दिल्ली हाईकोर्ट के बाद अब मद्रास हाईकोर्ट ने दवाओं की ऑनलाइन बिक्री पर रोक लगा दी है. कोर्ट ने केंद्र सरकार द्वारा दवाओं की ऑनलाइन बिक्री को लेकर नियम तैयार किए जाने तक के लिए इसकी ऑनलाइन बिक्री पर रोक लगाई है. साथ ही केंद्र को निर्देश दिए हैं कि 31 जनवरी 2019 तक इसके लिए नियम तैयार करे, जो अभी मसौदे के स्तर पर है. हालांकि, ऑनलाइन बिक्री पर लगा प्रतिबंध 20 दिसंबर को सुबह साढ़े दस बजे तक प्रभावी नहीं होगा. ऑनलाइन दवा विक्रेताओं के अनुरोध पर उन्हें अपील के लिए यह वक्त दिया गया है.
तमिलनाडु केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट एसोसिएशन की एक याचिका पर सुनवाई के बाद न्यायालय ने यह फैसला दिया है. याचिका में उन सभी वेबसाइटों के लिंक ब्लॉक किए जाने के आदेश की मांग की गई थी, जो दवाओं की ऑनलाइन बिक्री कर रही हैं. याचिका में कहा गया था कि जब तक ऑनलाइन माध्यम से दवाओं की बिक्री के लिए लाइसेंस नहीं दे दिया जाता है, तब तक इस पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए.
इससे पहले 13 दिसंबर दिल्ली हाईकोर्ट ने ऑनलाइन फार्मेसी द्वारा इंटरनेट पर दवाओं की बिक्री पर रोक लगा दी थी. इन दवाओं में डॉक्टर के पर्चे पर लिखी गईं दवाएं भी शामिल हैं. कोर्ट ने केंद्र, दिल्ली सरकार, केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन, भारतीय फार्मेसी परिषद से जवाब भी मांगा है. डॉक्टर जहीर अहमद द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि दवाओं की ऑनलाइन गैरकानूनी बिक्री से दवाओं के दुरुपयोग जैसी समस्याएं पैदा हो सकती हैं.
भारत में दवा का बाजार करीब 12 अरब डॉलर, करीब 840 अरब रुपये का है. इसमें ऑनलाइन दवाओं की बिक्री का कारोबार करीब 720 करोड़ रुपये का है. लगभग 3500 ऐसी वेबसाइट हैं जो ऑनलाइन दवाएं बेचती हैं. फिलहाल, ई-फार्मेसी को लेकर कोई नियम भी नहीं है. पूरे देश के केमिस्ट ई-फार्मेसी का विरोध इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि इनका कारोबार बुरी तरह प्रभावित हो रहा है.
सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि रिटेलर कभी भी ई-फार्मेसी का मुकाबला नहीं कर सकते. ऑनलाइन दवा खरीदने पर 30-35 फीसदी तक छूट मिल जाती हैं. रिटेलर 10 फीसदी से ज्यादा छूट देने की स्थिति में नहीं होते हैं. दूसरी सबसे बड़ी बात यह है कि ई-कॉमर्स कंपनियां बुरे दौर से गुजर रही हैं. उन्हें मार्केट की तलाश हैं. ऐसे में अगर, इसको लेकर नियम तैयार हो जाता है तो हर साल 12 अरब डॉलर (84 हजार करोड़) का बाजार उनके लिए खुल जाता है. यहां उनके लिए बहुत बड़ी संभावना है.