जीभ से त्रिशूल आर-पार करना हो या मुंह अथवा हथेली पर जलती आग लेकर चलना हो, अक्सर लोग इसे बाबाओं या तांत्रिकों का चमत्कार या जादू समझ लेते हैं, लेकिन असल में यह सब विज्ञान का कमाल है। एलपीयू में चल रही 106वीं इंडियन साइंस कांग्रेस में डिपार्टमेंट ऑफ साइंस टेक्नोलॉजी इसकी पोल खोल रही है। उत्तर प्रदेश से आए अनस फारूखी लोगों को इसके पीछे का वैज्ञानिक कारण बताकर जागरूक कर रहे हैं।
इंडियन साइंस कांग्र्रेस में उत्तर प्रदेश से आए अनस फारुखी लोगों को कर रहे जागरूक
फारूखी ने पहले मुंह में व हथेली पर जलती आग रखकर दिखाई। फारूखी के मुताबिक बाबा या तांत्रिक इसके लिए कपूर का इस्तेमाल करते हैं। हमारी त्वचा की बनावट ऐसी है कि वह तीन सेकेंड तक 1200 डिग्री तापमान बर्दाश्त कर लेती है। इसी का फायदा उठाकर ऐसे बाबा या तांत्रिक तीन सेकेंड के लिए कपूर एक हाथ में रखते हैं और फिर दूसरे हाथ में। इसी तरह कपूर की एक खासियत है कि यह आग से सीधे गैस बन जाता है। इसीलिए मुंह में डालकर मुंह बंद कर देते हैं और कपूर की आग सीधे गैस बन जाती है।
उन्होंने बताया कि इसी तरह जुबान में त्रिशूल चुभाने की ट्रिक दिखाते हैं। इसमें वो त्रिशूल की डंडी में बनाया लूप यानी घुमाव छुपा लेते हैं और फिर कहते हैं कि त्रिशूल आर-पार हो गया और खून भी नहीं निकला। वहीं, अक्सर नब्ज बंद होने या धड़कन रुकने की बात कह बाबा समाधि पर जाने व फिर वापस लौटने की बात कहते हैं। हकीकत में वो कोई ठोस चीज जब अपने कंधे व हाथ के ज्वाइंट पर दबा लेते हैं, जिससे कुछ देर के लिए नब्ज बंद हो जाती है।
उन्होंने बताया कि इसी तरह जब एक झटके से सांस खींचते हैं तो उस प्रेशर से फेफड़े व दूसरे अंग फूल जाते हैं और धड़कन की फीलिंग नहीं आती। शैतान को पानी के गिलास व छलनी में कैद करने का भी नाटक किया जाता है। फारूखी ने बताया कि जब हम पानी के गिलास को एकदम से छलनी के ऊपर उलटा करते हैं तो हवा का प्रेशर एक ही तरफ से रह जाता है। वहां से आने वाला दबाव पानी को बाहर नहीं आने देता।
उन्होंने बताया कि इसी तरह चावल के लोटे को कैंची या किसी दूसरी चीज से उठाने का भी चमत्कार दिखाया जाता है। हकीकत में जब हम चावल से भरे लोटे को पुश करते हैं तो चावल अपने आकार के हिसाब से एक-दूसरे से सट जाता है और ठोस बन जाता है। इसी वजह से इसे उठाकर चमत्कार या जादू का नाम दे दिया जाता है।