बिजली कर्मियों व इंजीनियरों का कार्य बहिष्कार समाप्त, केन्द्र सरकार को जमकर कोसा

यही रवैया रहा तो लोकसभा चुनाव में भाजपा को चुकानी पड़ेगी भारी कीमतशैलेन्द्र दुबे

लखनऊ : डॉक्टर राम मनोहर लोहिया ने कहा था कि सड़कें जब खामोश होती है तो संसद आवारा हो जाती है। उनकी इसी सोच को अमली जाना पहनाने के लिए बिजली कर्मचारियों व इंजीनियरों की राष्ट्रीय समिति नेशनल कोआर्डिनेशन कमेटी आफ इलेक्ट्रिसिटी इंप्लाइज एवं इंजीनियर्स ने अपनी विभिन्न मांगों को पूरा करने के लिए राष्र्टीय स्तर पर दो दिवसीय कार्य बहिष्कार करने की घोषणा की थी। इसी कडी में 8 और 9 जनवरी को लखनऊ में विभिन्न विद्युत सब स्टेशनों से लेकर प्रदेश मुख्यालय पर विरोध प्रदर्शन किया गया। इस बात की जानकारी शैलेन्द्र दुबे ने देहाती दुनिया डाट काम से विशेष बातचीत में की। उन्होंने केंद्र सरकार की तीखी आलोचना करते कहा कि पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में हार के बावजूद केन्द्र और राज्य में काबिज भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने सबक नहीं सीखा है। यही कारण है कि अभी तक इलेक्ट्रिक एमंडमेंट बिल वापस नहीं लिया है। इसके अलावा विद्युत कर्मचारियों की पेंशन बहाली को लेकर संजीदा नहीं है। यदि एेसा ही रूख रहा तो आने वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा को भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।

शैलेन्द्र दुबे बताते हैं कि विद्युत कर्मचारियों की पेंशन कांग्रेस कार्य काल में बंद हुई थी। परंतु केरल, बंगाल और त्रिपुरा की सरकार ने 2015 में इसे खत्म कर फिर से लागू कर दिया। जबकि भाजपा शाषित राज्यों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। दुबे बताते हैं कि वहीं संविदा पर रखे गए लोग ठेकेदार के उत्पीड़न का शिकार हो रहे हैं और केंद्र सरकार खामोश होकर तमाशा देख रही है। उन्होने कहा कि केंद्र सरकार आंखें बंद करके निजीकरण का काम कर रही है ताकि पूंजीपतियों को फायदा पहुंचे। इसका विरोध दिल्ली की आम आदमी की सरकार ने किया और उसके बाद ओडिशा ने। उन्होंने कहा कि बिजली सेक्टर लगातार वोट और नोट की राजनीति का शिकार हो रहा। उन्होंने कहा कि बानगी के तौर पर मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार को ही लें। उन्होंने अपने कार्यकाल में पूंजीपतियों से एेसे समझोते किये कि आम जनता दर्द से कराह उठी। उन्होंने 2016-2017 में बिना एक ईट लगाए इन कंपनियों को पांच हजार करोड़ का भुगतान कर दिया वहीं 2017-18 में 8 हजार करोड़ का भुगतान किया। इस मामले को लेकर नव नियुक्त मुख्य मंत्री कमलनाथ ने जांच का भरोसा दिलवाया है।

शैलेन्द्र दुबे कहते हैं कि भाजपा सरकार की नीति व नियत का आंकलन इसी बात से किया जा सकता है कि कारपोरेट घराने को खुश करने के लिए उन्हें सस्ती बिजली मुहैया करवाने जा रही है जबकि आम जनता को मंहगी। दुबे राजनीतिक दलों की तीखी आलोचना करते कहते हैं कि अपनी राजनीतिक चमकाने के लिए ये लोग मुफ्त की बिजली बांटने का काम कर रहे है और घाटे का ठीकरा बिजली बोर्ड पर फोड़ने का काम कर रहे हैं। और उसकी आड़ में निजीकरण कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह सिलसिला बंद होना चाहिए। उन्होंने कहा वे राजनीति नहीं करेंगे। अगर राजनीति तय करती है हमारा भविष्य तो हम तय करेंगे राजनीति भविष्य। इसके लिए मैनीफेस्टो तैयार किया जा रहा है और सभी राजनीतिक दलो को भेजा जाएगा जो राजनीतिक दल हमारी मांगों का समर्थन करेगा हम उसका साथ देंगे। उन्होंने बताया कि इलेक्ट्रिक एमंडमेंट बिल का समर्थन दिल्ली, केरल, तमिलनाडु, आन्ध्रप्रदेश पंजाब ओडिशा के अलावा बिहार की सरकार किया है। वे कहते कि 2019 परिवर्तन का साल है और केंद्र सरकार के लिए अंतिम।

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