नई दिल्ली : सिख विरोधी दंगा मामले में पीड़ितों की ओर से लड़ी गई लंबी कानूनी लड़ाई के बाद आखिरकार दोषी सज्जन कुमार को जेल जाना पड़ा। सोमवार दोपहर को कड़कड़डूमा कोर्ट में आत्मसमर्पण के बाद उन्हें मंडोली जेल भेज दिया गया। इस मामले में पीड़ितों ने 34 साल की लड़ाई लड़ी, तब जाकर उन्हें सफलता मिली। इससे पहले दिल्ली में कांग्रेस के कद्दावर नेताओं में शामिल सज्जन ने ऐसा कभी नहीं सोचा होगा कि सिख दंगों के मामले में उन्हें जेल जाना पड़ेगा। दंगों की आंच से नहीं बच पाने के कारण ही उन्हें कांग्रेस से इस्तीफा देना पड़ा था। वर्ष 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देशभर में सिख दंगे भड़क गए थे। इंदिरा गांधी की हत्या उनके ही सिख अंगरक्षकों ने की थी। वह अमृतसर में स्वर्ण मंदिर में सेना के प्रवेश से नाराज थे। इसके बाद सिखों के खिलाफ दंगे भड़क गए। इन दंगों में पांच हजार लोगों की मौत हुई। अकेले दिल्ली में करीब दो हजार से ज्यादा लोग मारे गए।
इन्हीं दंगों से जुड़े मालमों में सज्जन कुमार पर आरोप लगे कि उनके कहने पर भीड़ ने सिखों पर हमला किया। इसमें राजनगर इलाके में भीड़ ने पांच सिखों की हत्या कर दी थी जिस मामले में उन्हें उम्रकैद की सजा हुई है। हाईकोर्ट ने सज्जन को 31 दिसम्बर तक सरेंडर करने का आदेश दिया था। सज्जन कुमार ने दिल्ली हाईकोर्ट से सरेंडर करने के लिए समय देने की मांग की थी, जिसे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था। हाईकोर्ट के आदेश को सज्जन कुमार सुप्रीम कोर्ट गए जहां से उन्हें कोई राहत नहीं मिली।
कौन हैं सज्जन कुमार!
सज्जन कुमार का जन्म 23 सितंबर,1945 को दिल्ली में ही हुआ था और उनके परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी। जिंदगी की शुरुआत रेहड़ी पर चाय बेचकर की थी। सज्जन कुमार 70 के दशक से कांग्रेस में सक्रिय हुए। इस दौरान कांग्रेस नेता संजय गांधी से उनका संपर्क आए। पहली बार सज्जन कुमार बाहरी जिले के मादीपुर इलाके से नगर निगम का चुनाव लड़े और 1977 में पार्षद बने। कांग्रेस ने उन्हें 1980 में बाहरी जिले से लोकसभा का उम्मीदवार बनाया और वह 35 साल की उम्र में दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री चौधरी ब्रह्म प्रकाश यादव को हराकर सांसद बने। वर्ष 2004 में भारतीय राजनीति में सज्जन कुमार के नाम दो रिकॉर्ड दर्ज हुए। पहला देशभर में लोकसभा चुनावों में सबसे ज्यादा मत पाने का रिकॉर्ड और दूसरा दिल्ली से सबसे अधिक मतों से चुनाव जीतने का रिकॉर्ड। उन्हें आठ लाख से अधिक वोट मिले थे।
1984 दंगों के बाद कांग्रेस ने सिख समुदाय की नाराजगी से बचने के लिए 1989 में उनका टिकट काट दिया। 1991 में कांग्रेस ने बदले सियासी माहौल में एक बार फिर उन्हें बाहरी दिल्ली संसदीय क्षेत्र से टिकट दिया और वह दोबारा संसद पहुंचे। इस बीच सिख दंगों को लेकर चर्चा काफी गर्म रही। 1993 में दिल्ली विधानसभा चुनाव हुए और सज्जन के कई साथी विधानसभा में जीतकर आ गए। 1996 के चुनाव में भाजपा के वरिष्ठ नेता कृष्णलाल शर्मा के हाथों उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इस बीच अलग-अलग अदालतों में सज्जन कुमार के खिलाफ कई केस दर्ज हो चुके थे। सीबीआई ने भी सज्जन कुमार के खिलाफ आरोपपत्र दायर किया था। नाजुक हालत देखते हुए 1998 और 1999 में एक बार फिर कांग्रेस ने लोकसभा चुनावों में उनका टिकट काट दिया। बावजूद इसके बाहरी दिल्ली में सज्जन का प्रभाव कम नहीं हुआ और 2004 में वे फिर से लोकसभा टिकट पा गए। वर्ष 2009 के चुनावों में दंगों के मामले को लेकर सज्जन का टिकट कट गया लेकिन वे अपने भाई रमेश कुमार को टिकट दिलवाने में कामयाब रहे और उनको सांसद बनाया।