– पवन सिंह
लखनऊ : कांग्रेस फिर से उन्हीं गलतियों की ओर बढ़ चली है जो वह करती आई है। कांग्रेस का आत्ममुग्ध शीर्ष नेतृत्व शायद अभी भी बहुसंख्यकों की संवेदनाओं के सरोकारों को या तो समझ नहीं पाया है या वो समझना नहीं चाहता है। कांग्रेस की इन्हीं तमाम खामियों व बोलवचनों को भाजपा वैसे ही लपकती है, जैसे बैट्समैन द्वारा हवा में खेली गई गेंद को फील्डर लपक लेता है। आज ही मध्य प्रदेश से यह खबर आ रही है कि स्कूलों में वंदेमातरम् बोलना अब आवश्यक नहीं रहेगा। इससे पहले कांग्रेस ने मीसा बंदियों को मिलने वाली पेंशन भी बंद करने की दिशा में पहल शुरू कर दी है। कांग्रेसी नेतृत्व को यह बात दिमाग में बैठा लेनी चाहिए कि मध्य प्रदेश में बचते-बचाते जीत मिली है और भाजपा का मध्य प्रदेश का संगठन अभी भी बहुत ताकतवर है। ऐसे में बहुसंख्यकों की संवेदनाओं से जुड़े वंदेमातरम् पर कांग्रेसी हमला उसके लिए ठीक वैसा ही साबित हो सकता है जैसे किसी पेड़ पर लटके मधुमक्खी के छत्ते पर कंकड मारना। कांग्रेस को इससे वोटों का शहद तो नहीं मिलेगा अपितु भाजपा इसका अपने हित के लिए बेहतर इस्तेमाल करेगी। कांग्रेस को यह समझने, चिंतन करने की सख्त जरूरत है कि ऐसा क्या न बोला जाए, लिखा जाए….जिसका लाभ भाजपा उठाए। विगत वर्षों में ऐसे कई कांग्रेसी बयान आए जिनको भाजपा ने लपका और कांग्रेस रन आऊट हुई। भाजपा में बौद्धिक लोगों की एक मजबूत टीम है, साथ ही उनका मीडिया प्रबंधन कुछ ही क्षणों में ऐसे बयानों को राष्ट्रवाद से जोड़ कर बहुसंख्यकों के दिल व दिमाग में उतारने की कला में लग जाता है। मुझे नहीं लगता कि कमलनाथ को इस “संवेदनशील शब्द” को छूना चाहिए था।
हाल ही में एनआईए के छापों पर जिस तरह की प्रतिक्रिया कांग्रेस के कुछ नेताओं ने दी, वह भी उचित नहीं है। भाजपा ने तुरंत उसे राष्ट्रीय सुरक्षा से जोड़ा और कांग्रेस को घेरा कि उसकी वोट पाॅलिटिक्स की वजह से देश में फिरकापरस्तों को बल मिला। भाजपा ने सीना ठोंक कर कहा कि जांच एजेंसियों को पूर्ण स्वतंत्रता देकर उसने आंतरिक सुरक्षा को काफी पुख्ता किया है। भाजपा के इस दावे में दम भी है। कांग्रेस के जेहन में एक कीडा घुस चुका है कि यदि अलगाववादियों व फिरकापरस्तों का खुला व कट्टर विरोध करेंगे तो अल्पसंख्यकों के वोट मिलेंगे या अल्पसंख्यकों का एकमुश्त रूझान उनकी ओर होगा…इसका तात्पर्य यह हुआ कि आप पूरी की पूरी अल्पसंख्यक बिरादरी को ही एक खांचे विशेष में फिट करना चाह रहे हैं। यह विषय देश की संवेदनाओं से जुड़े विषय हैं और कांग्रेस नेतृत्व को फिर से सोचना पड़ेगा कि तुष्टिकरण उसे ले डूबेगा। क्यों कि भाजपा आपकी इसी मानसिकता पर आपको घेरेगी और चुनावी दंगल में धोबियापाटा करेगी। कांग्रेस ने थोड़ा सा समझा है जब राहुल गांधी मंदिर-मंदिर घूमने लगे। इसका लाभ भी कांग्रेस को मिला। कांग्रेस को एक बीच का रास्ता निकालना होगा कि बहुसंख्यकों की भावनाएँ भी आहत न हों और अल्पसंख्यक भी खुश रहें।
महाराष्ट्र के एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता से पिछले दिनों लंबी गुफ्त-गू हुईं। उन्होंने स्वीकार किया कि सर्जिकल स्ट्राइक पर संजय निरूपम की बद्जुबानी ने पार्टी को गहरा झटका दिया। मणिशंकर अय्यर टाइप के नेताओं के बयान बहुसंख्यक समुदाय में एक चिढ व खीज पैदा करते हैं और उसका पूरा लाभ भाजपा उठाती है। भाजपा उस वक्त असहज हो उठती है जब राहुल गाँधी जनेऊ पहनते हैं और मानसरोवर जाते हैं । भाजपा गोत्र से लेकर परिवार की जन्म कुंडली ख॔गालने लगती है। दरअसल यह उसे बेचैन करता है क्योंकि उसे लगता है उसकी बहुसंख्यक समुदाय की राजनीति का एकाधिकार कोई छीनने का प्रयास कर रहा है। देश में बहुत से ऐसे मुद्दे हैं जिस पर कांग्रेस भाजपा को लगातार घेर सकती है लेकिन उसे ऐसे बयानों व कृत्यों से अपने को दूर रखना होगा जिसे भाजपा राष्ट्रवाद, राष्ट्रीय अस्मिता, बहुसंख्यकों की भावनाओं से जोड़कर, उस पर भारी न पड़े। काश्मीर और सेना भी देश की संवेदनाओं से जुड़े दोस्त अति संवेदनशील विषय हैं, इस पर भी कांग्रेस को समझने की जरूरत है। कांग्रेसियों को यह स्वीकार करना होगा कि अब तुष्टीकरण की राजनीति से भला नहीं होगा और भाजपा को भी सोचना होगा कि राम-भगवा-राष्ट्रवाद से नहीं काम ही सत्ता बनाए रखेगा। बकलोली करने से कुछ नहीं मिलेगा क्योंकि अब कोई भी बहुत दिनों तक किसी को बरगला नहीं सकता है। भूखे पेट भजन नहीं होता और भूखा सैनिक भी हथियार रख देता है।