रात को रात कह दिया मैंने, सुनते ही बौखला गई दुनिया!! (हफ़ीज़ मेरठी)
-शोएब ग़ाजी
रात अंधेरों को चीर रही थी, शायद उसे भी और मुझे भी सुबह का इंतजार था। हर रोज़ की तरह कल भी एक बदलते उनवान पर टेबल पर पड़ी कलम चलती कि उससे पहले पास के रूम से किसी गायिका के ‘सांग’ की आवाज आने लगी। आवाज भी इतनी धीमी और मधुर थी कि जैसे धीमी आंच पर रोटी पकाई जा रही हो। जब तक कुछ समझ पाता, चलता ‘सांग’ बंद हो चुका था। पर मेरे मस्तिष्क का कीड़ा पूरी तरह रात की काली घटाओं से बेदार हो चुका था। दरवाजा खोला और पास के दरवाजे पर नॉक किया। अंदर से आवाज आई कौन! …हां मैं….! नींद नहीं आरही है क्या, नहीं, और तुम्हें, अभी आया हूं, इतनी रात के, हां, चलो ठीक है, अच्छा यह बताओ ‘सांग’ किसका सुन रहे थे! राहत अली का। अरे नहीं वो पंजाबी में था जिसे दुबारा लगाने को कहा। इससे पहले शायद यह सांग कभी नहीं सुना था। वैसे भी सांग सुनने में रुचि भी कम रखता हूं। पता चला कि यह सांग गिन्नी माही ने गाया है जिसमें एक ‘डेंजर चमार’ होने की बात दर्ज थी। सुनकर हां थोड़ा अजीब सा जरूर लगा था कि क्या कोई ऐसा भी लोकगीत गा सकता है क्या! बहुत कुछ समझना अभी बाकी था।
वापस अपनी जगह पर आया और गूगल बाबा के सहारे तह तक पहुंचाने का प्रयास करने लगा। इस दौरान पाया कि उनका यह गीत ‘बाबा साहिब दि और डेंजर चमार है’ जो गिन्नी माही का प्रसिद्ध गीत है, जिसके पीछे एक बड़ी दास्तान है। इतने में गिन्नी माही के इंटरव्यू का वीडियो हाथ लग गई जिसमें गिन्नी माही बताती हैं कि हम कालेज में बैठे हुए थे, तभी मेरी एक क्लासमेट ने दबी जबान से पूछा, गिन्नी तुम्हारी कास्ट क्या है! गिन्नी के लिए यह थोड़ा झकझोर देने वाला सवाल था। गिन्नी ने कहा मैं एक भारतीय हूं, एससी कैटिगरी से हूं। उसने फिर पूछा, इनमें से कौन हो तुम! गिन्नी ने कहा मैं चमार हूं तो क्लासमेट ने कहा- चमार तो बहुत ही डेंजरस होते हैं। सुनकर उस दिन गिन्नी हैरान सी तो हो गई। पर इसी हैरानी को मजबूती में बदलने का भरसक प्रयास करने लगी जिस पर उन्हें डेंजर चमार पर गाना गाने का ख्याल आया और उन्होंने पंजाबी में गाना गाया जिसकी एक लाइन है। कुर्बानी देनो डरदे नहीं, रेंहदें है तैयार, हैगे असले तो वड डेंजर चमार। जिससे वो गाकर देश में दलित पॉप की एक उभरती आवाज बन गयीं जिनके यूट्यूब पर लाखों से भी ज्यादा फॉलोअर्स हो गये।गिन्नी भारत के जालंधर, पंजाब से हैं।
गिन्नी माही ने 7 साल की उम्र से शुरू कर दिया था गायन
गिन्नी एक हज़ार से अधिक स्टेज शो और गायन कार्यक्रमों में अब तक हिस्सा ले चुकी हैं। गिन्नी अपने हर गीत में एक संदेश देना चाहती है, वह अपनी आवाज़ से ही लोगों को सामाजिक पिछड़ेपन से बाहर निकालने के लिए प्रयास कर रही हैं और वह अब तक अपने लक्ष्य में सफल भी रही है। माही का मूल नाम गुरकंवल कौर हैं वह बाबा साहब आम्बेडकर को अपना आदर्श मानती हैं और वे दलित होने पर अपने आप पर गर्व महसूस करती हैं।