पेड़ सिर्फ आने वाले मौसम की ही जानकारी नहीं देते हैं, बल्कि ये अतीत के सदियों पुराने प्रकृति के रहस्यों के जीते-जागते दस्तावेज हैं। पेड़ बताते हैं कि तीन सौ साल पहले किस साल किस तरह का मौसम था। किस साल में सूखा पड़ा, किस साल में मानसून अच्छा था। जी हां भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के वैज्ञानिकों ने पेड़ों में छिपे प्रकृति के इन दस्तावेजों को खोज निकाला है।
आइआइटीएम के वैज्ञानिकों ने 300 साल पूर्व तक के मौसम का हाल जाना
इंडियन साइंस कांग्रेस में पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा लगाई गई प्रदर्शनी में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मीट्रोलॉजी (आईआईटीएम) पुणे से पहुंचे वैज्ञानिक भूपिंदर दास एवं गुरुनाथ ने यहां आने वालों को पेड़ों में छिपे प्रकृति के इन रहस्यों को बताया। भूपिंदर दास ने बताया कि टीक, कॉनीफर, देवदार के पेड़ों के तनों में एक साल की अवधि में एक रिंग बनती है, तने को काटकर उसमें बनने वाली रिंग की स्टडी की जाए तो अतीत में मौसम कैसा रहा इसके पन्ने खुद व खुद खुलते चले जाते हैं।
तने में बनी कुल रिंग पेड़ की उम्र और रिंग की चौड़ाई बताती है मौसम का हाल
जिस साल तने (स्टेम) में बनने वाली रिंग की चौड़ाई जितनी ज्यादा होगी, उस साल का मौसम उतना ही ज्यादा सुहावना रहा होगा। रिंग की चौड़ाई कम होने का संकेत होता है कि पेड़ को ठीक से पोषण नहीं मिला, यानि पेड़ को पानी, धूप जैसी जिन प्राकृतिक चीजों की जरूरत थी वो ठीक से नहीं मिल सके।
पेड़ को ये सारी चीजें प्रकृति से मिलती हैं, जो मौसम पर निर्भर होता है। जिस साल का मौसम जितना अच्छा होता है पेड़ को धरती से उतने ही अच्छे पोषक तत्व मिलते हैं। पृथ्वी विज्ञान विभाग के वैज्ञानिक पेड़ों की मदद से 300 साल पुराने मौसम की जानकारी हासिल कर चुके हैं।
3200 साल पुरानी गुफाओं के रहस्य भी जाने
पेड़ ही नहीं बल्कि भारत में आंध्र प्रदेश, उत्तराखंड, हिमालय के पहाड़ों में स्थित गुफाएं भी अपना इतिहास खुद समेटे हुए हैं, सिर्फ उस इतिहास को पढऩे वाली आंखे चाहिए। अर्थ विज्ञान मंत्रालय के वैज्ञानिकों ने गुफाओं से मिले कैल्शियम कार्बोनेट से बने पत्थरनुमा अवशेषों में गुफाओं के रहस्यों को खोजा है।
इन अवशेषों को बीच में से जब काटा जाता है तो न सिर्फ उसके बीच प्रकृति के अनुपम सौंदर्य के दृश्य उभरकर सामने आते हैं, बल्कि इन पत्थरों में प्रकृति द्वारा उकेरी गई कलाकृतियों में 3200 साल तक पुराने रहस्यों को वैज्ञानिकों ने पढ़ लिया है।