नई दिल्ली : दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि मेटरनिटी लीव लेने की वजह से किसी को परीक्षा देने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है। जस्टिस सी. हरिशंकर की बेंच ने एम्स की एक डॉक्टर की याचिका पर ये आदेश दिया है। एम्स की डॉक्टर अंकिता बैद्य डॉक्टरेट ऑफ मेडिसिन का कोर्स कर रही हैं। इस कोर्स की शर्तों के मुताबिक पहले साल 24 दिन, दूसरे साल 30 दिन और तीसरे साल 36 दिन की अधिकतम छुट्टी मिल सकती है। इस कोर्स के दौरान याचिकाकर्ता गर्भवती हो गई और उन्होंने छह महीने की मेटरनिटी लीव के लिए एम्स प्रशासन को आवेदन किया। एम्स ने आवेदन मंजूर करते हुए कहा कि वह डॉक्टरेट की परीक्षा पहले से तय समय यानि दिसंबर 2018 से छह महीने बाद मई 2019 में ही दे पाएगी क्योंकि उसने अपनी छुट्टी तय शर्तों से ज्यादा बढ़ाई है।
अपना मेटरनिटी लीव खत्म होने के बाद याचिकाकर्ता ने सितंबर 2016 में अपनी ड्यूटी ज्वायन की। उसने अपनी थीसिस सौंपी जिसे संबंधित फैकल्टी ने स्वीकृत कर दी। उसके बाद वह अपनी थीसिस को पूरा करने में लग गई ताकि वह अपनी परीक्षा से तीन महीने पहले थीसिस जमा कर सके। मई 2018 में याचिकाकर्ता ने एम्स प्रशासन से कहा कि उसकी मेटरनिटी लीव को तय छुट्टी से बढ़ी हुई नहीं मानी जाए। उन्होंने इस संबंध में सरकार के मार्च 2018 के एक दिशानिर्देश का भी हवाला दिया लेकिन एम्स प्रशासन ने इसे खारिज कर दिया। उसके बाद याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
सुनवाई के दौरान एम्स प्रशासन ने कहा कि मेटरनिटी लीव मंजूर करते समय मेमोरेंडम की शर्तों से याचिकाकर्ता बंधी हुई है इसलिए वो अब इससे पीछे नहीं हट सकती हैं। कोर्ट ने कहा कि मां बनने वाली पर कोई प्रतिकूल फैसले की अनुमति नहीं दी जा सकती है। कोर्ट ने कहा कि मेटरनिटी लीव को छुट्टी का एक्सटेंशन नहीं माना जा सकता है। हाईकोर्ट ने एम्स प्रशासन को अपने अंतरिम आदेश में याचिकाकर्ता कौन परीक्षा में बैठने की अनुमति देने का आदेश दिया था। हाईकोर्ट ने उस परीक्षा के आधार पर रिजल्ट घोषित करने का आदेश दिया।