सवर्णों को आरक्षण का पासा फेंकने वाली मोदी सरकार ने अब ओबीसी का फ्रेश डाटा कलेक्शन का निर्णय लिया है। हालांकि यह फैसला कोई नया नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि बीते वर्ष सितंबर में ही गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने सदन ने इसका जिक्र कर दिया था। सरकार ने इस बाबत जो ताजा निर्णय लिया है वह इसकी ही एक कड़ी है। हालांकि यहां पर आपको बता दें कि इस निर्णय के बाद देश में पहली बार ऐसा होगा कि पिछड़े वर्ग की जनगणना अलग से होगी। यहां पर आपको ये भी बता दें कि 2021 में ही आम जनगणना होनी है, जिसमें जनसंख्या के ताजे आंकड़े जुटाए जाएंगे। इसके तहत ही ओबीसी की गणना अलग से होगी। इस तरह की मांग काफी समय से ओबीसी नेताओं की तरफ से भी उठाई जाती रही है। इसका मकसद आरक्षण और अन्य विकास योजनाओं में उनकी सही भागीदारी सुनिश्चित करना है।
तीन वर्ष का लगेगा समय
यहां पर ये भी बताना जरूरी है कि 2021 में जुटाए गए आंकड़ों को सामने आने में तीन वर्ष का समय लगेगा। 2024 में इसकी विस्तृत तस्वीर सामने आ सकेगी। जहां तक ओबीसी के आंकड़ों की बात है तो अब तक इनके सही आंकड़े सरकार के पास मौजूद नहीं हैं। लिहाजा इस बार इनके आंकड़ों को जुटाने में तकनीक भी मददगार साबित होगी। 2024 में इन आंकड़ों को जारी कर दिया जाएगा। तकनीक की बदौलत ही इन्हें इतने कम समय में जारी भी किया जा सकेगी, नहीं तो पहले इस तरह के आंकड़े जारी करने में 5 से आठ वर्ष तक का समय लग जाता था। देश में जनगणना के आंकड़ों को जुटाने के लिए के लिए 25 लाख लोगों को खास ट्रेनिंग दी जाएगी।
मिला था 27 फीसद आरक्षण
यहां पर ये बताना जरूरी हो जाता है कि मंडल कमीशन के आधार पर ओबीसी को 27 फीसद का आरक्षण दिया गया था। यह रिपोर्ट 1931 की जनगणना के आंकड़ों पर आधारित थी। 2006 में ओबीसी की आबादी 41 फीसद बताई गई थी। इसके अलावा राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) ने 2006 में एक सैंपल सर्वे रिपोर्ट जारी की थी। इसके मुताबिक देश की कुल आबादी में से 41 फीसद आबादी ओबीसी की है। संगठन ने देश के 79,306 ग्रामीण घरों और 45,374 शहरी घरों का सर्वे कर यह रिपोर्ट तैयार की थी। इसके अलावा यूपीए सरकार ने 2011 में देश में सामाजिक-आर्थिक-जातीय गणना कराई थी।
सर्वेक्षण में खामियां
2011 में हुए सामाजिक आर्थिक सर्वेक्षण में कई तरह की खामियां उजागर हुई थीं। इसमें देश में करीब 46 लाख जातियां बताई गई थीं। इसमें जातियों की उपजातियां और आम बोलचाल की भाषा में कही जाने वाली जातियों को भी दूसरी जातियों की तरह दर्ज कर लिया गया था। इसके अलावा इस काम में लगे लोगों की वजह से भी इसको सही तरह से दर्ज नहीं किया जा सका। यहां पर ये जान लेना जरूरी होगा कि देश में पहली बार जाति आधारित जनगणना 1931 में करवाई गई थी।