मध्य प्रदेश के पश्चिमी भाग से राजस्थान की सीमाओं तक फैला मावला का क्षेत्र लंबे समय से बीजेपी का गढ़ माना जाता है. बीते विधानसभा चुनाव 2013 की बात करें तो मालवा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली 39 में से 34 सीटों पर बीजेपी के प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की थी. वहीं बाकी बची 5 सीटों में 4 पर कांग्रेस और 1 पर निर्दलीय प्रत्याशी ने जीत हासिल की थी. वहीं, विधानसभा चुनाव 2018 की बात करें तो इस बार बीजेपी के लिए अपना यह गढ़ बचाना आसान नहीं दिख रहा है.
दरअसल, बीजेपी की 15 साल से चली आ रही शिवराज सरकार को लेकर न केवल इस बार सत्ता विरोधी लहर है, बल्कि एससी-एसटी एक्ट में संसोधन प्रस्ताव को लेकर सवर्णों में सत्तारूढ़ बीजेपी के प्रति नाराजगी भी है. इसके अलावा, मंदसौर कांड सहित अन्य कई मुद्दों को लेकर यहां के स्थानीय लोग बीजेपी से नाराज चल रहे हैं. मतदाताओं की यह नाराजगी बीजेपी के गढ़ को ध्वस्त करने में कांग्रेस के लिए मददगार साबित हो सकती है. सूत्रों के अनुसार, बीजेपी के इस गढ़ को ध्वस्त करने के लिए कांग्रेस ने अपना ध्यान मालवा के उन इलाकों पर केंद्रित कर दिया है, जहां पर बीते विधानसभा चुनाव 2013 में जीत का अंतर महज चंद फीसदी रह गया था.
बीजेपी की कमजोर कड़ी के रूप में देखी जा रही हैं मालवा की ये सीटें:
मध्य प्रदेश की राजनीति से जुड़े वरिष्ठ नेताओं के अनुसार, विधानसभा चुनाव 2018 में बीजेपी के लिए मालवा में अपना परचम लहराना आसान नहीं होगा. इसकी बानगी बीते विधानसभा चुनाव 2013 के नतीजे आने के बाद ही दिख गई थी. दरअसल, बीते चुनावों में 11 विधानसभा सीटें ऐसी थी, जहां पर बीजेपी की जीत का अंतर बेहद चंद फीसदी रह गया था. इन विधानसभाओं में हलपिपल्या (देवास), सरदारपुर (धार), मनावर (धार), धमरपुरी (धार), धार, बदनावर (धार), सैलाना (रतलाम), आलोट (रतलाम), मंदसौर और मल्हारगढ़ (मंदसौर) शामिल हैं.
मंदसौर कांड के बीद बीजेपी को लेकर किसानों में नाराजगी
उपज का दोगुना दाम सहित अन्य मांगों को लेकर मंदसौर में आंदोलनरत किसानों पर 6 जून 2017 को पुलिस द्वारा गोली चलाई गई थी. इस गोलीकांड में छह किसानों की मृत्यु हो गई थी. इस गोलीकांड के बाद हरकत में आई कांग्रेस ने इस पूरे मसले को राजनैतिक रंग देना शुरू कर दिया था. अपने राजनैतिक मंसूबों के तहत कांग्रेस ने इस साल 6 दिसंबर को मंदसौर में बरसी कार्यक्रम का आयोजन भी किया था, जिसमें कांग्रेस के लगभग सभी आला नेता पहुंचे थे. वहीं मंदसौर गोलीकांड से नाराज किसानों को मनाने के लिए शिवराज सरकार ने न केवल एक करोड़ रुपए के मुआवजे की घोषणा की, बल्कि कई योजनाओं की घोषणा कर किसानों को अपने पक्ष में लाने की कोशिश भी की है.
मालव जाति के नाम पर पड़ा मालवा का नाम
मालवा का नाम मालव जाति से जुड़ा हुआ है. दरअसल, मालव जाति से जुड़े लोग मूलत: पंजाब के राजपूताना क्षेत्रों के निवासी थे. चौथी सदी में सिकंदर की सेना से पराजित होने के बाद मालव जाति के लोग अवन्ति (उज्जैन) व उसके आस-पास के क्षेत्रों में आकर बस गए थे. उन्होंने आकर (दशार्ण) तथा अवन्ति को अपनी राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र बनाया. उस समय दशार्ण की राजधानी विदिशा और अवन्ति की राजधानी उज्जयिनी थी. कुछ वर्षों बाद आकर और अवंति को मिलाकर मालवा का नाम दिया गया.
मालवा का भौगोलिक परिदृश्य
मालवा क्षेत्र का विस्तार मध्य प्रदेश के मध्य क्षेत्र से लेकर राजस्थान की सीमाओं तक फैला हुआ है. मालवा के अंतर्गत सात जिले माने जाते हैं. जिसमें देवास, धार, इंदौर, झाबुआ, उज्जैन, रतलाम और मंदसौर शामिल है. मालवा के इन सात जिलों के अंतर्गत कुल 39 विधानसभा सीटें आती हैं. जिसमें सर्वाधिक नौ विधानसभा सीटें इंदौर में और सबसे कम तीन सीटें झाबुआ जिले में हैं.
कृषि और औद्योगिक विकास का केंद्र है मालवा
मध्य प्रदेश में मालवा क्षेत्र को न केवल कृषि, बल्कि औद्योगिक विकास के रोल मॉडल के रूप में देखा जाता है. इंदौर, उज्जैन और रतमाल यहां के सबसे बड़े औद्योगिक शहर हैं. यहां वाणिज्यिक रूप से महत्त्वपूर्ण सागौन के पेड़ पाए जाते हैं. लाख, रंगाई व चर्मशोधन का सामान, गोंद, फल, सवाई घास (मूल्यवान भारतीय रेशेदार घास) और शहद यहां के अन्य उत्पाद हैं. यह क्षेत्र चंदेरी और सिरोंज में महीन मलमल और छींट वाले कपड़ों के उत्पादन के लिए विख्यात है. यहां के उद्योगो में सूती वस्त्र निर्माण, कपास की ओटाई और हथकरघा बुनाई से जुड़े उद्योग शामिल हैं. इसके अलावा, कपास, ज्वार, गेहूँ, गन्ने तथा मूँगफली को यहां पर खेती की जाती है.
विश्व विख्यात है महाकाल की नगरी उज्जयनी
उज्जयिनी यानी उज्जैन महाकाल की नगरी के रूप में विश्वविख्यात है. क्षिप्रा नदी के किनारे बसा यह शहर में भगवान शिव के १२ ज्योतिर्लिंगों में एक महाकाल का मंदिर भी है. पूर्व में यह नगर विक्रमादित्य के राज्य की राजधानी भी थी. इस नगरी को महाकाल के साथ कालिदास की नगरी के नाम से भी जाना जाता है.