केंद्रीय राज्यमंत्री एवं रालोसपा अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा के एनडीए में बगावती तेवर ने छह साल पहले राज्यसभा में हुए घटनाक्रम की याद दिला दी है। शुक्रवार, यानी आज के ही दिन 7 दिसंबर, 2012 को उन्होंने एनडीए में रहने के बावजूद राज्यसभा में कांग्रेस के पक्ष में वोटिंग की थी। तब वह जदयू से राज्यसभा सदस्य थे। दो दिनों बाद उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर तानाशाही रवैया अपनाने का आरोप लगाते हुए राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था।
मौका था राज्यसभा में खुदरा में एफडीआइ से संबंधित बिल पारित करने का। कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार द्वारा यह बिल लाया गया था, जिसके पक्ष में उपेंद्र कुशवाहा ने वोटिंग की थी। तत्कालीन जदयू अध्यक्ष शरद यादव ने उनके खिलाफ कार्रवाई की घोषणा की परन्तु इससे पूर्व ही उन्होंने जदयू और राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया।
आज एक बार फिर उपेंद्र कुशवाहा एनडीए में बगावत के सुर बुलंद किए हुए हैं। वह अपने चेहरे पर बगावत लिए एक बार फिर संसद में दिखेंगे। संसद का शीतकालीन सत्र 11 दिसंबर से आरंभ हो रहा है। यह इत्तफाक ही है कि शरद यादव भी अब जदयू से अलग हो चुके हैं, और वह अब एनडीए के खिलाफ विपक्षी दलों को एकजुट करने में लगे हैं। शरद यादव से उपेंद्र कुशवाहा की पिछले माह हुई मुलाकात काफी चर्चा में रही थी।
उपेंद्र कुशवाहा एक बार फिर नीतीश कुमार पर हमलावर हो रहे हैं। साथ ही वह अब भाजपा के खिलाफ भी मुखर हो गए हैं। मोतिहारी में आम सभा को संबोधित कर पटना लौट रहे उपेंद्र कुशवाहा ने गुरुवार संध्या दूरभाष पर एक बार फिर अपना स्टैंड दोहराया।
उन्होंने कहा कि वह एनडीए में बने हुए है और एनडीए में रहकर ही नीतीश सरकार की असफलता, राज्य में व्याप्त भ्रष्टाचार और बिगड़ी विधि व्यवस्था आदि का मुद्दा उठाएंगे। उनके मुताबिक, रालोसपा भाजपा की सांप्रदायिक नीतियों से भी इत्तफाक नहीं रखती है, और एनडीए में रहकर ही ऐसी नीतियों का विरोध करेगी।
सूत्रों ने इस बीच बताया कि वाल्मिकीनगर में 4-5 दिसंबर को आयोजित चिंतन शिविर में जो राजनीतिक प्रस्ताव पारित किए गए हैं, वह खुद इस बात के संकेत हैं कि उपेंद्र कुशवाहा अब अधिक दिन एनडीए में नहीं रहेंगे। संसद के शीतकालीन सत्र में उनके चेहरे पर बगावत सभी की जिज्ञासा बढ़ाती रहेगी कि वह आगे क्या कदम उठाएंगे।