पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को बीजेपी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया है. वसुंधरा राजे के साथ ही केंद्रीय नेतृत्व ने मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह और छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह को भी राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया है. इस नियुक्ति आदेश के साथ ही 15 साल बाद वसुंधरा राजे एक बार फिर केंद्र की राजनीति में लौटेंगी. इस बीच राजस्थान में दो बार मुख्यमंत्री और 1 बार नेता प्रतिपक्ष के रूप में काम करने के बाद वसुंधरा राजे की केंद्र की राजनीति में वापसी के साथ यह भी साफ हो गया है कि अब राजस्थान में नेता प्रतिपक्ष के रूप में बीजेपी कार्यकर्ताओं और विधायकों को नया चेहरा मिलेगा.
राजस्थान की राजनीति में बीजेपी के बड़े चेहरे के रूप में लंबी पारी खेलने के बाद वसुंधरा राजे की अब एक बार फिर केंद्रीय राजनीति में वापसी हो रही है. अब इसे राजस्थान की राजनीति से वसुंधरा राजे की विदाई के रूप में देखा जाए या फिर केंद्र में सम्मानजनक पद के साथ मुख्यधारा में बने रहने के रूप में, लेकिन प्रदेश में बीजेपी का नया चेहरा और नेतृत्व उभरना तय हो गया है.
साल 2002 में 14 नवंबर के दिन वसुंधरा राजे को बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया गया था. उसके बाद 13 महीनों के कार्यकाल में वसुंधरा राजे ने प्रदेश में घूम-घूम कर लोगों के बीच अपनी जगह बनाई. परिवर्तन यात्रा के जरिए तत्कालीन कांग्रेस सरकार को घेरा तो साथ ही अपने आप को बीजेपी की प्रमुख नेता के रूप में स्थापित भी किया.
नतीजा विधानसभा चुनाव में जीत के रूप में आया और वसुंधरा राजे दिसंबर 2003 में राजस्थान की मुख्यमंत्री बनी. प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री के रूप में वसुंधरा राजे ने काम तो किया लेकिन चुनिंदा नेताओं के कोकस में घिरे रहने के आरोप भी वसुंधरा राजे पर लगातार लगते रहे. यही कारण रहा कि काफी कोशिशों के बावजूद साल 2008 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी और वसुंधरा राजे दोनों ही सरकार में वापसी नहीं कर पाए. पार्टी विपक्ष में तो बैठी लेकिन इस बार भी बीजेपी का चेहरा वसुंधरा राजे ही रहीं. नेता प्रतिपक्ष के रूप में राजे ने बीजेपी की अगुवाई की.
नेता प्रतिपक्ष के रूप में अपने पहले कार्यकाल के दौरान भी वसुंधरा राजे और पार्टी के दूसरे नेताओं में बीजेपी का चेहरा बनने को लेकर प्रतिस्पर्धा देखने को मिली. बीजेपी के नेता गुलाबचंद कटारिया इसके बाद नेता प्रतिपक्ष बने. 14 फरवरी 2013 को वसुंधरा राजे ने एक बार फिर से प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी संभाली. चुनावी साल में प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद वसुंधरा राजे सुराज संकल्प यात्रा लेकर प्रदेश की जनता के बीच गई और दिसंबर 2013 में ऐतिहासिक बहुमत के साथ बीजेपी ने जीत हासिल की.
वसुंधरा राजे एक बार फिर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी. दूसरे कार्यकाल में शगुन और मान्यताओं के चलते मुख्यमंत्री के आधिकारिक आवास यानि 8, सिविल लाइंस से दूरी बनाए रखी. इस बीच केंद्रीय नेतृत्व से भी अलग-अलग मुद्दों पर उनकी दूरियां बढ़ती गई. चुनावी साल के शुरुआत में 2 लोकसभा और 1 विधानसभा सीट पर उपचुनाव में बीजेपी की करारी हार के बाद केंद्र और राज्य के संबंधों में और ज्यादा खटास आ गई. वसुंधरा राजे के विश्वस्त और करीबी माने जाने वाले प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी का इस्तीफा भी अप्रैल 2018 में हो गया. परनामी के इस्तीफे के बाद वसुंधरा राजे ने बार फिर से अपनी ताकत दिखाने की कोशिश की.
जिसके चलते 70 दिन से ज्यादा समय तक बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व राजस्थान के लिए नया प्रदेश अध्यक्ष तय नहीं कर पाया. आखिर वसुंधरा राजे बीजेपी के अध्यक्ष के रूप में मदन लाल सैनी के नाम पर सहमत हुई. वसुंधरा राजे अध्यक्ष पद पर अपनी पसंद का आदमी बैठाने की जंग तो केंद्रीय नेतृत्व से जीत गई लेकिन 6 महीने बाद हुए विधानसभा चुनाव में सत्ता से बीजेपी का सफाया हो गया.
वसुंधरा राजे के दूसरे कार्यकाल के बाद विधानसभा चुनाव में बीजेपी की हार के बाद से इस बात के आसार बनने लगे थे कि अब वसुंधरा राजे संभवत बीजेपी की नेता प्रतिपक्ष नहीं बन पाएंगी. बीते साल के आखिरी दिनों में दिल्ली पहुंची पूर्व मुख्यमंत्री तकरीबन 10 दिन तक राष्ट्रीय राजधानी में रहीं, लेकिन इस दौरान पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष से उनकी मुलाकात नहीं हो सकी. इसके बाद से यह भी करीब-करीब साफ होने लगा था कि वसुंधरा राजे को राजस्थान बीजेपी में प्रदेश अध्यक्ष की भूमिका भी नहीं मिलेगी.
अब पार्टी ने राष्ट्रीय संगठन में उनके लिए जगह बनाई है और उन्हें पार्टी उपाध्यक्ष का ओहदा देकर दिल्ली बुला लिया है. ऐसे में वसुंधरा राजे के समर्थकों में मिलीजुली प्रतिक्रिया दिख रही है. कुछ कार्यकर्ता इस बात से खुश हैं कि जो वसुंधरा राजे अब तक राज्य के दायरे में सिमटी हुई थी, वह अब राष्ट्रीय परिदृश्य में काम करेंगी और भविष्य में उन्हें बड़ा ओहदा मिलने के आसार बने रहेंगे. तो दूसरी तरफ समर्थकों का एक तबका ऐसा भी है जो कहता है कि बड़े राज्य की गुलामी से बढ़िया है छोटी जागीर की सत्ता.