शिवसेना ने अपने मुखपत्र ‘सामना’ में प्रियंका गांधी वाड्रा को कांग्रेस का महासचिव बनाए जाने को लेकर टिप्पणी की है. शिवसेना ने मुखपत्र में प्रियंका की तुलना उनकी दादी और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से की है. शिवसेना ने कहा है कि प्रियंका गांधी की तोप चली और उनकी सभाओं में भीड़ उमड़ने लगी तो यह महिला इंदिरा गांधी की तरह हुकुम की रानी साबित हो सकती है.
शिवसेना ने कहा है कि प्रियंका गांधी आखिरकार सक्रिय राजनीति में उतर ही गईं. कांग्रेस ने महासचिव पद पर उनकी नियुक्ति की है. आगामी लोकसभा चुनाव में सफलता प्राप्त करने के लिए सबकुछ करने की तैयारी है, ऐसा कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस बहाने दिखा दिया है. राहुल गांधी असफल हुए इसलिए प्रियंका को लाना पड़ा, ऐसी अफवाहें उड़ाई जा रही हैं, जिसमें दम नहीं.
इसमें आगे लिखा गया है कि राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष हैं. ‘राफेल’ जैसे मामले में उन्होंने सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. इसे एक बार नजरअंदाज भी कर दें तो तीन महत्वपूर्ण राज्यों में कांग्रेस ने बीजेपी से सत्ता छीन ली और उसके चलते मरणासन्न कांग्रेस को संजीवनी मिली. उसका श्रेय उन्हें न देना, कुंठित प्रवृत्ति की निशानी है.
उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनावों के लिए सपा और बसपा के बीच हुए गठबंधन पर भी शिवसेना ने टिप्पणी की है. पार्टी ने सामना में लिखा है कि उत्तर प्रदेश में मायावती और अखिलेश यादव की युति हुई. कांग्रेस को उसमें महत्वपूर्ण स्थान नहीं दिया गया. लेकिन राहुल गांधी ने अत्यंत संयम से, किसी भी तरह का हंगामा न करते हुए कहा है ‘कोई बात नहीं. हम उत्तर प्रदेश की सभी सीटें लड़ेंगे और जहां संभव होगा वहां सपा-बसपा की सहायता करेंगे.’ इस तरह की नीति अपनाना और इसके बाद प्रियंका को सक्रिय राजनीति में लाकर उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी देने के पीछे एक प्रकार की योजना है और उसका फायदा होगा, ऐसा दिखाई दे रहा है.
शिवसेना ने लिखा है कि राजनीति और सत्ता में कई ऐसे लोग हैं, जो सालों से गुड़ पर चिपकी हुई चींटी की तरह चिपककर बैठे हैं और ये भी घरानाशाही से अलग नहीं. तीन राज्यों में बीजेपी की हार हुई. उसके पीछे यही वजह है. नेहरू-इंदिरा गांधी के बारे में भाजपा नेतृत्व ने मन में कटुता रखी क्योंकि यही परिवार भाजपा को चुनौती दे सकता है और 2019 में बहुमत का आंकड़ा प्राप्त करने में मुश्किलें खड़ी कर सकता है, इस बात का भय है. यह सत्य है.
कांग्रेस पार्टी के बारे में, गांधी परिवार के प्रति हमारे मन में ममता होने की कोई वजह नहीं. कांग्रेस पार्टी को किस तरह चलाना है, मायावती, अखिलेश यादव या शिवसेना किस तरह की भूमिका कब ले, यह तय करने का अधिकार अन्य लोगों को नहीं है.