्रेस पार्टी ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के राज की तुलना माफिया राज से की थी . कांग्रेस ने ममता बनर्जी पर ये आरोप भी लगाया गया था कि वो पश्चिम बंगाल को लूटने वालों की रक्षा कर रही हैं .

लेकिन राजनीतिक परिस्थितियां ऐसी हैं कि अब राहुल गांधी का हृदय परिवर्तन हो चुकी है . आजकल कांग्रेस… ममता बनर्जी पर अपनी ममता बरसा रही है . कांग्रेस पार्टी के लिए अब ममता बनर्जी, घोटालेबाजों की संरक्षक नहीं बल्कि लोकतंत्र की संरक्षक बन चुकी हैं .

आज हम कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी को उनके पुराने भाषण सुनाना चाहते हैं जब वो भ्रष्टाचार के मामलों पर ममता बनर्जी के खिलाफ आरोप लगा रहे थे .

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