कछुआ तस्करों के लिए लखनऊ एक सुरक्षित ठिकाना हो गया है। तस्कर राजधानी के रास्ते अलग-अलग प्रांतों में कछुओं को आसानी से पहुंचा रहे हैं। राजधानी में पिछले कुछ दिनों में 500 से अधिक कछुए बरामद किए जा चुके हैं। एसटीएफ के सूत्रों का कहना है कि कछुओं की तस्करी दवा बनाने में की जा रही है। यह दवाएं दक्षिणी एशियाई देश में बड़ी मात्रा में इस्तेमाल की जाती हैं।
कछुओं को मारकर शारीरिक यौन शक्ति बढ़ाने के लिए एक खास दवा बनाई जाती है। इसकी मांग थाइलैंड, मलेशिया और बैंकाक समेत कुछ अन्य देशों में ज्यादा है। पश्चिम बंगाल और बांग्ला देश में कछुओं का इस्तेमाल खाने में किया जा रहा है। वहीं कुछ लोग कछुओं की हत्या कर उसका सूप बनवाकर पीते हैं। वर्तमान में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में तस्कर ज्यादा सक्रिय हैं। एसटीएफ के सूत्रों का कहना है कि पश्चिम बंगाल के रास्ते बांग्ला देश और फिर वहां से विदेशों में कछुओं की खेप पहुंचाई जा रही है।
मछुआरों को देते हैं मोटी रकम
गिरोह के संचालक मछुआरों को लालच देकर उन्हें अपने साथ मिला लेते हैं। इसके बाद उनसे नदियों व तालाबों से कछुए पकड़वाते हैं। कछुओं के एवज में मछुआरों को मोटी रकम भी मिल जाती है। बताया जा रहा है कि अगर मछुआरे कछुओं के करियर (एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाने वाले) का काम करते हैं तो उन्हें अतिरिक्त रुपये दिए जाते हैं। इस काम में मछुआरे परिवार की महिलाओं और बच्चों का भी सहयोग लेते हैं, जिससे उन्हें कोई पकड़ न सके।
10 हजार प्रति किलो में मिलता है कछुए का ‘सुंदरी’
गिरोह संचालक कछुओं को अलग-अलग कीमत में बेचते हैं। भारतीय कछुए का मीट पांच से 10 हजार रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेची जाती है, जिसे तस्कर ‘सुंदरी’ कहते हैं। यही नहीं कछुए का सूप भी काफी महंगा बेचा जाता है। ज्यादातर सड़क मार्ग से कछुए तस्करी किए जा रहे हैं।