वन्यजीव विविधता के लिए मशहूर उत्तराखंड के जंगली जानवर कुख्यात बावरिया गिरोहों के निशाने पर हैं। राज्य में बाघ, गुलदार समेत दूसरे जानवरों के शिकार की 80 फीसद घटनाओं में इन गिरोहों की संलिप्तता की बात सामने आती रही है। अब पुराने साल की विदाई और नए वर्ष के स्वागत में होने वाले जश्न के बीच उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्रों में इन कुख्यात शिकारी गिरोहों के सदस्यों की दस्तक की आ रही खबरों ने उत्तराखंड के वन्यजीव महकमे की पेशानी पर बल डाल दिए हैं। हालांकि, विभाग का दावा है कि राज्य से लगी सीमाओं पर चौकसी बढ़ा दी गई है। साथ ही दोनों राज्यों के वनकार्मिक संयुक्त रूप से गश्त भी कर रहे हैं।
वन्यजीवों की सुरक्षा के मद्देनजर बावरिया गिरोह महकमे के लिए सबसे अधिक सिरदर्द बने हुए हैं। कार्बेट टाइगर रिजर्व से लेकर राजाजी रिजर्व तक का क्षेत्र हो या फिर दूसरे इलाके, वहां होने वाली शिकार की अधिकांश घटनाओं में बावरिया गिरोहों के संलिप्त होने की बात सामने आती रही है। पूर्व में वन्यजीव महकमे ने इन कुख्यात गिरोहों की पड़ताल की तो बात सामने आई कि यहां पांच बावरिया गिरोह सक्रिय हैं, जिनके करीब 88 से ज्यादा सदस्य हैं। बावजूद इसके बावरिया गिरोहों से पार पाने में अभी तक पूरी तरह सफलता नहीं मिल पाई है।
अब जबकि वन एवं वन्यजीव सुरक्षा के लिहाज से ‘खतरनाक वक्त’ चल रहा है तो ऐसे में फिर से इनकी दस्तक की मिल रही खुफिया सूचनाओं ने बेचैनी बढ़ा दी है। दरअसल, इस वक्त पुराने साल की विदाई और नए वर्ष के स्वागत के लिए जश्न की उल्टी गिनती शुरू हो गई है। वन विश्राम भवनों से लेकर आरक्षित-संरक्षित क्षेत्रों से सटे होटल-रिसॉर्ट पैक हो चुके हैं और वहां जश्न की तैयारियां चल रही हैं। ऐसे में वन्यजीव महकमे की नजर इन पर भी टिकी है। यदि जश्न की आड़ में कहीं कोई ऊंच-नीच हो गई तो कौन जवाब देगा। इसलिए इसे खतरनाक वक्त भी कहा जाता है।
सूरतेहाल, महकमे के लिए यह दोहरी जिम्मेदारी का वक्त होता है। उसे होटल-रिसॉर्ट व वन विश्राम भवनों पर निगाह रखनी है तो जंगल पर भी। चिंता ये साल रही कि इस दौरान कोई शिकारी गिरोह जंगल में घुस गया तो…। हालांकि, वन्यजीव विभाग पहले ही राज्यभर में वन्यजीव सुरक्षा को हाई अलर्ट घोषित कर चुका है। साथ ही गश्त भी बढ़ा दी गई है।
मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक मोनीष मलिक के मुताबिक महकमा किसी भी स्थिति से निबटने को तैयार है। सभी कार्मिक मुस्तैदी से जुटे हुए हैं। सीमावर्ती क्षेत्रों पर विशेष फोकस किया गया है। उप्र से लगी सीमा पर उप्र व उत्तराखंड के कार्मिक संयुक्त रूप से गश्त कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि सूचनाओं का भी आदान-प्रदान किया जा रहा है।
क्या है बावरिया गिरोह
देश में वन्यजीवों के शिकार के लिए कुख्यात बावरिया गिरोह दशकों से सक्रिय हैं। ये खानाबदोश जीवन जीते हैं और जहां-तहां जंगलों में घुसकर वन्यजीवों का शिकार करते आए हैं। उत्तराखंड के वन्यजीव भी इनके निशाने पर हैं। अब तो इनके तार सीमा पार बैठे माफियाओं से भी जुडऩे की बातें सामने आ चुकी हैं। ये गिरोह शिकार करने के साथ ही वन्यजीवों की खाल व अंगों को ठिकाने तक भी पहुंचाने के कार्यों में संलिप्त हैं।
निर्ममता से करते हैं शिकार
ये बात भी सामने आई है कि बावरिया गिरोहों के सदस्य दुर्दांत शिकारी हैं। ये किसी भी वन्यजीव को पकड़ने के लिए पहले जाल बिछाते हैं। खड़के अथवा फंदे में जानवर के फंसने पर ये उस पर लाठी डंडों से टूट पड़ते हैं। जानवर की मौत होने पर ये जश्न भी मनाते हैं।