सुप्रीम कोर्ट ने नेस्ले इंडिया के खिलाफ राष्ट्रीय उपभोक्ता वाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) में सरकार के मामले में गुरुवार को आगे कार्यवाही की अनुमति प्रदान कर दी है. इस मामले में सरकार ने कथित अनुचित व्यापार तरीके अपनाने, झूठी लेबलिंग और भ्रामक विज्ञापनों को लेकर 640 करोड़ रुपये की क्षतिपूर्ति की मांग की है.
दिग्गज एफएमसीजी कंपनी नेस्ले ने मैगी नूडल मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का स्वागत किया है. एनसीडीआरसी में दायर अपनी याचिका में मंत्रालय ने आरोप लगाया था कि नेस्ले ने यह दावा कर उपभोक्ताओं को भ्रमित किया है कि उसका मैगी नूडल गुणकारी ‘‘टेस्ट भी हेल्दी भी’’ है.
न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की पीठ ने कहा कि इस मामले में केंद्रीय खाद्य प्रौद्योगिकीय अनुसंधान संस्थान (सीएफटीआरआई) मैसूरू की रिपोर्ट कार्यवाही का आधार होगी. इसी संस्थान में मैगी के नमूनों की जांच की गई थी.
शीर्ष अदालत ने पूर्व में राष्ट्रीय उपभोक्ता वाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) में चल रहे इस मामले में कार्यवाही पर 16 दिसंबर 2015 को तब रोक लगा दी थी जब नेस्ले ने इसे चुनौती दी थी. न्यायालय ने सी एफटीआरआई मैसूरू को निर्देश दिया था कि वह अपनी जांच रिपोर्ट उसके समक्ष रखे.
उसी वर्ष भारतीय खाद्य सुरक्षा मानक प्राधिकरण (एफ एस एस ए आई) ने नमूनों में सीसे का अत्यधिक स्तर पाए जाने के बाद मैगी नूडल्स पर रोक लगा दी थी और इसे मानव उपयोग के लिए ‘‘असुरक्षित और खतरनाक’’ बताया था. इस मामले की सुनवाई के दौरान नेस्ले इंडिया की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने पीठ को बताया कि मैसूरू प्रयोगशाला की जांच रिपोर्ट आ गई है और पाया गया है कि मैगी नूडल्स में सीसे की मात्रा तय सीमा के दायरे में है.
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने सिंघवी से पूछा, ‘‘हमें सीसे वाली मैगी क्यों खानी चाहिए?’’ सिंघवी ने जवाब दिया कि नूडल्स में सीसे की मात्रा तय सीमा के दायरे में है और अन्य कई उत्पादों में भी थोड़ा बहुत सीसा होता है.
पीठ ने कहा, ‘‘हमारा मानना है कि सीएफटीआरआई की रिपोर्ट का एनसीडीआरसी द्वारा मूल्यांकन किया जाए जहां शिकायत दर्ज है. एनसीडीआरसी के अधिकारक्षेत्र का उल्लंघन करना इस अदालत के लिए उचित नहीं होगा…पक्षों के सभी अधिकार और तर्क उपलब्ध रहेंगे.’’
सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल विक्रमजीत बनर्जी ने कहा कि मैसूरू प्रयोगशाला की रिपोर्ट के मद्देनजर मामला वापस एनसीडीआरसी के पास जाना चाहिए और कार्यवाही पर लगी रोक हटाई जानी चाहिए. सिंघवी ने कहा कि मामला अब निष्फल हो चुका है क्योंकि रिपोर्ट ‘‘मेरे पक्ष में है’’ और एमएसजी (मोनोसोडियम ग्लूटामेट) नहीं पाया गया है.
सिंघवी और वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दत्तार ने मामला फिर से एनसीडीआरसी के पास भेजे जाने का विरोध किया और कहा कि प्रयोगशाला की रिपोर्ट के बाद ऐसा कुछ नहीं बचा है जिस पर फैसला किया जाए.
पीठ ने कहा, ‘‘हमें एनसीडीआरसी की शक्ति क्यों छीननी चाहिए ? हम प्रयोगशाला की रिपोर्ट आयोग को भेजेंगे और उससे उसके समक्ष दायर शिकायत का निपटारा करने के लिये कहेंगे.’’
इसने कहा कि बम्बई उच्च न्यायालय के 2015 के उस फैसले के खिलाफ अपील पर बाद में सुनवाई की जाएगी जिसमें नेस्ले के मैगी नूडल्स पर प्रतिबंध के एफएसएसएआई के आदेश को निरस्त कर दिया गया था. उपभोक्ता मामले मंत्रालय ने 2015 में लगभग तीन दशक पुराने उपभोक्ता संरक्षण कानून के एक प्रावधान का इस्तेमाल करते हुए नेस्ले इंडिया के खिलाफ एनसीडीआरसी में शिकायत दर्ज कराई थी.
इसने नेस्ले पर आरोप लगाया था कि अनुचित व्यापार तरीकों, झूठी लेबलिंग और मैगी नूडल्स से संबंधित भ्रामक विज्ञापनों के जरिए उसने भारतीय उपभोक्ताओं को नुकसान पहुंचाया. यह पहली बार था जब सरकार ने उपभोक्ता संरक्षण कानून की धारा 12-1-डी के तहत कार्रवाई की जिसके तहत केंद्र और राज्यों दोनों को शिकायत दर्ज कराने की शक्तियां प्राप्त हैं.