शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना के जरिए केंद्र की बीजेपी सरकार पर एक बार फिर हमला किया है. एनडीए के सबसे पुराने घटक दल ने इस बार केंद्र सरकार पर देशद्रोह के आरोपी कन्हैया कुमार के मामले को लेकर निशाना साधा है. शिवसेना ने पूछा है कि बीजेपी आखिर किस मुंह से कन्हैया कुमार का निषेध करेगी? जबकि वह खुद अफजल गुरू को शहीद ठहराने और स्वतंत्रता सेनानी मानने वाली महबूबा मुफ्ती के साथ गठबंधन करके सरकार बना चुकी है. शिवसेना ने बीजेपी के लिए कहा है कि वह किसी भी तरह से कन्हैया कुमार के देशद्रोह मामले का राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश ना करे.
शिवसेना ने सामना के लेख में लिखा है..
‘कन्हैया कुमार पर देशद्रोह का आरोप लगाए जाने के कारण कुछ आंदोलनकारियों में हलचल मच गई है. ये सब मामला दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय का है. फरवरी, 2016 में इस विश्वविद्यालय के प्रांगण में संसद पर हमला करनेवाले अफजल गुरू को फांसी दिए जाने के विरोध में निषेध सभा का आयोजन किया गया था. उसमें अफजल गुरू के समर्थन में नारेबाजी की गई थी. वो दिन गुरू के स्मृति दिवस के रूप में मनाया गया. ये सब देशद्रोही कार्य है इसलिए कन्हैया कुमार, उमर खालिद, अनिर्बान भट्टाचार्य तथा अन्य दस लोगों पर देशद्रोह का आरोप लगाया गया. इन सभी की बाद में गिरफ्तारी हुई और आरोपियों के खिलाफ पुख्ता सबूत होने की बात पुलिस कह रही है. यदि यह सबूत पक्का होगा तो कन्हैया कुमार के समर्थन में खड़े हर एक का चेहरा बेनकाब होना चाहिए. बारह सौ पन्नों का आरोप पत्र है और उसमें अनेक देश विरोधी नारे और भाषणों का समावेश है. ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’, ‘इंशा अल्लाह, इंशा अल्लाह’, ‘कश्मीर की आजादी तक जंग रहेगी’ या ‘भारत मुल्क को एक झटका और दो’ इस तरह के उन्मत्त पूर्ण नारों का फिल्मांकन हुआ है. हिंदुस्थानी फौज के खिलाफ भी नारे लगाए गए हैं. उसकी तीखी प्रतिक्रिया देश में हुई. ‘
‘जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में माओवादी, नक्सलवादी, कश्मीर आजादीवालों का अड्डा है. मोदी तथा उनके भाजपा ने भले ही देश जीता पर वे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय पर झंडा लहरा नहीं पाए. वहां के छात्र संगठन के चुनाव में भाजपा प्रणीत अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की हमेशा ही बुरी तरह हार होती है. देश विरोधी नारा देनेवाले मुट्ठीभर आंदोलनकारियों को वे संभाल नहीं पाते और पराजित नहीं कर पाते. इसका अर्थ है कि इस विश्वविद्यालय में शैक्षणिक माहौल नहीं बचा है और उसे देशद्रोही आंदोलनकारियों की दीमक लग गई है क्या? उनका नेता कन्हैया कुमार अचानक देश के युवकों का नेता बनता है, वो कैसे? जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में ‘ईवीएम’ के जरिए मतदान नहीं होता इसलिए वहां जीत प्राप्त करना मुश्किल हो गया है क्या? महाराष्ट्र के एक मंत्री गिरीश महाजन ने कल ही एक साक्षात्कार में ऐलान किया है कि ‘मुझे कहीं भी भेजो मैं जादू दिखाऊंगा. भाजपा को जीत दिलाकर रहूंगा.’ हमारा भाजपा से आह्वान है कि गिरीश महाजन जैसे करतबी भाजपा मंत्री को ‘जेएनयू’ में रहने को भेजें और देशद्रोहियों को हराएं. सिर्फ उनसे इतना ही कहो ‘जेएनयू’ का चुनाव ईवीएम से नहीं होता. ‘
इस लेख में आगे लिखा है कि जिनका दिल अफजल गुरू के लिए धड़कता है वो देश से चले जाएं…
‘अब कन्हैया कुमार और उनके दस लोगों की टोली पर देशद्रोह का आरोप लगाए जाने के कारण जो तथाकथित वैचारिक तथा वैचारिक स्वतंत्रता वाले छाती पीट रहे हैं उनके खून की जांच की जानी चाहिए. मोदी के खिलाफ ये लोग बोलते हैं इसलिए वे अपराधी नहीं, बल्कि हिंदुस्थान की सार्वभौम संसद को उड़ाने की साजिश के सूत्रधार अफजल गुरू के समर्थन का, उसके ‘जिंदाबाद’ के नारे लगानेवालों के खिलाफ यह आरोप-पत्र है. मुंबई पर हमला करनेवाले कसाब तथा संसद पर हमला करनेवाले अफजल गुरू के लिए जिनका दिल धड़कता है वे इस देश से चले जाएं. कसाब को हिंदुस्थान की अदालत ने बचाव का पूरा मौका दिया था. कन्हैया कुमार तथा उनकी टोली को भी वो मिलेगा. पुलिस द्वारा दिए गए सबूत फर्जी होंगे तो वे अदालत में नहीं टिकनेवाले. कन्हैया कुमार अच्छा बोलता है. वो देश के बागी, बेरोजगार युवकों का प्रतिनिधि है इसलिए वह अफजल गुरू जिंदाबाद तथा कश्मीर आजादी का नारा नहीं दे सकता. वैसे भाजपा भी किस मुंह से कन्हैया कुमार का निषेध करेगी? अफजल गुरू को स्वतंत्रता सेनानी माननेवाली, शहीद ठहरानेवाली महबूबा मुफ्ती के साथ सरकार बनाने का महापाप भाजपा ने कश्मीर में किया है. ऐसे में कन्हैया कुमार पर लगे देशद्रोह के आरोप का राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश न करें यही भाजपा के लिए हितकारी होगा.’
आपके बता दें कि शिवसेना ने साल 2019 लोकसभा चुनाव बीजेपी से अलग लड़ने का ऐलान किया है. हालांकि केंद्र की वर्तमान सरकार और महाराष्ट्र की देवेंद्र फडणवीस सरकार में वह शामिल है.