कहा- अयोध्या में हो रही नाटकबाजी, वहां एक ईंट भी नहीं रख सकता कोई
वाराणसी : ज्योतिष द्वारिका शारदापीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती ने कहा कि धर्म में राजनीति और राजनीति में धर्म का घालमेल नहीं होना चाहिए। अयोध्या में केवल नाटक हो रहा है, कोई भी वहां एक ईंट नहीं रख सकता। सीर गोवर्धनपुर में रविवार से आयोजित संतों के तीन दिवसीय परम धर्म संसद को शंकराचार्य सम्बोधित करने के बाद मीडिया से रूबरू थे। अयोध्या में विहिप के धर्मसभा पर तंज कसते हुए शंकराचार्य ने कहा कि अयोध्या में कोई झगड़ा है ही नहीं, हिन्दू मुस्लिम का झगड़ा वहां नहीं है। वहां इकट्ठा होने का कोई प्रश्न ही नहीं हैं। उन्होंने कहा कि अगर कोई वहां कुछ बनाएगा तो पहले निर्णय करें कि वहां क्या बनेगा, भगवान का मंदिर बनाएंगे की पुतला बनाएंगे, पुतला बनाने से संतुष्ट होंगे।
उन्होंने कहा कि अयोध्या में राम मन्दिर था और आगे भी राम मन्दिर ही रहेगा। इसके पूर्व धर्म संसद में शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती ने अपने आर्शीवचन में कहा कि अयोध्या में मन्दिर के अभी तक नहीं बन पाने की सबसे बड़ी वजह राजनीतिक खींचतान हैं। उन्होंने कहा कि जब सरकार संविधान की शपथ लेती है तो वह धर्म निरपेक्ष हो जाती है, वह किसी धर्म विशेष का पक्ष नहीं ले सकती। उन्होंने कहा कि राम मन्दिर सनातन धर्म से जुड़ा विषय है, इसलिए धर्म निरपेक्ष सरकार से राममन्दिर के लिए कुछ उम्मीद नहीं किया जा सकता। मन्दिर के नाम पर सिर्फ सनातनी जनता को बेवकूफ बनाने की प्रक्रिया चल रही है।
उन्होंने जोर देकर कहा कि मन्दिर का निर्माण सिर्फ हम और संत महात्मा ही कर सकते हैं। विकास के नाम पर काशी में मन्दिरों में हो रही तोड़फोड़ उचित नहीं है। भारत पूरी दूनिया में आज भी शीर्षस्थ है क्योंकि भारत की सभ्यता और संस्कृति सबसे प्राचीन है। भारत के धर्मशास्त्रों का लाभ पूरा विश्व लेता है, इसकी सबसे बड़ी वजह वेदों की परम्परा का अनुकरण हैं। शंकराचार्य ने धर्म संसद में गंगा की अविरलता निर्मलता पर जोर देते हुए कहा कि जीवनदायिनी गंगा आज आचमन योग्य भी नहीं रह गयी है जो चिन्ता का विषय हैं। गंगा पहले भी पवित्र थी और आज भी बस आवश्यकता है, उसे अविरल करने की। उन्होंने कहा कि सरकार आज मठ मन्दिरों पर नियंत्रण करने की तैयारी में लगी है, जिसमें वह मन्दिरों का हिसाब किताब रखना शुरू कर रही है सन्तों से हिसाब भ्रष्ट नेता व अधिकारी लेंगे इससे दुर्भाग्यपूर्ण विषय क्या हो सकता है।