आज भारत एक अनोखा गणतंत्र दिवस मनाने वाला है . आज राजपथ पर एक नया इतिहास रचा जाएगा . पहली बार गणतंत्र दिवस की परेड में आज़ाद हिंद फौज के पूर्व सैनिक शामिल होंगे . आज़ादी के 71 वर्ष बाद आज़ाद हिंद फौज को ये सम्मान दिया जा रहा है . लेकिन लोगों के मन में ये सवाल भी उठ रहा है कि आज़ाद हिंद फौज को ये सम्मान देने में 71 वर्षों का समय क्यों लगा ? आज हम ये समझने की कोशिश करेंगे कि आज़ादी की लड़ाई में आज़ाद हिंद फौज के संघर्ष को क्यों भुला दिया गया ?
हर वर्ष 26 जनवरी के दिन… गणतंत्र दिवस पर पूरे देश की निगाहें… दिल्ली के राजपथ पर होती हैं . राजपथ पर हर वर्ष सेना और सुरक्षा बल परेड करते हैं . अंग्रेज़ों के ज़माने में इस सड़क को King’s Way कहा जाता था . ये सड़क ब्रिटेन के सम्राट George Fifth के सम्मान में बनाई गई थी .
नेता जी सुभाष चंद्र बोस और उनकी आज़ाद हिंद फौज ने ब्रिटेन के सम्राट के खिलाफ ही विद्रोह किया था . अब उसी King’s Way यानी राजपथ पर… नेता जी सुभाष चंद्र बोस के वीर सैनिक परेड करेंगे . ये भारत में राष्ट्रवाद की विजय का एक नया प्रतीक है .
नोट करने वाली बात ये है कि आज़ादी के बाद की सरकारों ने आज़ाद हिंद फौज के सैनिकों को राजपथ पर परेड करने का मौका नहीं दिया. क्या इसके पीछे कोई डर था ?
सुभाष चंद्र बोस की आज़ाद हिंद फौज ने दूसरे विश्व युद्ध में हज़ारों अंग्रेज़ सैनिकों का संहार किया था . अंग्रेज़ आज भी सुभाष चंद्र बोस से नफरत करते हैं . क्योंकि आज़ाद हिंद फौज के वीर सैनिकों ने अपना शरीर लाठियां खाने के लिए अंग्रेज़ों के सामने प्रस्तुत नहीं किया था . सुभाष चंद्र बोस ने अपने सैनिकों को समझाया था… कि दुनिया में हर चीज़ की कीमत चुकानी पड़ती है .
आज़ादी के लिए खून की कीमत चुकानी पड़ती है . सुभाष चंद्र बोस का नारा था… तुम मुझे खून दो… मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा . यही वजह है कि सुभाष चंद्र बोस और आज़ाद हिंद फौज का नाम आज भी अंग्रेज़ों को बहुत चुभता है .
कल राजपथ पर आज़ाद हिंद फौज के पूर्व सैनिकों की परेड के बाद… पूरी दुनिया के सामने ये साफ हो जाएगा कि भारत एक महाशक्ति है और भारत के लोग ये जानते हैं कि अपने महान और पराक्रमी पूर्वजों का सम्मान किस तरह किया जाता है .
आज़ाद हिंद फौज की वजह से ही अंग्रेज़ों ने भारत को आज़ाद किया था . आपको ये जानकर बहुत आश्चर्य होगा कि गुलामी के दौर में भारत की आबादी करीब 35 करोड़ थी . और करोड़ों की आबादी पर मुट्ठी भर अंग्रेज़ राज कर रहे थे . गुलामी के दौर में भारत में ब्रिटिश मूल के सैनिकों की संख्या हज़ारों में थी . जबकि भारतीय मूल के सैनिकों की संख्या लाखों में थी . भारत के सैनिक ही अंग्रेजों की सेना की रीढ़ की हड्डी थे. और इन्हीं के दम पर ही अंग्रेज़ भारत पर राज कर रहे थे .
अंग्रेज़ों की सेना में काम करने वाले भारतीय मूल के यही सैनिक… भारत में ब्रिटिश राज की सुरक्षा कर रहे थे . अंग्रेज़ों की पुलिस में भर्ती होने वाले भारतीय मूल के लोग ही क्रांतिकारियों पर लाठियां बरसा रहे थे . महात्मा गांधी ये जानते थे… इसीलिए उन्होंने… अहिंसा की नीति को अपनाया .
कांग्रेस पार्टी के नेताओं को उम्मीद थी कि एक दिन ऐसा ज़रूर होगा… जब भारत के इन सैनिकों का दिल पसीज जाएगा . और ये लोग क्रांतिकारियों की अहिंसा से प्रभावित होकर अंग्रेज़ों का साथ छोड़ देंगे . लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ . जबकि आज़ाद हिंद फौज ऐसा करने में सफल रही .
फरवरी 1946 में Royal Indian Navy के 20 हज़ार भारतीय जवानों ने अंग्रेज़ों के खिलाफ़ विद्रोह कर दिया था. तब सुभाष चंद्र बोस भारत में मौजूद नहीं थे . लेकिन भारत के जवान आज़ाद हिंद फौज के नारे लगा रहे थे . इस परिस्थिति को देखकर अंग्रेज़ बहुत घबरा गए थे, और अंत में उन्होंने भारत को आज़ादी देने में ही अपनी भलाई समझी .
आज़ाद हिंद फौज की स्थापना की कहानी बहुत दिलचस्प है .
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान, भारतीय मूल के हजारों सैनिक… ब्रिटेन की तरफ से दुनिया के अलग-अलग देशों में युद्ध लड़ रहे थे . इन युद्धों में ब्रिटेन के दुश्मन देशों ने हजारों भारतीय मूल के सैनिकों को युद्धबंदी बना लिया . इन युद्धबंदियों को इस शर्त पर रिहा किया गया कि वो ब्रिटेन के खिलाफ युद्ध करेंगे .
फरवरी 1942 से दिसंबर 1942 के बीच इन्हीं युद्धबंदियों ने क्रांतिकारी मोहन सिंह के नेतृत्व में भारत को आज़ाद करवाने का संकल्प लिया . इसे आज़ाद हिंद फौज कहा गया . क्योंकि ये भारत के वो सिपाही थे जिन्होंने अंग्रेज़ों की गुलामी छोड़ दी थी . मोहन सिंह के बाद रास बिहारी बोस ने आज़ाद हिंद फौज के माध्यम से भारत को आज़ाद करने का सपना देखा .
लेकिन इस सपने को साकार करने की सबसे बड़ी कोशिश सुभाष चंद्र बोस ने की थी . सुभाष चंद्र बोस ने अपनी नेतृत्व क्षमता से आज़ाद हिंद फौज को जोश से भर दिया था .
सुभाष चंद्र बोस… आज़ाद हिंद फौज के सुप्रीम कमांडर थे . उन्होंने पूर्वोत्तर और दक्षिण भारत के रास्ते से भारत को आज़ाद करवाने की रणनीति बनाई . पूर्वोत्तर में उन्होंने म्यांमार में अपना Base बनाया और हिंद महासागर में उन्होंने अंडमान निकोबार द्वीप समूह को अपना Base बनाया .
वर्ष 1942 में जापान ने म्यांमार के कई हिस्सों पर अंग्रेज़ों को हरा दिया . जापान सरकार से हाथ मिलाकर सुभाष चंद्र बोस भी म्यांमार में अंग्रेज़ों के खिलाफ युद्ध में जुट गए .
दिसंबर 1943 को जापान की मदद से आजाद हिंद फौज का अंडमान-निकोबार पर कब्जा हो गया था . वहां 30 दिसंबर 1943 को सुभाष चंद्र बोस ने पहली बार तिरंगा फहराया था .
आजाद हिंद फौज ने इम्फाल और कोहिमा पर कब्जा कर ब्रिटिश फौजों की सप्लाई लाइन को काटने की रणनीति बनाई . वर्ष 1944 के मई महीने में आजाद हिंद फौज ने कोहिमा में भारत का तिरंगा फहराया .
ये सुभाष चंद्र बोस द्वारा छेड़ा गया रक्त रंजित संग्राम था जिसमें अंग्रेज़ों की सेना के 45 हज़ार से ज़्यादा सैनिकों की मौत हुई थी . बर्मा की जंग में अंग्रेज़ों की सेना सुभाष चंद्र बोस के चक्रव्यूह में इस तरह फंसी थी कि ब्रिटिश सेना के 10 हज़ार से ज़्यादा सैनिक बीमारियों का शिकार हो गए थे . इस लड़ाई में अमेरिका की सेना के भी 3 हज़ार से ज़्यादा सैनिकों की मौत हुई थी .
सुभाष चंद्र बोस के साथ कंधा से कंधा मिलाकर लड़ने वाले आजाद हिंद फौज के कई सैनिक आज भी देश में जीवित हैं . इन सैनिकों की उम्र अब 90 वर्ष से ज्यादा हो चुकी है . Zee News ने इन वृद्ध योद्धाओं से बात की है .
आज़ाद हिंद फौज़ के पूर्व सैनिक… परमानंद यादव, भागमल, ललती राम और हीरा सिंह कल गणतंत्र दिवस की परेड में हिस्सा लेंगे .
आपने देखा होगा फिल्मों नायक बहुत सारे जोश से भरे Dialogue बोलकर जनता का ध्यान आकर्षित कर लेता है . लेकिन ये देश के असली नायक हैं… इनकी उम्र काफी ज्यादा हो चुकी है . ये अब फिल्म के नायकों की तरह Dialogue नहीं बोल सकते हैं . लेकिन इनके चेहरों से इनकी तपस्या का पता चलता है .
सुभाष चंद्र बोस के साथ कंधा से कंधा मिलाकर लड़ने वाले आजाद हिंद फौज के कई सैनिक आज भी जीवित हैं . इन सैनिकों की उम्र अब 90 वर्ष से ज्यादा हो चुकी है
आज़ाद हिंद फौज़ के पूर्व सैनिक… परमानंद यादव, भागमल, ललती राम और हीरा सिंह कल गणतंत्र दिवस की परेड में हिस्सा लेंगे .
आपने देखा होगा हिंदी फिल्मों में.. नायक बहुत जोश से भरे Dialogue बोलकर जनता का ध्यान आकर्षित कर लेता है . लेकिन ये देश के असली नायक हैं… इनकी उम्र काफी ज्यादा हो चुकी है . ये फिल्म के नायकों की तरह Dialogue नहीं मार सकते. लेकिन इनके चेहरों पर इनकी तपस्या झलक दिखाई देती है .