पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव सेमीफाइनल के बाद लोकसभा के फाइनल मुकाबले के लिए सियासी गलियारों में गतिविधियां तेज हो गई हैं. हिंदी पट्टी के तीन राज्यों में कांग्रेस की जीत के बाद महागठबंधन को विस्तार मिलता दिख रहा है. इसी क्रम में गुरुवार को बिहार में एनडीए के सहयोगी रहे राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (RLSP) के अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा कांग्रेस नेतृत्व में यूपीए में शामिल हो गए. जहां एक तरफ RLSP के शामिल होने से बिहार में महागठबंधन और मजबूत हुआ. लेकिन सीटों के लिहाज से सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में महागठबंधन की तस्वीर अभी स्पष्ट नहीं हो पाई है.
बिहार ने रोका था बीजेपी के अश्वमेघ का घोड़ा
साल 2014 से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चल रहे बीजेपी का विजय रथ बिहार की धरती पर 2015 के विधानसभा चुनाव में रुक गया था. जब एक- दूसरे के धुर विरोधी रहे राष्ट्रीय जनता दल (RJD) प्रमुख लालू यादव, जनता दल (यू) के नेता और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और कांग्रेस के नेतृत्व में महागठबंधन ने बीजेपी को करारी शिकस्त दी थी. हालांकि, नीतीश कुमार बाद में एनडीए में शामिल हो गए, लेकिन 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे यह संदेश देने के लिए काफी थे कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी अपराजेय नहीं है.
यूपी विधानसभा चुनाव में बिखरा विपक्ष
साल 2015 के बाद 2017 में उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव देश की राजनीतिक दिशा तय करने का अहम पड़ाव था. लेकिन बिहार में बने महागठंधन के नेतृत्व में मिली जीत से किसी गैर बीजेपी दल ने सीख नहीं ली. पहले तो कांग्रेस ने अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा करते हुए दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के नाम पर ब्राह्मण कार्ड खेला. फिर किसानों को लुभाने के लिए पूरे प्रदेश में राहुल गांधी ने खाट सभाएं कीं. दूसरी तरफ अपने ही घर में कलह से जूझ रही समाजवादी पार्टी में नेतृत्व परिवर्तन हो चुका था, और मुलायम सिंह यादव के बाद पार्टी की कमान तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपने हाथ में ले ली थी. कांग्रेस के रणनीतिकारों ने पार्टी के चुनावी अभियान में कोई खास लाभ न मिलता देख समाजवादी पार्टी से गठबंधन की कवायद तेज कर दी. अखिलेश ने भी यह प्रस्ताव स्वीकार करते हुए कांग्रेस के साथ गठबंधन का ऐलान करते हुए पार्टी को 100 सीटें दे दी.
लेकिन इन सभी घटनाक्रम के बीच उत्तर प्रदेश की राजनीति की एक और अहम खिलाड़ी और बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती इस गठबंधन की इस कवायद से दूर रहीं. लिहाजा, जब विधानसभा चुनाव हुए तो गैर बीजेपी वोट सपा-कांग्रेस गठबंधन और बीएसपी के बीच बंट गया और बीजेपी को इसका सीधा फायदा मिला. नतीजा यह हुआ कि 403 सदस्यीय यूपी विधानसभा में बीजेपी 312 सीटों के साथ अब तक का सबसे मजबूत जनादेश हासिल करते हुए सत्ता पर काबिज हो गई. वहीं समाजवादी पार्टी 47 सीट, बहुजन समाज पार्टी 19 सीट और कांग्रेस 7 सीटों पर सिमट गई.
तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव से निकला संदेश
बिहार में राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस, हिंदुस्तान आवाम मोर्चा और आरएलएसपी का गठबंधन तय हो गया है. वहीं एनडीए की सहयोगी दल लोक जनशक्ति पार्टी लगातार बीजेपी पर दबाव बना रही है और कयास लगाए जा रहे हैं कि वो भी बीजेपी से अलग हो सकती है. लेकिन यूपी में बीजेपी के खिलाफ मोर्चाबंदी को लेकर अभी कुछ स्पष्ट नहीं हो सका है. हालांकि हाल में कैराना, गोरखपुर और फूलपुर के उपचुनाव में एसपी-बीएसपी-आरएलडी गठबंधन ने बीजेपी को मात दी थी, लेकिन लोकसभा को लेकर गठबंधन का प्रारूप क्या होगा यह तय नहीं हो पाया है.
दरअसल इन उपचुनावों में कांग्रेस गठबंधन का हिस्सा नहीं थी. ऐसा कहा जाता है कि एसपी-बीएसपी-आरएलडी गठबंधन को इसका लाभ मिला क्योंकि कांग्रेस ने बीजेपी के वोट काटे. लिहाजा इस बात को लेकर स्थिति अभी स्पष्ट नहीं हो पाई है कि कांग्रेस इस गठबंधन का हिस्सा होगी या नहीं. हालांकि लोकसभा चुनावों के लिए गठबंधन को लेकर दो अहम विपक्षी दल एसपी और बीएसपी के बीच सियासी बयानबाजी के अलावा कुछ होता नहीं दिख रहा है. हाल ही में एसपी-बीएसपी का गठबंधन तय होने की खबरों का समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद रामगोपाल यादव ने यह कहते हुए खंडन कर दिया कि अभी कुछ भी तय नहीं हुआ है.
लोकसभा चुनाव के लिए अब चंद महीने ही बचे हैं, ऐसे में बिहार ने एक बार फिर विपक्षी एकजुटता का संदेश दिया. लेकिन यह देखना होगा कि क्या बिहार से निकले इस संदेश से उत्तर प्रदेश का विपक्ष कोई सीख लेगा या फिर 2017 विधानसभा चुनाव की गलती दोहराते हुए 80 लोकसभा सीटों वाला यूपी एक बार फिर बीजेपी की झोली में डाल देगा.