वर्षों बाद एक बार फिर हिमालय शुभ संकेत दे रहा है। बर्फ से लकदक चोटियों से भले ही इस समय आमजन ठिठुर रहा है, लेकिन गर्मियों के लिए यह राहत भरा संकेत है। यह बर्फबारी नदियों के घट रहे जलस्तर की वृद्धि भी सहायक होगी। विगत एक दशक के बीच उच्च हिमालय में लुप्त हो चुके सीजनल ग्लेशियरों के एक बार फिर अस्तित्व में आने के आसार बन चुके हैं।
देश भर में साल भर लबालब पानी से भरी रहने वाली नदियों का उद्गम हिमालय है। ग्लोबल वार्मिंग के चलते हिमालय में मौसम पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता जा रहा था। जिसके दुष्परिणाम भी सामने आ रहे हैं। हिमनदों से निकलने वाली नदियों के जलस्तर में कमी आ रही थी। उच्च हिमालय में सीजनल ग्लेशियर कम बनने से इनसे निकलने वाली जलधाराएं सूखती जा रही हैं। जिसके चलते कई नाले मृत हो गए, तो साथ ही जीवित नदी, नालों की उम्र घटती जा रही है। इसको लेकर पर्यावरणविद भी चिंतित हैं।
आठ साल बाद हुआ ऐसा हिमपात
इस वर्ष हिमालय में मौसम अनुकूल रहा है। उच्च हिमालय में भादो माह से ही बर्फ गिरने लगी। सितंबर प्रथम सप्ताह के बाद दिसंबर तक हिमालय में बर्फ गिरती रही है। नए साल के सात दिनों में दो बार भारी हिमपात से एक नई आस जगी है। मौसम विज्ञान और पर्यावरणविद् इसे शुभ संकेत बता रहे हैं। आठ वर्ष पूर्व भी सितंबर में पहला हिमपात अच्छा खास था लेकिन बाद में इसकी गति इस वर्ष जैसी नहीं रही।
मौसम में संतुलन लाती है बर्फ
सफेद आफत के रूप में बर्फ बर्फीले स्थानों पर रहने वालों के लिए आफत लाती है, लेकिन पर्यावरण से लेकर जनजीवन के लिए मौसम में संतुलन लाती है। मौसम के जानकार बताते हैं कि शीतकाल में हिमालय में अच्छी बर्फबारी से ग्रीष्म काल में मौसम में संतुलन बना रहता है और बारिश भी होती है।
हिमानी नदियों की बढ़ जाती है उम्र
हिमालय में अच्छी बर्फबारी से हिमानी नदियों की उम्र बढ़ती है। ग्लेशियरों के बढऩे और अल्पाइन ग्लेशियरों के बनने से नदियों में जल तो बढ़ता ही है साथ ही उनकी उम्र बढ़ती है। जिले में हिमनदों से निकलने वाली नदी, नालों की संख्या काफी अधिक है। जिसमें प्रमुख रूप से काली गंगा, धौलीगंगा, गोरीगंगा, मंदाकिनी, रामगंगा, सेरा सहित दर्जनों सहायक नदियां हैं। सभी नदियां पंचेश्वर में काली नदी में मिल जाती हैं। जहां से काली नदी को शारदा नाम से जाना जाता है। शारदा नदी से टनकपुर से आगे ऊपरी और निचली शारदा नहर बनी है। जिनसे उत्त्तराखंड के तराई से लेकर बिहार, बंगाल सिंचाई की जाती है। शारदा नदी यूपी के चौका घाट में गंगा नदी में मिल जाती है।
खुद बन कर खुद मिट जाते हैं ग्लेशियर
सम्पूर्ण उच्च हिमालय में सबसे अधिक संख्या सीजनल ग्लेशियरों की है। जिन्हें अल्पाइन ग्लेशियर कहा जाता है। ये शीतकाल में बनते हैं और गर्मी प्रारंभ होते ही पिघलने लगते हैं। ये जल के बहुत बड़े स्रोत हैं। बीते वर्षों में कम हिमपात के चलते इनकी संख्या घट रही थी। इस बार की बर्फबारी ने इनकी बढ़ोत्तरी के संकेत दिए हैं। सीजनल ग्लेशियरों के कम होने से जिले की प्रमुख नदियों काली, गोरी, रामगंगा , धौली के जल स्तर में कमी आने लगी थी। जौलजीवी में काली और गोरी नदी के संगम स्थल पर विगत वर्षों में जलस्तर दो से तीन फीट कम हुआ है। अच्छी बर्फबारी से इसकी भरपाई के आसार हैं।
जड़ी बूटी और सेब, राजमा के लिए अच्छी है बर्फबारी
उच्च हिमालयी क्षेत्रों में दुलर्भ जड़ी बूटियां जैसे सालम पंजा, कटकी, अतीस, जटमासी, कीड़ा जड़ी उत्पादित होती हैं। इन सबके लिए बर्फबारी आवश्यक है। सभी जड़ी बूटियों का दवाइयों में प्रयोग किया जाता है। कीड़ा जड़ी तो बर्फ पिघलने के बाद फंगस के रूप में जमीन से बाहर निकलती है। कम बर्फबारी से प्रतिवर्ष इनका क्षेत्र खिसक रहा था। वहीं कम बर्फबारी के कारण सेब का उत्पादन भी बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। सेब के लिए 1800 घंटे चिलिंग प्वाइंट चाहिए। जो मात्र बर्फबारी से ही संभव है। बीते वर्षो में कम बर्फबारी से सेब का उत्पादन नगण्य हो गया था। उन्नत किस्म का राजमा भी बर्फीले क्षेत्रों में होता है।
हिमपात से मिट्टी के हानिकारक कीट नष्ट होते हैं
हिमालय के जानकार पीएस धर्मशक्तू ने बताया कि अच्छी बर्फबारी मौसम के लिए अच्छा संकेत है। यह मौसम में संतुलन बनाने में सहायक साबित होगी। यदि आने वाले दिनों में भी बर्फबारी इसी गति से होती है तो मध्य हिमालय में भी हिमपात की संभावना है। हिमपात फसलों के लिए बेहद लाभदायक होता है। इससे मिट्टी में हानिकारक माने जाने वाले कीट नष्ट होते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि भारी हिमपात से नदी, नालों की उम्र बढ़ेगी। हिमालय के बड़े ग्लेशियरों लिए अभी आने वाले दस से अधिक वर्षो तक ऐसे हिमपात की जरूरत है।